अमेरिकी रिपोर्ट में 2022 में भारत को ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश माना गया

अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित थिंक-टैंक 'फ्रीडम हाउस' ने 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड' 2023 संस्करण में भारत को सौ में से 66 अंकों के साथ 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' देश मानते हुए कहा है कि भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों को ख़तरा बना हुआ है, आरटीआई क़ानून कमज़ोर हुआ है, लोकायुक्त संस्थाएं निष्क्रिय हैं और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित थिंक-टैंक ‘फ्रीडम हाउस’ ने ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ 2023 संस्करण में भारत को सौ में से 66 अंकों के साथ ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ देश मानते हुए कहा है कि भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों को ख़तरा बना हुआ है, आरटीआई क़ानून कमज़ोर हुआ है, लोकायुक्त संस्थाएं निष्क्रिय हैं और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: पीटीआई)

नई दिल्ली: अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित थिंक-टैंक ‘फ्रीडम हाउस’ द्वारा किए गए एक आकलन में भारत को वर्ष 2022 में ‘आंशिक स्वतंत्र‘ देश का दर्जा दिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में भारत के समग्र स्कोर में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

संगठन ने कहा कि ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड’ का 2023 संस्करण वार्षिक तुलनात्मक रिपोर्ट की इस श्रृंखला में 50वां है. रिपोर्ट में समान मापदंडों पर 195 देशों को रैंक दी गई है- और भारत को 100 में से 66 अंक मिले हैं.

मूल्यांकन के मापदंडों में चुनावी प्रक्रियाएं, राजनीतिक बहुलवाद एवं भागीदारी, सरकार की कार्यपद्धति, अभिव्यक्ति एवं मत की स्वतंत्रता, संस्थागत व संगठनात्मक अधिकार, कानून का शासन और व्यक्तिगत स्वायत्तता एवं व्यक्तिगत अधिकार शामिल थे.

भारत ने चुनावी प्रक्रियाओं के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया और 4/4 अंक हासिल किए. इसमें अन्य कारकों के साथ-साथ स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराना और चुनावी कानूनों का कार्यान्वयन शामिल था.

‘राजनीतिक बहुलवाद’ पैरामीटर के तहत कुछ कारकों के लिए भारत को वांछित पाया गया. उदाहरण के लिए, जहां महिला मतदाताओं की भागीदारी समय के साथ बढ़ी है और कोटा ने चुनावों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया है, लेकिन रिपोर्ट कहती है कि भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक अधिकार को खतरा बना हुआ है.

इसने ‘कई पर्यवेक्षकों’ के हवाले से नागरिकता संशोधन अधिनियम (जिसके नियम अभी तक तैयार नहीं किए गए हैं) और मुस्लिम मतदाताओं को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित किए जाने की संभावना जताई है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है:

‘आबादी के अधिकारहीन तबकों को पूर्ण राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए व्यावहारिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. मुस्लिम उम्मीदवारों ने 2019 के लोकसभा चुनावों में पिछली बार की 22 सीट से बढ़कर 545 में से 27 सीट जीतीं. हालांकि, यह केवल सदन की 5% सीटों के बराबर है, जबकि 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में मुसलमानों की आबादी 14.2 फीसदी है.’

जहां तक सरकार के कामकाज का सवाल है, रिपोर्ट में लोकायुक्त संस्थानों के अस्तित्व में होने के बावजूद उनके प्रभावहीन होने का जिक्र करते हुए कहा गया है कि आधिकारिक भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत सुरक्षा उपायों की कमी है.

रिपोर्ट कहती है, ‘ये एजेंसियां कार्रवाई शुरू करने में धीमी रही हैं. देश के 29 राज्य-स्तरीय लोकायुक्तों में से केवल 7 के पास अक्टूबर 2022 तक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वार्षिक रिपोर्ट थी. इनके जरिये बहुत कम शिकायतें दर्ज हुई हैं.’

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के बारे में रिपोर्ट कहती है कि हालांकि इसका इस्तेमाल भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए किया गया है, लेकिन विभिन्न कारणों से यह कमजोर हुआ है.

रिपोर्ट कहती है कि आरटीआई आवेदकों को शासन संबंधी महत्वपूर्ण सवालों पर कोई जवाब नहीं मिल रहा है, जवाब नहीं देने के लिए आरटीआई अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या एवं उत्पीड़न, आरटीआई अधिनियम में किए गए हालिया बदलाव जो सूचना आयुक्त को ‘संभावित तौर पर राजनीतिक दबाव’ में लाते हैं, ऐसे कारण रहे जिन्हें रिपोर्ट में सूचीबद्ध किया गया है.

रिपोर्ट भारत के गिरते प्रेस फ्रीडम मानकों पर भी बात करती है.

इसमें कहा गया है, ‘प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले मोदी सरकार के तहत नाटकीय रूप से बढ़ गए हैं और हाल के वर्षों में रिपोर्टिंग काफी कम महत्वाकांक्षी हो गई है. मीडिया की आलोचनात्मक आवाजों को दबाने के लिए अफसर-अधिकारियों/अधिकरणों द्वारा सुरक्षा व्यवस्था, मानहानि, राजद्रोह और हेट स्पीच कानून के साथ-साथ अदालत की अवमानना के आरोपों का इस्तेमाल किया जा रहा है.’

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसा करने वालों को शायद ही कभी सजा मिलती है.

रिपोर्ट में आगे स्वतंत्र न्यूज आउटलेट्स पर छापों का उल्लेख किया गया है. इसमें ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी, आर्टिकल-14 वेबसाइट के पत्रकारों का उत्पीड़न और पिछले साल द वायर  के तीन संपादकों व स्टाफ के कार्यालय एवं घरों पर छापेमारी के उदाहरण दिए गए हैं.

रिपोर्ट कहती है कि न केवल प्रेस की स्वतंत्रता, बल्कि शैक्षणिक स्वतंत्रता भी पिछले कुछ वर्षों में काफी कमजोर हुई है. विश्वविद्यालय परिसरों में हिंसा बढ़ गई है और यहां तक कि प्रोफेसरों पर भी हमले किए गए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘शिक्षाविदों पर भाजपा सरकार द्वारा संवेदनशील माने जाने वाले विषयों, विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों और भारतीय कश्मीर में हालात पर चर्चा न करने का दबाव है. प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों को सत्तारूढ़ दल के प्रति उनकी वफादारी के लिए चुने जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है.’ रिपोर्ट में कर्नाटक के हिजाब विवाद का भी उल्लेख है.

रिपोर्ट 2017 और 2021 के बीच 6,677 एनजीओ के विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के लाइसेंस रद्द करने पर चिंता व्यक्त करती है और 2022 में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले दो एनजीओ के खिलाफ हुई इसी तरह की कवायद का उल्लेख करती है.

रिपोर्ट में भाजपा से निष्कासित नुपूर शर्मा के पैगंबर मुहम्मद पर दिए बयान से पनपी हिंसा और देश के विभिन्न हिस्सों में मुसलमानों के घरों पर चलाए गए बुलडोजर का भी जिक्र किया गया है.