यूनाइटेड किंगडम में राहुल गांधी द्वारा मोदी सरकार की आलोचना में कुछ नया नहीं था, सिवाय इसके कि वे विदेशी दर्शकों के सामने बोल रहे थे. संभव है कि यही वजह है कि भाजपा- जो 2024 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को वैश्विक नेता के तौर पर पेश करना चाहती है- इतनी बौखलाई हुई नज़र आ रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कई मंत्री कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से यूनाइटेड किंगडम में उनके द्वारा कथित तौर पर भारत की छवि ख़राब करने और भारतीय लोकतंत्र की ढहती संरचनाओं को बहाल करने में विदेशी हस्तक्षेप की मांग करने के लिए माफी मांगने को कह रहे हैं. मसला इतना बढ़ चुका है कि संसद के बजट सत्र में सदन की कार्यवाही ठप पड़ी हुई है.
भाजपा नेताओं द्वारा राहुल गांधी पर चौतरफा हमला तबसे शुरू हुआ, जब उन्होंने अपने हालिया लंदन दौरे पर पत्रकारों, शिक्षाविदों, शोधार्थियों और नागरिक समाज कार्यकर्ताओं से बात करते हुए केंद्र सरकार और इसके द्वारा सत्ता के दुरुपयोग की आलोचना की.
जहां कांग्रेस का कहना है कि किसी तरह की माफी का सवाल ही नहीं उठता, वहीं केंद्र सरकार गांधी के बयानों को घुमाकर राजनीतिक हित साध रही है और इसी बहाने अडानी विवाद से ध्यान भटका रही है, जिसे लेकर इस संसद सत्र के पहले भाग में सरकार पर कई सवाल उठे थे.
आखिर राहुल गांधी ने लंदन में ऐसा क्या कहा था?
क्या उन्होंने वाकई में बाहरी देशों से भारत के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप करने को कहा, जैसा कि लोकसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया है? क्या उन्होंने लंदन में भारत का ‘अपमान’ किया, जैसा प्रधानमंत्री कह रहे हैं?
क्या थे राहुल गांधी के बयान?
लंदन में एक थिंक-टैंक चैथम हाउस में हुई एक चर्चा में एक सवाल के जवाब में कहा, ‘देखिए, सबसे पहले, यह हमारी समस्या है (मोदी के तहत लोकतांत्रिक संस्थानों का क्षरण); यह आंतरिक समस्या है और यह भारत की समस्या है और समाधान अंदर से ही होगा, बाहर से नहीं. हालांकि, भारत में लोकतंत्र के पैमाने का अर्थ है कि भारत में लोकतंत्र वैश्विक सार्वजनिक भले के लिए है. यह हमारी सीमाओं से कहीं आगे जाकर प्रभाव डालता है.’
उन्होंने कहा,
‘यदि भारतीय लोकतंत्र ध्वस्त हो जाता है, तो मेरे विचार में यह दुनिया के लिए लोकतंत्र को बहुत गंभीर, संभवतः घातक झटका होगा. तो यह आपके लिए भी जरूरी है. यह सिर्फ हमारे लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है. हम अपनी समस्या से निपट लेंगे, लेकिन आपको पता होना चाहिए कि यह समस्या वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ने वाली है. यह सिर्फ भारत में ही चलने वाला नहीं है और आप इसके बारे में क्या करते हैं, यह निश्चित रूप से आप पर ही निर्भर करता है. आपको पता होना चाहिए कि भारत में क्या हो रहा है- एक लोकतांत्रिक मॉडल के विचार पर हमला किया जा रहा है, उसे धमकाया जा रहा है.’
हालांकि, भाजपा ने उनके एक बयान को विशेष रूप से यह आरोप लगाने के लिए चुना कि गांधी ने भारत के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप की मांग की थी – ऐसा कुछ, जो भाजपा के अनुसार, दुनिया में भारत की स्वायत्त स्थिति से समझौता करता है.
जबकि गांधी ने केवल उन घटनाओं पर दर्शकों को ध्यान दिलाया था कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसी पश्चिमी शक्तियां जो खुद पर लोकतंत्र का रक्षक होने को लेकर गर्व करती हैं, भारत में लोकतंत्र के व्यवस्थित रूप से हो रहे क्षरण को लेकर ‘बेखबर’ हैं.
