मोदी सरकार का पार्टियों को विदेशी चंदे की अनुमति देना लोकतंत्र को असली ख़तरा: पूर्व वित्त सचिव

पूर्व वित्त सचिव ईएएस सरमा ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखे एक पत्र में कहा है कि विदेशी चंदे को लेकर मूल समस्या से निपटने के बजाय हर्ष मंदर के एनजीओ अमन बिरादरी का उत्पीड़न न्याय का उपहास करना है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

पूर्व वित्त सचिव ईएएस सरमा ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखे एक पत्र में कहा है कि विदेशी चंदे को लेकर मूल समस्या से निपटने के बजाय हर्ष मंदर के एनजीओ अमन बिरादरी का उत्पीड़न न्याय का उपहास करना है.

केंद्रीय गृह मंत्रालय. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव ईएएस सरमा ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा हर्ष मंदर के एनजीओ के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की सिफारिश की खबरें ‘न्याय का मजाक’ उड़ाने वाली हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, सरमा ने इन मीडिया रिपोर्ट्स को ‘परेशान करने वाला’ कहा है. उनके पत्र में एनडीटीवी की एक रिपोर्ट का लिंक शामिल है जिसका शीर्षक है ‘केंद्र ने एक्टिविस्ट हर्ष मंदर के एनजीओ के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की’. गृह मंत्रालय के अनाम अधिकारियों के हवाले से कई मीडिया आउटलेट्स द्वारा खबर दी गई है कि ‘विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघनों को लेकर मंदर के एनजीओ के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की गई है.’

सरमा ने अपने पत्र में कहा है कि वह गौबा को याद दिलाना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने खुद ही इसी एफसीआरए का कथित उल्लंघन करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के लिए विदेशी स्रोतों से चंदा पाने का रास्ता बनाया था.

उन्होंने लिखा कि साल दर साल दोनों राष्ट्रीय दल विदेशी स्रोतों से चंदा प्राप्त करते हैं, जो 1976 के विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) और उसके बाद 2010 में आए एफसीआरए के प्रावधानों का उल्लंघन है.

इसके बाद उन्होंने अपने और अन्य द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका का जिक्र किया है.

उन्होंने बताया कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और उन्होंने 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक केस दर्ज किया था, जिसमें 28 फरवरी 2014 को फैसला सुनाते हुए अदालत ने गृह मंत्रालय को 6 महीने के भीतर एफसीआरए का उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ उचित कार्रवाई का निर्देश दिया. इसको चुनौती देते हुए भाजपा और कांग्रेस- दोनों ही सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सरमा ने बताया कि यहां विस्तृत जिरह के 2016 में दोनों को अपनी एसएलपी वापस लेनी पड़ी थीं.

सरमा कहते हैं कि तब सरकार को कथित रूप से एफसीआरए का उल्लंघन करने के लिए भाजपा के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी लेकिन असल में हुआ यह  कि कानूनों को पूर्वव्यापी तरीके से बदल दिया गया. उन्होंने लिखा:

‘सामान्य तौर पर अगर सरकार के पास चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने के प्रति कोई सम्मान होता, तो वह तुरंत एफसीआरए का उल्लंघन करने के लिए भाजपा सहित राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आगे बढ़ती, खासकर इस तथ्य के मद्देनजर कि किसी और के मामले में इस तरह का दान प्राप्त करने की तुलना में राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा मिलना हमारे लोकतंत्र की शुचिता को नुकसान पहुंचा सकता है.

इसके बजाय वर्तमान एनडीए सरकार ने राजनीतिक दलों के बैंक खातों में विदेशी चंदे के प्रवाह के रास्ते में आने वाले कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से बदलने का असाधारण कदम उठाया.’

सरमा ने संशोधनों को विनियमित करने के तरीके को ‘बैक डोर’ से बदलाव करना कहा, जिसने 2016 और 2017 के वित्त अधिनियमों में परिवर्तन को सक्षम बनाया. इसके साथ ही मोदी सरकार ने कंपनी अधिनियम में भी संशोधन किया ताकि निजी कंपनियां राजनीतिक दलों को अधिक दान दें.

इसके बाद सरमा ने अपने पत्र में विवादित चुनावी बॉन्ड का ज़िक्र किया, जिसे लेकर उन्होंने कंपनी चंदे के लिए राजनीतिक दलों के ‘अतृप्त लालच’ की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि इसने भारतीयों को यह जानकारी भी नहीं दी है कि कौन, किस पार्टी को और कैसे फंडिंग कर रहा है.

सरमा ने कहा कि यह प्रक्रिया आम जनता का मजाक उड़ाती है.

‘कंपनी दान के लिए राजनीतिक दलों के अतृप्त लोभ को कोई रहस्य न रखते हुए वर्तमान एनडीए सरकार ने चुनावी बॉन्ड की एक अपारदर्शी प्रणाली की शुरुआत की, जिसके माध्यम से कोई भी और हर कोई राजनीतिक दलों को दान दे सकता है. यह अनुच्छेद 19 में मिले नागरिकों के यह जानने के अधिकार कि देश के राजनीतिक दलों को फंडिंग कौन कर रहा है, के उलट भारत के नागरिकों को यह जानने का अवसर ही नहीं देता है.

