साल 2005 के बाद से ईडी द्वारा दर्ज 5,906 मामलों में से जांच एजेंसी केवल 1,142 मामलों में जांच पूरी करने और चार्जशीट दाखिल करने में कामयाब रही है. जांच से पता चलता है कि साल 2014 से 121 राजनेता ईडी की जांच के दायरे में रहे हैं, जिनमें से 115 विपक्ष के नेता हैं.
नई दिल्ली: साल 2005 से देश में आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली प्रमुख जांच एजेंसियों में से एक प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 5,906 मामले दर्ज किए हैं. उनमें से एजेंसी केवल 25 मामलों का निपटान करने में सफल रही है, जो कुल मामलों का मात्र 0.42 प्रतिशत है, लेकिन ईडी चाहती है कि उसके 96 प्रतिशत दोषसिद्धि का दावा करते समय लोग इस छोटी संख्या पर ध्यान न दें.
ईडी ने 25 मामलों में से 24 मामलों में दोषसिद्धि की है, लेकिन तथ्य यह है कि अपने 17 वर्षों के अस्तित्व में वह केवल 25 मामलों को निष्कर्ष तक पहुंचाने में कामयाब रही है. यह राज्य तंत्र और न्यायपालिका दोनों के काम करने के तरीके को स्पष्ट करता है.
केंद्रीय जांच एजेंसी ने तीन कानूनों के तहत 31 जनवरी 2023 तक अपनी कार्रवाई का अद्यतन डेटा प्रकाशित किया है. इन तीन कानूनों में मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए), विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) और भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम (एफईओए) शामिल हैं.
एजेंसी अपेक्षाकृत कम निपटान दर का कारण साल 2005 में अस्तित्व में आए पीएमएलए कानून और कानूनी रणनीतियों का उपयोग करने और जांच में तेजी लाने के अभियोजन पक्ष के प्रयास को विफल करने वाले ‘अमीर अभियुक्तों’ को बताती है, जो ‘अच्छे वकीलों’ से पैरवी कराने में सक्षम रहे हैं.
मालूम हो कि सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर खासकर विपक्षी नेताओं के खिलाफ, समय-समय पर ईडी को हथियार बनाकर निशाना साधने का आरोप लगाया जाता रहा है.
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र की पूर्व महाविकास अघाड़ी सरकार के मंत्रियों से लेकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं तक कई विपक्षी नेताओं ने हाल के वर्षों में ईडी जांच का सामना किया है.
हालांकि एजेंसी ने हाल ही में जारी आंकड़ों में कहा है कि कुल मामलों में से केवल 3 प्रतिशत मामलों में मौजूदा और पूर्व निर्वाचित प्रतिनिधि ही आरोपी हैं. इसने आगे कहा कि 5,906 मामलों में से केवल 176 में मौजूदा और पूर्व सांसद, विधायक और एमएलसी शामिल हैं.
पिछले साल सितंबर महीने में द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इन आंकड़ों को रखा गया था. इससे पता चलता है कि राजनेताओं से जुड़े लगभग 85 प्रतिशत मामले विपक्ष के लोगों के खिलाफ दर्ज किए गए थे. रिपोर्ट कहती है कि ईडी का पैटर्न, एक अन्य केंद्रीय एजेंसी सीबीआई द्वारा अपनाए गए पैटर्न को प्रतिबिंबित करता है.
इंडियन एक्सप्रेस ने विपक्षी राजनेताओं और उनके करीबी रिश्तेदारों की संख्या में ‘तेज वृद्धि’ भी पाई थी, जो ‘2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से’ इसकी जांच के दायरे में आ गए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘जांच से पता चलता है कि उस वर्ष से 121 प्रमुख राजनेता ईडी की जांच के दायरे में रहे हैं, जिनमें से एजेंसी ने 115 विपक्षी नेताओं (95 प्रतिशत) पर मामला दर्ज किया, छापा मारा, पूछताछ की या गिरफ्तार किया है.
5,906 मामलों में से ईडी केवल 1,142 मामलों में जांच पूरी करने और चार्जशीट दायर करने में सफल रही है. यह संख्या काफी कम है, क्योंकि अधिकांश अन्य केंद्रीय एजेंसियों की तरह ईडी पर भी केवल मामले दर्ज करने और उन्हें तार्किक अंत तक न पहुंचाने के आरोप हैं.
समाचार वेबसाइट स्क्रॉल ने भी ईडी के कामकाज की पड़ताल की है और पाया कि पीएमएलए कानून में 2019 के संशोधन के बाद से मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं.
स्क्रॉल की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अप्रैल 2020 और मार्च 2021 के बीच जब भारत ने कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए लॉकडाउन लगा था, उस समय पीएमएलए के तहत 981 मामले दर्ज किए गए. इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद से यह सबसे अधिक मामले हैं. हालांकि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में सजा की दर निराशाजनक बनी हुई है.’
यहां भी आंकड़े विपक्षी नेताओं को निशाना बनाए जाने की ओर इशारा करते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत में लगभग हर प्रमुख विपक्षी दल के नेता मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों से जूझ रहे हैं. महत्वपूर्ण रूप से उनके खिलाफ जांच अक्सर तब सामने आई है, जब ये भाजपा के साथ उच्च-स्तर की लड़ाई में उलझे हुए थे.’
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