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के पहले कार्यक्रम में राहुल गांधी ने यह कहा था:
‘सभी जानते हैं और यह काफी खबरों में रहा है कि भारतीय लोकतंत्र दबाव में है, इस पर हमला हो रहा है. मैं भारत में एक विपक्षी नेता हूं और हम इसी तरह से काम कर रहे हैं. हो क्या रहा है कि लोकतंत्र के लिए जिस संस्थागत ढांचे की जरूरत होती है- संसद, स्वतंत्र प्रेस, न्यायपालिका- सिर्फ इकट्ठे हो जाने का विचार, सिर्फ किसी और तरफ मुड़ जाने का विचार… ये सब बाधित होते जा रहे हैं. हमारे लोकतंत्र के मूल ढांचे पर हमला हो रहा है. संविधान में भारत को राज्यों का संघ बताया गया है और संघ को चर्चा और बातचीत की जरूरत होती है. यह तेजी से खतरे की जद में आ रहा है.’
इसी तरह, इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन द्वारा लंदन में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा:
‘लोग भारत और उसके लोकतंत्र के पैमाने को नहीं समझते हैं. तो, अगर यूरोप में लोकतंत्र अचानक गायब हो जाए तो आप कैसे प्रतिक्रिया देंगे? आप चौंक जाएंगे और आपकी प्रतिक्रिया होगी कि ‘ओह! यह लोकतंत्र के लिए एक बड़ा झटका है’. लेकिन अगर यूरोप का साढ़े तीन गुना ढांचा अचानक गैर-लोकतांत्रिक हो जाए तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? ऐसा हो रहा है. और इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो भविष्य में होने वाला है. यह पहले ही हो चुका है.’
इसी तरह की बात उन्होंने चैथम हाउस में कही थी:
‘हैरानी की बात यह है कि लोकतंत्र के तथाकथित रक्षक, जो अमेरिका, यूरोपीय देश हैं, इस बात से बेखबर लगते हैं कि लोकतांत्रिक मॉडल का एक बड़ा हिस्सा पहले की तरह हो गया है. विपक्ष लड़ रहा है और यह केवल एक भारत की लड़ाई नहीं है, असल में यह एक बड़ी लड़ाई है, लोकतांत्रिक लोगों के एक बड़े हिस्से की लड़ाई.’
अपने भाषणों में गांधी ने यह जिक्र भी किया कि उनका फोन निगरानी में रहा है, और विपक्ष की आलोचना सरकार द्वारा इसकी ताकत के इस्तेमाल से बंद हो गई है. उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी, जीएसटी से जुड़ी समस्याएं, किसान कानूनों या यहां तक कि भारत की सीमाओं पर चीनी आक्रमण जैसे विवादास्पद मसलों पर संसद में चर्चा नहीं होने दी जाती है.
उन्होंने यह आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र द्वारा मीडिया और अन्य संस्थानों जैसे प्लेटफार्मों पर कथित कब्जे के चलते विपक्ष का जनता के साथ संवाद करना मुश्किल होता जा रहा है, कहा, ‘तो, उस दमघोंटू ने हमें खुद से एक बुनियादी सवाल करने को मजबूर कर दिया … जब मीडिया पक्षपाती है और जब संस्थानों पर कब्जा कर लिया गया है तो हम भारत के लोगों के साथ कैसे संवाद कर सकते हैं? कांग्रेस पार्टी के भीतर हमें जो जवाब मिला, वह देश भर में यह पदयात्रा (भारत जोड़ो यात्रा) थी.’
हो सकता है कि इन आलोचनाओं ने भाजपा की किसी दुखती रग को छू लिया हो, खासकर ऐसे समय में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी पार्टी द्वारा एक वैश्विक नेता के रूप में पेश किया जा रहा है, जिसने भारत को ‘विश्वगुरु’ के तौर पर दिखाने का प्रयास किया है.
वास्तव में, यह भी संभव है कि 2024 के आम चुनावों के लिए भाजपा का अभियान इसी तरह के दावों पर केंद्रित रहे.
राहुल का आरएसएस पर नज़रिया भी भाजपा की नाराज़गी की वजह हो सकता है
भाजपा को ख़फ़ा करने वाली एक बात यह भी हो सकती है कि गांधी ने लंदन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सीधे तौर पर आलोचना की, जिसके कारण आरएसएस के दूसरे सबसे बड़े नेता दत्तात्रेय होसबोले ने उन पर निशाना साधा.
