कुछ लोगों ने व्यक्तिगत याचिकाओं के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उनके पास मौजूद 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को बदलने का आदेश दिया जाए. अदालत ने इस पर कहा कि चूंकि वह जनवरी में मामले में फैसला सुना चुकी है, इसलिए अब याचिकाकर्ता केंद्र सरकार के समक्ष अपना अभ्यावेदन पेश करें.
नई दिल्ली: बंद हो चुके 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को स्वीकार करने की मांग करने वाले व्यक्तिगत मामलों पर विचार करने से इनकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे एक अभ्यावेदन के साथ सरकार से संपर्क करें.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पीठ ने दोहराया, ‘संविधान पीठ के फैसले के बाद हमें नहीं लगता कि विमुद्रीकृत (बंद किए गए) नोटों को स्वीकार करने के व्यक्तिगत मामलों में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत हमारे अधिकारक्षेत्र का इस्तेमाल करना हमारे लिए उचित होगा.’
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते जनवरी माह में नोटबंदी पर अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा था कि 8 नवंबर 2016 को जिस अधिसूचना के माध्यम से केंद्र सरकार ने 1,000 रुपये और 500 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों को प्रचलन से बंद करने का फैसला लिया था, वह वैध है और इसे रद्द नहीं किया जा सकता है. साथ ही कहा था कि पीठ पुराने नोट जमा करने के लिए दी गई 52 दिनों की निर्धारित अवधि को अनुचित नहीं कहा जा सकता है.
बहरहाल, वर्तमान मामले में बीआर गवई और विक्रम नाथ की शीर्ष अदालत की पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह अपना रुख तय करे और 12 सप्ताह के भीतर विमुद्रीकृत नोटों को बदलने संबंधी व्यक्तिगत याचिकाओं पर विचार करे.
पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार से किसी भी तरह के असंतोष की स्थिति में याचिकाकर्ता संबंधित हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र होंगे.
द हिंदू के मुताबिक पीठ ने कहा, ‘कुछ तो शहीद होंगे ही. हम इसमें मदद नहीं कर सकते. हमारे (2 जनवरी के) फैसले में हमने कहा था कि कुछ लोगों परेशानी उठानी पड़ेगी.’ साथ ही, न्यायालय ने कहा कि इस तरह की छूट देने की शक्ति केंद्र के पास है.
द हिंदू के मुताबिक, इस तथ्य का फैसले में भी उल्लेख किया गया था, जिसमें कहा गया था, ‘अगर केंद्र सरकार को पता चलता है कि इस तरह के व्यक्तियों का कोई वर्ग मौजूद है और 2017 अधिनियम की धारा 4 के तहत लाभ देने के कोई कारण हैं, तो ऐसा करना उसके विवेकाधिकार में है. हमारे विचार में यह न्यायिक आदेश द्वारा नहीं किया जा सकता है.’
व्यक्तिगत मामलों का निस्तारण करते हुए पीठ ने कहा कि निर्दिष्ट बैंक नोट (दायित्वों की समाप्ति) अधिनियम, 2017 के मद्देनजर इस न्यायालय द्वारा कोई राहत नहीं दी जा सकती है. हालांकि, यदि याचिकाकर्ता चाहें, तो वे एक अभ्यावेदन पेश करके सरकार से संपर्क कर सकते हैं. इस तरह के अभ्यावेदन पर इसे प्रस्तुत करने के 12 सप्ताह की अवधि के भीतर निर्णय लिया जा सकता है.
पुराने नोटों को जमा कराने की मांग करने वाले ऐसे ही एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘उन व्यक्तियों के लिए एक स्पष्ट वास्तविक कारण है जो नकद जमा नहीं कर सके. हम केंद्र या भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से सामान्य छूट की रूपरेखा तैयार करने के लिए नहीं बल्कि हमारे व्यक्तिगत अनुरोधों पर विचार करने के लिए कह रहे हैं.’
सुनवाई के दौरान आरबीआई की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने तर्क दिया कि लोगों की व्यक्तिगत कठिनाइयों पर विचार करने के बाद ही संविधान पीठ ने योजना के पक्ष में फैसला सुनाया था.
केंद्र की ओर से पेश हुए अधिवक्ता शैलेश मडियाल ने अदालत को बताया कि फैसले के अनुसार, केंद्र व्यक्तिगत अभ्यावेदनों पर विचार करेगा और निर्णय लेगा.
बता दें कि 8 नवंबर, 2016 को केंद्र सरकार ने पुराने 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया था और नागरिकों को 30 दिसंबर तक उन्हें जमा करने की अनुमति दी थी. 31 दिसंबर से इन नोटों को बदलने की आरबीआई की कोई देनदारी नहीं थी.
वहीं, 2017 के अधिनियम के मुताबिक एक निश्चित संख्या से अधिक अवैध नोटों को अपने पास रखना दंडनीय अपराध है.
वहीं, 2017 के अधिनियम ने नागरिकों की कुछ श्रेणी के लिए 30 दिसंबर के बाद भी नोट जमा करने की छूट दी थी. भारतीय निवासी जो 9 नवंबर और 30 दिसंबर 2016 के बीच भारत से बाहर थे, उन्हें 31 मार्च 2017 तक नोट जमा करने की अनुमति दी गई थी. यहां तक कि गैर-निवासी जो प्रासंगिक अवधि के दौरान भारत से बाहर थे, उन्हें 30 जून 2017 तक पुराने नोट जमा करने की अनुमति दी गई थी.