वी-डेम संस्थान द्वारा जारी ‘अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक’ में कहा गया है कि भारत दुनिया के 179 देशों में से उन 22 देशों में शुमार है, जहां शिक्षण संस्थानों और शिक्षाविदों को काफी कम स्वतंत्रता प्राप्त है. भारत इस मामले में नेपाल, पाकिस्तान और भूटान जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी पिछड़ा हुआ है.
नई दिल्ली: वी-डेम (V-Dem) संस्थान ने अपने ‘अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक’ के 2023 के अपडेट में कहा है कि भारत दुनिया के 179 में से उन 22 देशों और क्षेत्रों में शामिल है, जहां शिक्षण संस्थानों और शिक्षाविदों को ‘आज की स्थिति में 10 वर्ष पहले की तुलना में काफी कम स्वतंत्रता प्राप्त है.’
अपडेट वर्ष 2013 से भारत में अकादमिक स्वतंत्रता में गिरावट के बीच अमेरिका, चीन और मैक्सिको से विस्तृत तुलनात्मक अध्ययन पर केंद्रित है.
पिछले साल प्रकाशित हुए अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 0 से 1 की तालिका में 0.38 का स्कोर प्राप्त हुआ था, जहां 1 को सर्वोच्च अकादमिक स्वतंत्रता माना जाता है. देश नीचे के 20-30 प्रतिशत वाले समूह में था.
भारत अपने पड़ोसी नेपाल (0.86), पाकिस्तान (0.45) और भूटान (0.46) से पीछे था और बांग्लादेश (0.25) व म्यांमार (0.01) से आगे था.
अपडेट में उल्लेख है कि जहां अकादमिक स्वतंत्रता में भारत की गिरावट ‘भारत के लोकतांत्रिक काल के दौरान तुलनात्मक रूप से उच्च स्तर से शुरू हुई थी’, अब यह ‘तेजी से बढ़ रही निरंकुशता’ से जुड़ी है.
चीन, अफगानिस्तान और म्यांमार के साथ भारत की पहचान उन देशों के रूप में की जाती है, जहां राजनीतिक घटनाओं ने अकादमिक क्षेत्र में आशाजनक विकास को बुरी तरह से उलट दिया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, भारत में विश्वविद्यालय स्वायत्तता में गिरावट के साथ 2009 में अकादमिक स्वतंत्रता में गिरावट शुरू हुई, इसके बाद 2013 से सभी संकेतकों में तेज गिरावट आई.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2013 के आसपास अकादमिक स्वतंत्रता के सभी पहलुओं में मजबूती से गिरावट शुरू हुई, 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के चुनाव के साथ इसमें प्रबलता आई. परिसर की अखंडता, संस्थागत स्वायत्तता और अकादमिक एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आने वाले वर्षों में और मजबूत गिरावट देखी गई.’
यह वह समय था जब भारत चुनावी लोकतंत्र के पैमाने पर भी गिरा था और अब वी-डेम द्वारा इसे ‘निर्वाचित तानाशाही’ के रूप में पेश किया गया है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसे कोई कानून नहीं हैं, जो विशेष तौर पर अकादमिक स्वतंत्रता की रक्षा करें, जिससे ‘मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार’ के चलते जोखिम बढ़ जाता है.
जैसा कि नीचे दिए गए आंकड़े में देखा जा सकता है, रिपोर्ट अकादमिक स्वतंत्रता की गिरावट का अध्ययन समय के उन बिंदुओं पर ध्यान देते हुए करती है, जिसमें निरंकुश झुकाव वाले नियम सत्ता ग्रहण करते हैं.
रिपोर्ट के ग्राफ से पता चलता है कि चीन में जब शी जिनपिंग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने और बाद में भी उस पद पर बने रहे, तब एक फिसलन पहले से मौजूद थी. भारत में भी नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले जो गिरावट शुरू हुई थी, वह जारी रही.
अमेरिका में गिरावट को डोनाल्ड ट्रंप के वर्षों से परिभाषित किया गया है, लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन के शासन में यह स्थिर हो गई. मैक्सिको में लोपेज़ ओब्रेडोर के पदभार ग्रहण करने के कुछ ही समय बाद तेज गिरावट देखी गई.
रिपोर्ट यह भी कहती है कि जो बात भारत को अन्य मामलों से अलग करती है वह अकादमिक स्वतंत्रता के संस्थागत आयामों-संस्थागत स्वायतत्ता और परिसर अखंडता पर उल्लेखनीय दबाव है. शिक्षाविदों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी बाधाएं हैं.
सारांश में रिपोर्ट कहती है, ‘भारत लोक-लुभावन सरकारों, निरंकुशता और अकादमिक स्वतंत्रता पर बाधाओं के बीच हानिकारक संबंधों को प्रदर्शित करता है.’
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