आरएसएस के कई नेता भाजपा के नेता भी हैं. इसके अलावा, संघ परिवार की विदेशों में भी बड़ी उपस्थिति है और यह भारत में भाजपा के अभियानों पर ध्यान आकर्षित करने और विदेशों में नरेंद्र मोदी की ‘लार्जर दैन लाइफ’ छवि बनाने में खासा सक्रिय है.
ऐसे में राहुल गांधी ने आरएसएस की तुलना मिस्र के इस्लामिक संगठन ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ से की और संघ को एक ‘फासीवादी और कट्टरपंथी संगठन’ बताया.
उन्होंने कहा, ‘2004 में जब मैं राजनीति में आया था, तब भारत में लोकतांत्रिक मुकाबला राजनीतिक दलों के बीच हुआ करता था और मैंने कभी नहीं सोचा था कि इस मुकाबले का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा. इसके बदलने का कारण यह है कि आरएसएस नाम के एक संगठन, एक कट्टरपंथी, फासीवादी संगठन ने मूल रूप से भारत के सभी संस्थानों पर कब्जा कर लिया है.’
उन्होंने जोड़ा, ‘आरएसएस एक सीक्रेट सोसाइटी है. यह मुस्लिम ब्रदरहुड की तर्ज पर बनाया गया है और विचार यह है कि सत्ता में आने के लिए लोकतांत्रिकमुकाबले का इस्तेमाल किया जाए और फिर लोकतांत्रिक चुनाव को ही खत्म कर दिया जाए. यह बात मुझे चौंकाती है कि वे हमारे देश के विभिन्न संस्थानों पर कब्जा करने में कितने सफल रहे हैं. प्रेस, न्यायपालिका, संसद, चुनाव आयोग और सभी संस्थाएं दबाव में हैं, और किसी न किसी तरह से नियंत्रित की जा रही हैं.’
गत कई वर्षों से राहुल गांधी लगातार भाजपा और संघ परिवार की ऐसी आलोचनाएं कर रहे हैं. हाल ही में हुई भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस द्वारा उनकी राय को और बढ़ावा मिला. लंदन में उनके बयान नए नहीं थे, सिवाय इस बात के कि वे अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने बोल रहे थे.
राजनीतिक विश्लेषक यह पूछ सकते हैं कि क्या गांधी का अपनी आलोचनाओं को विदेश ले जाना समझदारी था या नहीं, वो भी यह देखते हुए कि अतीत में जब भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के सामने बात की है, तो उन्हें भाजपा की तरफ से इसी तरह के हमलों का सामना करना पड़ा है. हालांकि, गांधी ऐसी आलोचनाएं करते हुए खुद पर होने वाले इस तरह के हमलों की परवाह करते नहीं दिखते.
सरकार के विरोधी पक्ष के कई लोग निजी तौर पर कह रहे हैं कि गांधी और कांग्रेस को अपनी आलोचनाओं की रूपरेखा निर्धारित करने की जरूरत पड़ सकती है, खासकर तब जब चुनावी लड़ाई में भाजपा के पास उग्र राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा सहारा है. चूंकि अब लोकसभा चुनाव केवल सालभर दूर हैं, आलोचकों का मानना है कि कांग्रेस को मोदी सरकार में जनता के सामने पेश आई स्पष्ट समस्याओं- जैसे महंगाई, बेरोजगारी और भारत में सामाजिक सद्भाव में गिरावट पर बेहतर ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ रणनीति बनाने की भी जरूरत होगी, ऐसे मुद्दे जो गांधी को मतदाताओं और उनकी अपनी पार्टी के करीब ला सकते हैं.
लेकिन इस तरह के चुनावी विचार अब तक राहुल गांधी को एक सीधी बात करने वाला नेता होने से रोक नहीं सके है.
इस बीच, राहुल गांधी की आलोचना से भाजपा को न केवल विपक्ष की अडानी विवाद की न्यायिक जांच की मांग और इसे लेकर मोदी सरकार के खिलाफ आरोपों से ध्यान हटाने का एक और अवसर मिला है, बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले गांधी और कांग्रेस को बदनाम करने का भी मौका मिला है.
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