एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने स्वतंत्र न्यायपालिका की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि आज विभिन्न चुनौतियां है, जिनका सामना न्यायपालिका को करना है. हमें हर तरह के दबाव, हमले या किसी भी तरह के हस्तक्षेप को सहन करना है. एक संपन्न लोकतंत्र होने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका होना ज़रूरी है.
कोलकाता: भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस यूयू ललित ने कहा है कि न्यायपालिका ने हस्तक्षेप की कई चुनौती और प्रयासों का सामना किया है, लेकिन इनसे उचित तरह से निपटकर अपनी स्वतंत्रता सुनिश्चित की है.
द हिंदू के मुताबिक, उन्होंने कहा कि एक संपन्न लोकतंत्र होने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका होना जरूरी है, क्योंकि यह विवादों के समाधान के माध्यम से समाज को कानून के शासन के प्रति आश्वस्त करती है.
उन्होंने कहा, ‘आज विभिन्न चुनौतियां हैं, जिनका सामना न्यायपालिका को करना है.’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमें न्यायिक बिरादरी के रूप में मजबूत होना होगा. हमें हर तरह के दबाव, हमले या किसी भी तरह के हस्तक्षेप को सहन करना है.’
शनिवार (4 मार्च) शाम कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कार्यकारी हस्तक्षेप के अधीन अदालती फैसलों के उदाहरण रहे हैं, लेकिन इनसे उचित तरह से निपटा गया, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो.
पूर्व सीजेआई ने कहा कि जिला न्यायपालिका राज्य में उच्च न्यायालय को छोड़कर किसी के नियंत्रण में नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘उनकी सभी पोस्टिंग, प्रचार, नियुक्तियां और यहां तक कि स्थानांतरण भी केवल उच्च न्यायालयों की सिफारिश पर होते हैं.’
इस बात पर जोर देते हुए कि न्यायपालिका के कामकाज के साथ कोई बाहरी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, उन्होंने कहा कि संविधान में कई अनुच्छेद यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी जज या न्यायपालिका के कामकाज में कोई हस्तक्षेप न हो.
उन्होंने कहा, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने का एक तरीका यह है कि ऐसा माहौल बनाया जाए, जहां न्यायिक कार्यों के निर्वहन के लिए जिम्मेदार लोगों में पूर्ण स्वतंत्रता और किसी भी एजेंसी से हस्तक्षेप न होने की भावना हो.’
पूर्व सीजेआई ने कहा कि किसी भी ताकत के किसी भी प्रकार के बाहरी हमले से निपटने में न्यायपालिका के कंधे काफी मजबूत हैं.
इसी दौरान, सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता केवल एक सिद्धांत नहीं है, बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता है.
उन्होंने कहा, ‘एक स्वतंत्र न्यायपालिका की प्रासंगिकता को खत्म नहीं किया जा सकता है, विशेष तौर पर हमारे जैसे देश में जो केवल एक लोकतांत्रिक गणराज्य नहीं है; यह संविधान में एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में वर्णित किया गया है.’
जस्टिस कोहली ने कहा कि संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए न्यायपालिका को स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘इसे किसी भी बाहरी और आंतरिक प्रभाव से मुक्त होना चाहिए.’