आयोजकों ने दिल्ली हाईकोर्ट में तर्क प्रस्तुत किया कि ‘वर्तमान भारत के संदर्भ में फासीवाद को समझना’ विषय पर होने वाले सेमिनार के लिए उन्होंने दिल्ली पुलिस को क़रीब डेढ़ महीने पहले आवेदन दिया था, लेकिन उसने उसे लटकाए रखा और आयोजन के महज 36 घंटे पहले अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने शनिवार (11 मार्च) को ‘वर्तमान भारत के संदर्भ में फासीवाद को समझना’ विषय पर एक सेमिनार की अनुमति देने से इनकार करने वाले दिल्ली पुलिस के आदेश पर रोक लगा दी.
आयोजकों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाकर कहा था कि पुलिस ने निर्धारित कार्यक्रम से केवल 36 घंटे पहले अनुमति देने से इनकार कर दिया.
याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस तुषार राव गडेला ने दिल्ली पुलिस के आदेश को रद्द कर दिया, लेकिन आयोजकों और पुलिस दोनों से एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिए कहा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सेमिनार शांतिपूर्ण वातावरण में हो.
इसके बाद विद्वानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अधिवक्ताओं और राजनेताओं के सामूहिक मंच ‘भारत बचाओ’ द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार अब 11 और 12 मार्च को दिल्ली के हरकिशन सिंह सुरजीत भवन में होना तय हुआ.
समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले याचिकाकर्ता गाडे इना रेड्डी और डॉ. मोंड्री फ्रांसिस गोपीनाथ ने दिल्ली पुलिस के 9 मार्च के आदेश को चुनौती दी थी.
उनकी याचिका में उन्होंने तर्क दिया कि घटना का विवरण पुलिस के साथ एक महीने से अधिक समय पहले 24 जनवरी को साझा किया गया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें लटकाए रखा और अंतत: दो दिन पहले अनुमति देने से इनकार कर दिया.
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा ही सेमिनार कई और स्थानों पर भी आयोजित किया गया है, जिनमें राजस्थान में 5 फरवरी को हुआ एक सेमिनार भी शामिल है और कोई भी अप्रिय घटना नहीं हुई, जैसा कि दिल्ली पुलिस को आशंका है.
याचिकाकर्ताओं ने संगोष्ठी में प्रख्यात वक्ताओं के शामिल होने की बात कही, जिन्हें समाज से संबंधित मुद्दों पर अपनी राय रखनी है.
दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया कि याचिका में प्रदान की गई जानकारी उनके लिए उपलब्ध नहीं थी और इसी के चलते उसने उन्हें किसी प्रकार की ‘दुर्घटना’ की आशंका के मद्देनजर कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार कर दिया. हालांकि, आयोजकों ने कहा कि उनका आवेदन एक महीने से अधिक समय से दिल्ली पुलिस के पास था.
पुलिस की याचिका खारिज करते हुए जस्टिस गडेला ने कहा, ‘याचिकाकर्ता आश्वासन और वचन देता है कि जहां तक आयोजन समिति और प्रतिभागियों का सवाल है, तो कोई भी अप्रिय घटना नहीं होगी.’
हालांकि, उन्होंने सेमिनार के आयोजकों को 10 वक्ताओं और अन्य आमंत्रितों (पते, पहचान पत्र आदि) के व्यक्तिगत विवरण दिल्ली पुलिस को प्रस्तुत करने के लिए कहा.
दिल्ली पुलिस के वकील ने अदालत से गुहार लगाई थी कि अगर पुलिस अधिकारियों को इस तरह की जानकारी मुहैया करा दी जाए तो उनकी चिंता दूर हो जाएगी.
याचिकाकर्ताओं के वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने इस शर्त पर सहमति जताई और कहा कि कार्यक्रम से पहले पुलिस को वक्ताओं और आमंत्रितों की एक सूची दी जाएगी.
हालांकि, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं ने आयोजकों पर ऐसी शर्तें लगाने के अदालत के आदेश पर आपत्ति जताई. दिल्ली पुलिस के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने पूछा कि क्या महत्वपूर्ण मामलों पर सेमिनार आयोजित करना अब सामान्य नहीं रह गया है.
उन्होंने ट्विटर पर पूछा, ‘आयोजकों को कैसे पता चलेगा कि कौन आएगा? यह खुला निमंत्रण है. या, अब दिल्ली में ओपेन सेमिनार नहीं होंगे? और मैं एक सेमिनार में भाग लेने से पहले अपनी सारी जानकारी पुलिस को क्यों दूं?’
उन्होंने कहा कि असंतुष्टों और संदिग्ध अपराधियों को दंडित करने के लिए सरकार द्वारा बुलडोजर के दुरुपयोग पर हाल ही में नियोजित कार्यक्रम को पुलिस द्वारा अनुमति से इनकार करने के बाद रद्द कर दिया गया था.
How are the organisers supposed to know who would come? It is an open invitation. Or, now we wouldn’t have any open seminars in Delhi anymore? And why should I furnish all my details to the police before attending a seminar?+
— Apoorvanand अपूर्वानंद (@Apoorvanand__) March 11, 2023
उन्होंने कहा, ‘एक ऐसे देश में जहां मुसलमानों के बलात्कार और हत्या का आह्वान करने वाली सभाओं की अनुमति पुलिस द्वारा दी जाती है, फासीवाद को समझने पर एक सेमिनार सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है. विषय होना चाहिए ‘भारत में फासीवाद का अनुभव’.’
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