यह विचित्र है कि एक सामान्य नागरिक को एक बैंक एक खाते के लिए हजार तरह की बोझिल नो-योर-कस्टमर (केवाईसी) प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है, लेकिन राजनीतिक दलों को बिना किसी जवाबदेही के हजारों करोड़ रुपये पाने के लिए कुछ नहीं करना है!

जबकि हमने सरकार द्वारा दो एफसीआरए कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से संशोधित करने के औचित्य का अलग से विरोध किया है, तब प्रथमदृष्टया, एफसीआरए के तहत एक राजनीतिक दल द्वारा पहले से किए गए अपराध को वैध बनाने और भविष्य में प्राप्त होने वाले विदेशी चंदे को माफ़ करने का कोई नैतिक औचित्य नहीं है, आप इसे किसी भी नाम से पुकारें, चुनावों के लिए विदेशी फंडिंग अस्वीकार्य है.

कंपनियों, खासकर विदेशी कंपनियों को राजनीतिक दलों को चंदा क्यों देना चाहिए? निश्चित रूप से लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए तो नहीं, बल्कि जनता की कीमत पर उन्हें मुनाफाखोरी करने में सक्षम बनाने के लिए ‘इस हाथ दे, इस हाथ दे’ के उसूल पर काम करने के इच्छुक नेता से लाभ पाने के लिए.’

सरमा ने कहा कि उन्होंने एनडीए सरकार के शीर्ष प्रतिनिधियों को ‘इसके द्वारा पेश किए गए प्रतिगामी विधायी संशोधनों’ की अनुपयुक्तता और चुनावों की शुचिता पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव के बारे में लिखा है. उन्होंने द वायर  पर प्रकाशित एफसीआरए संशोधनों पर उनके स्वयं के लेख का भी ज़िक्र किया है.

इसके बाद उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा चलाए जा रहे अमन बिरादरी ट्रस्ट के बारे में बात की है.

नरेंद्र मोदी सरकार के मुखर आलोचक मंदर के खिलाफ सरकारी कार्रवाई नई नहीं हैं. 2021 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीमों ने दिल्ली के वसंत कुंज में मंदर के घर, अधचिनी में उनके दफ्तर और महरौली के एक बाल गृह, जिसे बनाने में उनके संगठन- सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज ने मदद की थी, पर भी छापा मारा था.

इससे पहले 2020 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मंदर द्वारा स्थापित बाल गृह में वित्तीय और प्रशासनिक, दोनों तरह की अनियमितताओं का पता लगाने का दावा किया था. बाद में, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने चार अलग-अलग सर्वेक्षणों में एनसीपीसीआर द्वारा अदालत को सौंपे गए हलफनामे में किए गए अधिकांश दावों का खंडन किया था.

मंदर के एनजीओ को लेकर सरमा ने अपने पत्र में कहा है:

जहां तक मुझे जानकारी है, हर्ष मंदर द्वारा संचालित अमन बिरादरी ट्रस्ट लोगों के बीच बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने की दिशा में बेहतरीन काम कर रहा है. मैं मेरे पास अमन बिरादरी के खिलाफ गृह मंत्रालय द्वारा बनाए गए मामले का कोई विवरण होने का दावा नहीं करता, लेकिन सरकार को मेंस रय (Mens rea- आपराधिक इरादे के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लैटिन शब्द) और महज तकनीकी उल्लंघन के बीच स्पष्ट अंतर करना चाहिए. ऐसा लगता है कि गृह मंत्रालय अमन बिरादरी को गलत इरादों के लिए जिम्मेदार ठहरा रहा है, जो प्रथमदृष्टया अस्वीकार्य है.’

इसके बाद उन्होंने एनजीओ के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई में विरोधाभास पर चिंता जताई है.

‘मैं व्यथित महसूस कर रहा हूं कि गृह मंत्रालय अमन बिरादरी और हर्ष मंदर के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश कर रहा है, जबकि कई राजनीतिक दल एफसीआरए के तहत या अन्यथा कहीं अधिक गंभीर अपराधों से बच रहे हैं!

नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों, लोगों की भावनाओं को आहत करने वाले और झूठे, विभाजनकारी नैरेटिव फैलाने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा  क्या कार्रवाई की गई है? मनी लॉन्ड्रिंग, विदेशी शेल कंपनियों में अवैध रूप से अर्जित धन रखने और आम नागरिकों की गाढ़ी कमाई को लूटने के लिए घरेलू शेयर बाजार में हेरफेर करने वाले बड़े कारोबारों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है?

राजनीतिक दलों और कारोबारी घरानों के लिए और अमन बिरादरी जैसे गैर सरकारी संगठन के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते हैं! संविधान का अनुच्छेद 14 यह कहता है कि कानून के सामने सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा. क्या मैं सरकार से अपील कर सकता हूं कि अमन बिरादरी और हर्ष मंदर को परेशान न करें, बल्कि उनके अच्छे काम में उनका साथ दें?’

अंत में सरमा ने अपने पत्र में लिखा है कि ‘राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा मिलना भारत के लोकतंत्र के लिए खतरा है.’ उन्होंने लिखा, ‘अब समय आ गया है कि ऐसे डोनेशन पर रोक लगाई जाए. असल में, राजनीतिक दलों द्वारा निजी कंपनियों से चंदा प्राप्त करने का विचार ही अपने आप में प्रतिगामी है और जितनी जल्दी हम इस पर प्रतिबंध लगाते हैं, उतना ही यह हमारे लोकतंत्र के लिए बेहतर होगा.’