कोयला कारोबार बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने अडानी को विशेषाधिकार दिए: रिपोर्ट

अल-जज़ीरा की एक रिपोर्ट बताती है कि मोदी सरकार ने अडानी एंटरप्राइजेज़ लिमिटेड को भारत के सबसे घने वन क्षेत्रों में से एक में 450 मिलियन टन से अधिक के कोयला ब्लॉक से खनन की अनुमति दी, लेकिन क़ानून में बदलाव करके अन्य कंपनियों के लिए ऐसा नहीं किया गया. 

अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी. (फोटो साभार: फेसबुक/Adani Group)

अल-जज़ीरा की एक रिपोर्ट बताती है कि मोदी सरकार ने अडानी एंटरप्राइजेज़ लिमिटेड को भारत के सबसे घने वन क्षेत्रों में से एक में 450 मिलियन टन से अधिक के कोयला ब्लॉक से खनन की अनुमति दी, लेकिन क़ानून में बदलाव करके अन्य कंपनियों के लिए ऐसा नहीं किया गया.

गौतम अडानी. (इलस्ट्रेशनः द वायर)

नई दिल्ली: अल जजीरा द्वारा प्रकाशित द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की एक पड़ताल में दस्तावेजों का हवाला देते हुए बताया गया है कि भारत सरकार ने बीते कुछ समय से विवादों में चल रहे उद्योगपति गौतम अडानी के कोयले के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए असाधारण तरीके से उनका पक्ष लिया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय द्वारा यह सुनिश्चित किए जाने के बाद कि निजी क्षेत्र को कोयला ब्लॉक सौंपने वाला एक विशेष नियम ‘अनुचित’ था और इसमें पारदर्शिता की कमी थी, उनकी सरकार ने एक अपवाद बनाया. इसने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड को भारत के सबसे घने वन क्षेत्रों में से एक में 450 मिलियन टन से अधिक कोयला रखने वाले ब्लॉक से खनन करने की अनुमति दी, लेकिन कानून में बदलाव करके अन्य कंपनियों को यह अनुमति नहीं दी गई.

अडानी को 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले, जिसमें 204 कोयला ब्लॉकों के आवंटन को रद्द कर दिया गया था, के बाद मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए एक नियम के तहत अपवाद दिया गया था. रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ दिखाते हैं कि सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि गौतम अडानी के स्वामित्व वाले अडानी समूह को यह अपवाद क्यों दिया गया.

यह रिपोर्ट द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा की गई एक पड़ताल का दूसरा भाग है. पहले भाग में बताया गया कि जब देश के शीर्ष लेखा परीक्षक, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने कारोबारी समूहों के शेल कंपनियां बनाने और भारत के कोयला भंडार को हड़पने के लिए मिलीभगत के बारे में चिंता जताई, तो नरेंद्र मोदी सरकार ने किस तरह इसकी अनदेखी की.

रिपोर्ट कहती है  कि सरकार ने आरपी-संजीव गोयनका (आरपी-एसजी) समूह, जो बिजली, आईटी, शिक्षा, रिटेल और मीडिया में काम करने वाला 4 बिलियन डॉलर का राजस्व समूह है, को पश्चिम बंगाल में एक कोयला खदान की नीलामी में हेर-फेर करने की अनुमति दी थी.

 कांग्रेस ने साधा निशाना

उधर, मोदी सरकार पर अडानी समूह की मदद करने का आरोप लगा रही कांग्रेस ने बुधवार को इसकी ‘हम अडाणी के हैं कौन’ प्रश्न श्रृंखला के तहत कोयला खदान आवंटन को लेकर सवाल उठाए.

द हिंदू के अनुसार, कांग्रेस ने मार्च 2015 के एक घटनाक्रम की ओर इशारा किया, जब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व कोयला खदान आवंटन को रद्द करने के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए सरकार कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम लाई थी, लेकिन कानून में एक खामी छोड़ दी, जिससे भाजपा राज्य सरकारों द्वारा अडानी समूह को खदान डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) के रूप में दोबारा चुना गया.

