भारत फिर हथियारों का सबसे बड़ा आयातक बना, रूस से सबसे अधिक हथियार आयात किए: रिपोर्ट

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियारों के आयात में भारत की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक 11 प्रतिशत थी. भारत हथियारों की ख़रीद के मामले में 2013 से 2017 के बीच भी सबसे बड़ा आयातक था, जो कि पूरे विश्व में कुल हथियार आयात का 12 प्रतिशत है.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/ADGPI - Indian Army)

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हथियारों के आयात में भारत की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक 11 प्रतिशत थी. भारत हथियारों की ख़रीद के मामले में 2013 से 2017 के बीच भी सबसे बड़ा आयातक था, जो कि पूरे विश्व में कुल हथियार आयात का 12 प्रतिशत है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/ADGPI – Indian Army)

नई दिल्ली: एक रिपोर्ट में पता चला है कि साल 2013-17 और 2018-22 के बीच भारत द्वारा किए जाने वाले हथियारों का आयात 11 प्रतिशत तक गिर गया है, हालांकि इसके बावजूद देश अभी भी सैन्य साजोसामान का दुनिया का शीर्ष आयातक है.

बीते सोमवार को स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (एसआईपीआरआई/सिपरी) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है. यह ऐसे समय में आई है, जब भारत ने रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया है.

पांच साल की अवधि में हथियारों के आयात को मापने वाले इस थिंक टैंक द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, वैश्विक हथियारों के आयात में भारत की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक 11 प्रतिशत थी. इसके बाद सऊदी अरब (9.6 प्रतिशत), कतर (6.4 प्रतिशत), ऑस्ट्रेलिया (4.7 प्रतिशत) और चीन (4.7 प्रतिशत) का स्थान है.

मालूम हो कि भारत 2013 से 2017 के बीच बड़े हथियारों की खरीद के मामले में सबसे बड़ा आयातक था, जो कि पूरे विश्व में कुल हथियार आयात का 12 प्रतिशत है.

सिपरी की ही रिपोर्ट के अनुसार उस दौरान भारत में हथियार आयात करने की दर में 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. यह बढ़ोतरी साल 2008 से 2012 और 2013 से 2017 के बीच दर्ज की गई थी.

हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, नवीनतम रिपोर्ट पिछले साल की सिपरी रिपोर्ट के अनुरूप है. 2022 में इसने कहा था कि 2012-16 और 2017-21 के बीच भारत का आयात 21 प्रतिशत गिर गया था, लेकिन देश अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक था.

नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के आयात में गिरावट के कारणों में स्थानीय निर्माण के साथ आयात को बदलने के प्रयास और एक जटिल खरीद प्रक्रिया शामिल है.

भारत ने रक्षा में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए पिछले चार से पांच वर्षों में कई उपाय किए हैं. इनमें देश निर्मित सैन्य साजोसामान खरीदने के लिए एक अलग बजट बनाना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करना और सैकड़ों हथियारों और प्रणालियों को अधिसूचित करना शामिल है, जिन्हें आयात नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा भारत की अगले पांच से छह वर्षों में इस मामले में स्वदेशी बनने की भी योजना है.

पिछले तीन वर्षों में 84,598 करोड़ रुपये, 70,221 करोड़ रुपये और 51,000 करोड़ रुपये की तुलना में इस वर्ष के रक्षा बजट में घरेलू खरीद के लिए लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, हथियार आयात श्रेणी में रैंकिंग प्रणाली गतिशील है, क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करती है कि किसी विशेष वर्ष में ऑर्डर कैसे दिए जाते हैं.

उदाहरण के लिए 2019 की सिपरी रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत अब हथियारों का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक नहीं रहा है, यह स्थिति दशकों तक बनी रही. सऊदी अरब 2014 और 2018 के बीच हथियारों के आयात की वैश्विक हिस्सेदारी में शीर्ष पर रहा था.

इस अवधि में सऊदी अरब के हथियारों के आयात की हिस्सेदारी का 12 प्रतिशत था. इसके बाद 9.5 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ भारत दूसरे स्थान पर रहा था.

सिपरी द्वारा जारी नए आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका पिछले पांच वर्षों में दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य निर्यातक था, जिसके पास वैश्विक निर्यात का 40 प्रतिशत हिस्सा था. इसके बाद रूस (16 प्रतिशत), फ्रांस (11 प्रतिशत), चीन (5.2 प्रतिशत) और जर्मनी (4.2 प्रतिशत) का नंबर आता है.

साल 2013-17 और 2018-22 के बीच अमेरिकी हथियारों का निर्यात 14 प्रतिशत बढ़ा, जबकि इसी अवधि के दौरान रूस का निर्यात 31 प्रतिशत गिर गया. वहीं, भारत में रूस का आयात भी 37 प्रतिशत तक गिर गया.

सिपरी के अनुसार, साल 2013-17 और 2018-22 के बीच रूसी हथियारों का निर्यात उसके 10 सबसे बड़े प्राप्तकर्ताओं में से 8 तक गिर गया.

रूसी हथियारों के सबसे बड़े प्राप्तकर्ता भारत में निर्यात में 37 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि अन्य 7 के निर्यात में औसतन 59 प्रतिशत की कमी आई. हालांकि, रूसी हथियारों का निर्यात चीन (39 प्रतिशत) और मिस्र (44 प्रतिशत) तक बढ़ गया और वे रूस निर्मित हथियारों के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े प्राप्तकर्ता बन गए हैं.

इसके अलावा 2013-17 और 2018-22 के बीच फ्रांस के हथियारों के निर्यात में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इनमें से अधिकांश निर्यात एशिया और ओशिनिया और मध्य पूर्व के राज्यों को किया गया था.

भारत को 2018-22 में फ्रांस के हथियारों के निर्यात का 30 प्रतिशत प्राप्त हुआ और फ्रांस ने रूस के बाद भारत को हथियार निर्यात करने वाले दूसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में अमेरिका को पछाड़ दिया है.

1991 से 2021 के अंत तक यूक्रेन ने कुछ प्रमुख हथियारों का आयात किया था. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद अमेरिका और कई यूरोपीय राज्यों से सैन्य सहायता के परिणामस्वरूप यूक्रेन 2022 के दौरान (कतर और भारत के बाद) प्रमुख हथियारों का तीसरा सबसे बड़ा आयातक बन गया और 2018-22 के लिए 14वां सबसे बड़ा आयातक बन गया. पांच साल की अवधि में यूक्रेन का वैश्विक हथियारों के आयात में 2.0 प्रतिशत का योगदान है.

सिपरी आर्म्स ट्रांसफर प्रोग्राम के वरिष्ठ शोधकर्ता पीटर डी. वेज़मैन ने कहा, लड़ाकू विमानों और लंबी दूरी की मिसाइलों की आपूर्ति यूक्रेन में युद्ध को कैसे आगे बढ़ा सकती है, इन चिंताओं के कारण नाटो देशों ने 2022 में उनके लिए यूक्रेन के अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया था. साथ ही उन्होंने युद्ध में शामिल अन्य देशों, विशेष रूप से मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया, को ऐसे हथियारों की आपूर्ति की.

साल 2018-22 में शीर्ष 10 हथियार आयातकों में से तीन देश (सऊदी अरब, कतर और मिस्र) मध्य पूर्व के थे.

सऊदी अरब 2018-22 में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक था. इस अवधि में इसने सभी हथियारों के आयात का 9.6 प्रतिशत प्राप्त किया. कतर के हथियारों के आयात में 2013-17 और 2018-22 के बीच 311 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे यह 2018-22 में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक बन गया.