विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर में प्रदर्शन कर रहे मनरेगा मज़दूरों के समर्थन में माकपा की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने कहा कि केंद्र की मोदी सरकार गांव के ग़रीबों के क़ानूनी और संवैधानिक अधिकारों पर एक अघोषित युद्ध छेड़े हुए है.
नई दिल्ली: मनरेगा श्रमिकों के समर्थन में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए माकपा (CPIM) की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात ने कहा कि मोदी सरकार गांव के गरीबों के कानूनी और संवैधानिक अधिकारों पर एक अघोषित युद्ध छेड़े हुए है.
अपने विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर में ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ के बैनर तले मनरेगा श्रमिक 100 दिन का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. वे अनिवार्य ऐप आधारित उपस्थिति प्रणाली, बजट में की गई भारी कटौती, मजदूरी भुगतान में देरी, मजदूरी दर में वृद्धि समेत विभिन्न मांगें उठा रहे हैं.
द हिंदू के मुताबिक, प्रदर्शन कर रहे मजदूरों के समर्थन में करात ने कहा कि उनके (सरकार) एजेंडे में सबसे महत्वपूर्ण कदम कई कानूनों को खत्म करना है, जो दशकों के संघर्ष के बाद बनाए गए थे. सरकार के कानून को पूरी तरह से समाप्त करने में असमर्थ होने का एकमात्र कारण यह है कि उसके पास कानूनी जनादेश नहीं है.
मनरेगा के कार्यान्वयन में चिंता के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं. इसमें हाल ही में बजट में 33 प्रतिशत की कटौती, काम की मांग करने वाले कर्मचारियों को वापस करना और कार्यक्रम के तहत पेश किया गया निराशाजनक मेहनताना शामिल हैं.
मालूम हो कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मनरेगा के तहत सबसे कम राशि का आवंटन किया गया है. 2023-24 बजट में मनरेगा के लिए आवंटन में आश्चर्यजनक रूप से भारी कमी करते हुए इसे 60,000 करोड़ रुपये किया गया. वित्त वर्ष 2023 के लिए संशोधित अनुमान 89,400 करोड़ रुपये था, जो 73,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से अधिक था.
वृंदा करात ने कहा कि बजट में कटौती को सरकार की कर नीतियों के साथ देखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘कर नीतियां इस देश के 1 फीसदी अमीरों का पक्ष ले रही हैं, जो देश की 40 प्रतिशत संपत्ति को नियंत्रित करते हैं. सरकार इस बजट में एक पैसा भी अतिरिक्त टैक्स नहीं लेकर आई है. फिर, आप यह कहकर गरीबों को परेशान करते हैं कि आपके पास पर्याप्त राजस्व नहीं है, हमें अपने घाटे को नियंत्रित करना होगा. अगर यह आपराधिक नहीं है, तो मुझे नहीं पता कि क्या है.’
आंकड़ों का हवाला देते हुए करात ने जोर देकर कहा कि सरकार का यह कहना कि मांग के अनुसार धन उपलब्ध कराया जाएगा, झूठ है.
उन्होंने कहा, ‘सरकार का यह मिथक कि हम मांग के अनुसार काम दे रहे हैं, झूठ के अलावा कुछ नहीं है और सरकार के आंकड़े खुद बताते हैं कि करोड़ों श्रमिकों को वापस (काम नहीं दिया गया) किया जा रहा है.’
वृंदा करात ने औसत राष्ट्रीय मजदूरी दर को संशोधित करने की आवश्यकता का भी जिक्र किया, जो वर्तमान में बाजार दरों से काफी नीचे 218 रुपये है. उन्होंने कहा, ‘आप इतनी निराशाजनक दरों के साथ गरीबों के श्रम का शोषण कर रहे हैं.’
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद खाद्य अधिकार कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने देश में बेरोजगारी के खतरनाक स्तर पर प्रकाश डाला, जो महामारी के बाद और भी बदतर हो गया.
उन्होंने कहा, ‘बेतहाशा महंगाई देश के गरीबों को और शिकार बना रही है. फिर भी केंद्र सरकार यह कह रही है कि सब ठीक है.’