बिहारी श्रमिकों से जुड़ी अफ़वाह के बाद भाजपा वालों को ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ कहना चाहिए!

तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों पर हमलों की अफ़वाह को पूरे देश में फैलाने वाले मुख्य रूप से भाजपा के नेता थे. एक नहीं, कई राज्यों के. इसका नुक़सान इसीलिए बहुत गहरा है कि वह देश के ही दो हिस्सों में विभाजन की साज़िश है. भाजपा के इस कृत्य को सबसे घृणित अपराधों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों पर हमलों की अफ़वाह को पूरे देश में फैलाने वाले मुख्य रूप से भाजपा के नेता थे. एक नहीं, कई राज्यों के. इसका नुक़सान इसीलिए बहुत गहरा है कि वह देश के ही दो हिस्सों में विभाजन की साज़िश है. भाजपा के इस कृत्य को सबसे घृणित अपराधों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

तमिलनाडु में बिहारी मज़दूरों पर हमलों की खबर पूरी तरह से अफ़वाह थी. इस अफ़वाह को पूरे देश में फैलाने वाले मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता थे. एक ही नहीं, कई राज्यों के भाजपा नेता. इन नेताओं के साथ हिंदुत्ववादी मीडिया ने भी इसमें हाथ बंटाया. हमलों की अफ़वाह के साथ यह ख़बर भी कि हिंसा के भय से बिहारी मज़दूर तमिलनाडु छोड़ भाग रहे है, प्रायः अफ़वाह साबित हुई. वे होली के मौक़े पर हर साल की तरह इस बार भी त्योहार मनाने अपने घर जा रहे थे.

‘ऑल्ट न्यूज़’ के मोहम्मद ज़ुबैर का हम सबको शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उन्होंने इस अफ़वाह का पर्दाफ़ाश किया. इस तरह उन्होंने इस अफ़वाह के चलते संभावित हिंसा को रोका. हिंसा के अलावा तमिल और हिंदी प्रदेशों में एक दूसरे को लेकर आशंका और दूरी भी बढ़ने का ख़तरा था. मोहम्मद ज़ुबैर की ख़बरदारी की वजह से यह अभी के लिए टला. यानी, तमिलनाडु के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने का एक हथियार ज़ुबैर ने भाजपा और हिंदुत्ववादियों के हाथ से छीन लिया.

उम्मीद थी कि अख़बार और दूसरे जनसंचार माध्यम इसके बाद भाजपा नेताओं की इस ग़ैर-ज़िम्मेदाराना अफ़वाहबाज़ी के लिए उसकी आलोचना करेंगे. अपने पाठकों और दर्शकों को उनसे सावधान रहने के लिए कहेंगे. लेकिन यह नहीं किया गया.

इसकी जगह एक आम संतुलनवादी मशविरा दिया गया कि तमिलनाडु में दूसरे राज्यों के मज़दूरों की सुरक्षा के लिए सबको साथ मिलकर काम करना चाहिए. उनके भय को दूर करने का काम सबका है. एक पत्रकार ने पूछा कि आख़िर इस संकट से तमिलनाडु की सरकार कैसे पार पाएगी.

इससे किसको ऐतराज़ हो सकता है कि भारत के किसी भी हिस्से में दूसरे हिस्से के लोगों को इत्मीनान देने का दायित्व सबका है? लेकिन अभी मसला वह नहीं था. अभी बिहारियों के ख़िलाफ़ हिंसा की अफ़वाह को फैलाकर संदेह, दुराव और घृणा पैदा करने का काम भाजपा के लोगों ने किया. इन अफ़वाहों के चलते वाक़ई भय फैला.

बिहार सरकार पर आरोप लगाया गया कि उसके नेता तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से यारी निभा रहे हैं जबकि बिहारियों की तमिलनाडु में हत्या  की जा रही है. यह सरासर झूठ था. लेकिन ढिठाई से भाजपा के लोग यह बोलते रहे.

क्या यह राष्ट्र विरोधी कार्य नहीं? अफ़वाह का भंडाफोड़ हो जाने के बाद भी एक बड़े हिस्से में जो संदेह पैदा हुआ है, वह आसानी से नहीं जाएगा. अनेक लोग अभी भी मिल जाएंगे जो इसे अफ़वाह मानने से इनकार कर देंगे. उनका तर्क होगा कि अगर धुआं है तो कहीं तो आग होगी! कुछ तो इस खबर में सच होगा!

वे तमिलनाडु के नेताओं के पुराने वीडियो दिखा रहे हैं जिनमें वे हिन्दीभाषियों का उपहास उड़ाते दिखते हैं. उसकी आलोचना तो की ही जानी चाहिए लेकिन अभी की अफ़वाहबाज़ी का उससे क्या रिश्ता?