बुधवार के बयान में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के 9 अप्रैल, 2015 को दिए गए बयान, जहां उन्होंने कहा था कि ‘कोयला और स्पेक्ट्रम नीलामी का निष्कर्ष यह स्थापित करता है कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति है तो घोटाले और भ्रष्टाचार का अभिशाप टाला जा सकता है और पारदर्शिता संभव है’ का जिक्र करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, ‘यह विडंबना है कि ये शब्द आपने नए कोयला कानून में सक्षम प्रावधानों को लाने के बाद अपने पसंदीदा बिजनेस पार्टनर को विशाल कोयला खदानों को फिर से आवंटित करने के लिए विशेष प्रयास करने के दो सप्ताह बाद ही बोले थे.’

रमेश 20 मार्च, 2015 को कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम का जिक्र कर रहे थे, जो पूर्व कोयला खदान आवंटन को रद्द करने और नीलामी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए था. रमेश ने जोड़ा, ‘हालांकि, अधिनियम की धारा 11(1) ने किसी नए लाभार्थी को पिछले आवंटी द्वारा हस्ताक्षरित खनन अनुबंध जारी रखने की अनुमति देकर बचाव का एक सुविधाजनक रास्ता जोड़ा. इसके चलते 26 मार्च, 2015 को छत्तीसगढ़ में परसा पूर्व और कांटे बसन कोयला ब्लॉक सहित दो खदानों के लिए माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) के रूप में अडानी समूह को भाजपा राज्य सरकारों द्वारा फिर चुना गया.’

उन्होंने कहा कि बाद में नीति आयोग की एक समिति ने इस आवंटन की आलोचना करते हुए एक रिपोर्ट दी. उन्होंने कहा कि एक पत्राचार भी सामने आया है, जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने इन आवंटनों को ‘अनुचित’ और इनमें ‘निरंतरता और पारदर्शिता’ की कमी का जिक्र किया है.

रमेश ने पूछा, ‘स्पष्ट रूप से आपके अपने अधिकारी, शायद जवाबदेह ठहराए जाने के डर से, अडानी समूह के प्रति इस घोर पक्षपात से खुद को दूर कर रहे हैं. क्या उनकी लिखित टिप्पणियां आपके पाखंड की तीखी निंदा नहीं हैं और यह तथ्य कि आप स्पष्ट रूप से ‘घोटाले और भ्रष्टाचार के अभिशाप’ से कलंकित हैं?’

उन्होंने आगे कहा कि आपत्तियां उठाने के बावजूद कोयला ब्लॉक आवंटन नियमों को केवल संभावित रूप से संशोधित किया गया था, जिसने अडानी समूह को हुए ‘समस्याग्रस्त आवंटन को प्रभावित नहीं किया.’ उन्होंने यह भी दावा किया कि अडानी समूह धारा 11(1) में खामियों का एकमात्र लाभार्थी है.

रमेश ने पूछा, ‘क्या आपने अपने अधिकारियों पर यह सुनिश्चित करने के लिए कोई दबाव डाला कि कोई भी पूर्वव्यापी परिवर्तन नहीं किए गए हैं जो आपके मित्रों के वाणिज्यिक हितों और नकदी प्रवाह को नुकसान पहुंचा सकते हैं?’

कांग्रेस ने यह भी घोषणा की कि 13 मार्च को – बजट सत्र के दूसरे भाग के पहले दिन – पार्टी राज्यों की राजधानियों में राजभवनों तक मार्च करेगी. पार्टी मार्च के अंत तक ज़िलों में और अप्रैल में राज्य की राजधानियों में ‘पर्दाफाश रैलियां’ (मोदी-अडानी संबंधों को बेनकाब करने के लिए जनसभाएं) आयोजित करने की भी योजना बना रही है.