‘विदेशी वकील और क़़ानूनी फर्म सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों पर क्लाइंट को सलाह दे सकते हैं’

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बीते 10 मार्च को विदेशी वकीलों और क़ानूनी फर्मों के लिए भारत में प्रवेश के द्वार खोल दिए थे. नियमों को उपजी ग़लतफ़हमियों के बाद काउंसिल ने कहा है कि विदेशी वकीलों और क़ानूनी फर्मों को केवल ग़ैर-मुक़दमेबाजी वाले क्षेत्रों में कार्य करने की अनुमति दी जाएगी. 

/
सुप्रीम कोर्ट में वकील. (फोटो: शोम बसु)

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बीते 10 मार्च को विदेशी वकीलों और क़ानूनी फर्मों के लिए भारत में प्रवेश के द्वार खोल दिए थे. नियमों को उपजी ग़लतफ़हमियों के बाद काउंसिल ने कहा है कि विदेशी वकीलों और क़ानूनी फर्मों को केवल ग़ैर-मुक़दमेबाजी वाले क्षेत्रों में कार्य करने की अनुमति दी जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट में वकील. (फोटो: शोम बसु)

नई दिल्ली: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने रविवार (19 मार्च) को कहा कि भारत में विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों के प्रवेश को अनुमति देने वाले हालिया संशोधन को लेकर कुछ ‘गलतफहमियां’ हैं और उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी सेवाएं केवल अंतरराष्ट्रीय कानूनों तक सीमित रहेंगी, जो केवल विदेशी ग्राहकों को ही दी जा सकती हैं.

भारत में कानून की प्रैक्टिस और शिक्षा को नियंत्रित करने वाले वैधानिक निकाय बार काउंसिल ने बीते 10 मार्च को विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों के लिए भारत में प्रवेश के द्वार खोल दिए थे.

हालांकि, नियम विदेशी वकीलों और फर्मों को अदालतों में उपस्थित होने की अनुमति नहीं देते हैं, उन्हें पारस्परिक आधार पर लेन-देन और कॉरपोरेट कार्य करने की अनुमति होगी.

हालांकि, वकीलों के एक संघ ने बार काउंसिल पर ‘विकृत प्राथमिकताएं’ रखने का आरोप लगाते हुए विरोध किया था.

एक प्रेस विज्ञप्ति में संस्था ने कहा कि नियम अंतरराष्ट्रीय वकीलों और मध्यस्थों को केवल विदेशी और अंतरराष्ट्रीय कानून पर भारत में ग्राहकों को सलाह देने में सक्षम बनाते हैं. इसमें कहा गया है, ‘विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों को केवल गैर-मुकदमेबाजी वाले क्षेत्रों में कार्य करने की अनुमति दी जाएगी.’

विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘उन्हें किसी भी अदालत, ट्रिब्यूनल, बोर्ड, किसी भी वैधानिक या नियामक प्राधिकरण या कानून रूप से अधिकृत किसी भी मंच पर प्रस्तुत होने की अनुमति नहीं होगी. विदेशी वकीलों को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में अपने ग्राहकों के लिए उपस्थित होने की अनुमति दी जाएगी.’

बार एंड बेंच के अनुसार, विदेशी वकीलों को अनुमति देने वाले बार काउंसिल नियम विदेशी कानून पर सलाह देने के अपने दायरे में सीमित हैं और ऐसी सलाह केवल एक व्यक्ति, फर्म, कंपनी, निगम, ट्रस्ट, समाज आदि को दी जा सकती है, जिनके पास किसी विदेशी देश में एक पता या कार्यालय या मुख्यालय हो.

बार काउंसिल की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि ये नियम बहुराष्ट्रीय निगमों और विदेशी वाणिज्यिक संस्थाओं को मध्यस्थता की कार्यवाही के लिए एक स्थल के रूप में भारत का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे. इसमें कहा गया है:

‘अनुभव और तथ्य बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के मामले में बहुराष्ट्रीय कंपनियां और विदेशी वाणिज्यिक संस्थाएं भारत को मध्यस्थता की कार्यवाही के स्थान के रूप में पसंद नहीं करती हैं, क्योंकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता की कार्यवाही में सलाह देने के लिए अपने ही देशों से वकीलों और कानूनी फर्मों को लाने की अनुमति नहीं है, इसलिए वे इस काम के लिए लंदन, सिंगापुर, पेरिस आदि को पसंद करते है. बार काउंसिल के नियम अब भारत को इस तरह की अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही के लिए एक स्थान के रूप में तरजीह देने के लिए प्रोत्साहित करेंगे. इस प्रकार, भारत को अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का केंद्र बनने में मदद मिलेगी.’   

बार काउंसिल ने कहा कि मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों के प्रवेश और प्रबंधन के लिए नियम बनाए जाने चाहिए. इसी के बाद नियम बनाए गए थे. प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि बार काउंसिल भारतीय वकीलों के ‘हितों और कल्याण की रक्षा के लिए समर्पित’  है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.