कई लोग कहते मिल जाएंगे कि अगर मोहम्मद ज़ुबैर ने तथ्य बतलाया है तो ज़रूर कुछ सच होगा. ऐसे लोग होंगे जो इस अफ़वाह को इसलिए मानना चाहेंगे कि इससे उनका तमिल विरोधी पूर्वाग्रह पुष्ट होता है. इसलिए इस अफ़वाह का जीवन इतना संक्षिप्त भी न होगा.

भाजपा के लोगों द्वारा किया गया नुक़सान इसीलिए बहुत गहरा है. वह इस देश के ही दो हिस्सों में विभाजन करने की साज़िश है. सिर्फ़ बिहार नहीं, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि हिंदी भाषी राज्यों के लोगों में भी तमिलनाडु को लेकर एक आशंका तो बैठ ही जाएगी. भाजपा के इस कृत्य को सबसे घृणित अपराधों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.

इस तरह के कृत्य के बाद क़ायदे से भाजपा के लोगों को ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ कहा जाना चाहिए. भारत के लोगों में आपस में ही संदेह, घृणा पैदा करने की यह कोई भाजपा की पहली हरकत नहीं है. कुछ रोज़ पहले हमने देश के गृह मंत्री को कर्नाटक में बोलते हुए सुना. वे कह रहे थे कि कर्नाटक के क़रीब केरल है जिससे कर्नाटक के लोगों को सावधान रहने की ज़रूरत है.

केरल के प्रति भारत के हिंदी भाषी प्रदेशों में घृणा भरने की यह कोशिश ही घृणित है. लेकिन ऐसा करने वाले वे अकेले भाजपा नेता नहीं. उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान भाजपा नेताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश को केरल, बंगाल और तमिलनाडु होने से बचाना है. इसलिए भाजपा को लाना बहुत ज़रूरी है.

केरल के प्रति जो घृणा अमित शाह अपने भाषण से फैला रहे थे वह इस कदर लोगों में भरी गई है कि जब वह राज्य बाढ़ की तबाही से जूझ रहा था तब हिंदुत्ववादी उसे किसी तरह की मदद देने से लोगों को मना कर रहे थे. कहा जा रहा था कि उन्हें मरने दो, ईश्वर ने गोमांस खाने का दंड केरल वालों को दिया है.

केरल के लोगों, ख़ासकर मुसलमानों को दहशतगर्द के रूप में पेश किया गया है. उसके पहले जम्मू कश्मीर के प्रति भी नफ़रत भरी गई. कश्मीरी लोगों पर भारत के हिंदी भाषी राज्यों में हमलों की खबर अक्सर सुनी जाती है.

तमिलनाडु या केरल को लेकर नफ़रत क्यों उत्तर प्रदेश आदि में भरी जाती है? यह दिखाने के लिए कि इन प्रदेशों में पर्याप्त भारतीयता नहीं है. वे हिंदी को स्वीकार नहीं करते, इस बात को लेकर भी उनके ख़िलाफ़ हिंदीभाषियों में घृणा भरी जाती है. यह हिंदीभाषियों का कर्तव्य है कि वे तमिलनाडु आदि में भारतीयता भरने के लिए वे भाजपा को सत्ता में बनाए रखें.

हिंदीवाले यह भी मानते हैं कि तमिलनाडु का हिंदी को क़बूल न करना भारत विरोधी है. इस ‘भारत विरोध’ को समाप्त करना ही राष्ट्रवाद है इसलिए भाजपा का शासन आवश्यक है, यह हिंदीवालों को समझाया जाता है.

इन प्रदेशों के प्रति भाजपा के दुराव और घृणा का प्रचार भाजपा की व्यापक घृणा की राजनीति का हिस्सा है. हिंदुत्ववादी राजनीति का आधार है घृणा और वह भी प्रमुख रूप से मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ घृणा. लेकिन घृणा को अपनी जनता का स्वभाव बनाने के लिए घृणा के नए-नए पात्रों की तलाश, उन्हें गढ़ना ज़रूरी हो जाता है. इस घृणा को स्थायी बनाने के लिए झूठ गढ़ने पड़ते हैं जिनसे उसे उचित ठहराया जा सके. इसीलिए यह नया झूठ गढ़ा गया.

इस झूठ से द्वेष तो फैला ही, हिंसा भी भड़क सकती थी. देर से सही, तमिलनाडु पुलिस ने भाजपा नेताओं पर मुक़दमे दर्ज किए हैं. आप देखिएगा, तुरत ही यह उपदेश दिया जाएगा कि तमिलनाडु पुलिस को बदले की कार्रवाई नहीं करनी चाहिए.

भाजपा के घृणा और मिथ्या प्रचार को उसका राजनीतिक अधिकार मान लिया गया है. जब तक हम इस मनोवृत्ति को नहीं समझेंगे, बार-बार भाजपा अपनी घृणा का आक्रमण हम पर करती रहेगी. ज़रूरत यह है कि हम इस घृणा की राजनीति के ख़िलाफ़ बिना अगर मगर के खुलकर बोलें.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)

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