निजी एयरलाइंस जनता को गुमराह और ज़्यादा पैसे देने को मजबूर कर रही हैं: संसदीय समिति

एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि निजी एयरलाइंस अपनी वेबसाइट पर फ्लाइट में बची सीटों की संख्या और टिकटों की क़ीमतों के बारे में 'ग़लत जानकारी' देती हैं और यात्रियों को ज़्यादा भुगतान के लिए मजबूर करती हैं. समिति ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय से इस बारे में दिशानिर्देश तैयार करने को कहा है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

एक संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि निजी एयरलाइंस अपनी वेबसाइट पर फ्लाइट में बची सीटों की संख्या और टिकटों की क़ीमतों के बारे में ‘ग़लत जानकारी’ देती हैं और यात्रियों को ज़्यादा भुगतान के लिए मजबूर करती हैं. समिति ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय से इस बारे में दिशानिर्देश तैयार करने को कहा है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी एयरलाइंस अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध सीटों और टिकट के किराए के बारे में गलत जानकारी देकर जनता को गुमराह कर रही हैं और उन्हें अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर कर रही हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, 6 मार्च को नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा अनुदान की मांग को लेकर सौंपी गई रिपोर्ट में परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर बनी संसदीय स्थायी समिति ने घरेलू क्षेत्र में निजी एयरलाइंस द्वारा वसूले जा रहे ऊंचे किराए के बारे में चिंता जताई है.

समिति ने कहा कि निजी एयरलाइंस अपनी वेबसाइट पर फ्लाइट में बची सीटों की संख्या और टिकटों की कीमतों के बारे में ‘गलत जानकारी’ प्रकाशित करती हैं.

रिपोर्ट में लिखा है, ‘गलत सूचनाओं के स्तर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आखिरी टिकट बिकने के बाद भी वेबसाइट पर उतनी ही सीटें दिख रही हैं, जितनी टिकटों की बिक्री से पहले बताई गई थीं. यह दिखाता है कि एयरलाइन ऑपरेटर जनता को गुमराह कर रहे हैं और यात्रियों को अधिक पैसे देने के लिए मजबूर कर रहे हैं.’

इसलिए, समिति ने सिफारिश की कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय हवाई किराए को युक्तिसंगत बनाने के लिए उपयुक्त दिशानिर्देश तैयार करे और एयरलाइंस के लिए उनकी वेबसाइट पर सही जानकारी प्रकाशित करना अनिवार्य बनाएं.

समिति ने कई घरेलू एयरलाइंस द्वारा ‘लूट सरीखे मूल्य निर्धारण’ पर भी चिंता व्यक्त की. इस संदर्भ में कहा गया है कि इस कोई एयरलाइन इतनी कम कीमत पर टिकट बेचती है कि अन्य प्रतियोगी प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते और बाजार से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जाते हैं; बाद में वे दरों को बहुत अधिक बढ़ा देते हैं क्योंकि कोई प्रतिस्पर्धा रह ही नहीं जाती है.

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने समिति को बताया कि मार्च 1994 में वायु निगम अधिनियम, 1953 के निरस्त होने के बाद भारतीय घरेलू उड्डयन बाजार को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया है और इसके परिणामस्वरूप हवाई किराया बाजार संचालित है.

नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की एक टैरिफ निगरानी इकाई है जो मासिक आधार पर कुछ मार्गों पर हवाई किराए की निगरानी करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एयरलाइंस उनके द्वारा घोषित सीमा के बाहर हवाई किराया नहीं ले रही है.

दूर-दराज के इलाकों से कनेक्टिविटी

समिति ने मंत्रालय की 58 हवाईअड्डे शुरू करने की योजना, विशेष रूप से सुदूर पूर्वोत्तर, द्वीपों और पहाड़ी और आदिवासी समुदाय वाले क्षेत्रों को जोड़ने की सराहना की, साथ ही इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि निजी एयरलाइंस एक ही क्षेत्र, मार्ग और दिशा के लिए अलग-अलग किराया वसूल रही हैं, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर और लद्दाख सहित उत्तर पूर्व और पहाड़ी क्षेत्रों की फ्लाइट्स. घरेलू टिकटों की कीमतें कभी-कभी अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन की कीमतों से भी अधिक होती हैं.

समिति ने यह भी सिफारिश की कि मंत्रालय देश में हवाई संपर्क में सुधार के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करे, विशेष रूप से उत्तर पूर्व में, लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सहित पहाड़ी और द्वीप क्षेत्र, जो पर्यटन के लिए आकर्षण का केंद्र हैं.

सार्वजनिक धन का विवरण

समिति ने यह भी कहा कि एयर इंडिया के विनिवेश के दौरान सरकार ने इक्विटी के रूप में एयर इंडिया एसेट्स होल्डिंग लिमिटेड (भारत सरकार द्वारा एयर इंडिया के विनिवेश के एकमात्र उद्देश्य से बनाई गई कंपनी) को लगभग 64,026 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी थी लेकिन इसके बाद, सरकार को केवल 2,700 करोड़ रुपये प्राप्त हुए और 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज बरकरार रहा.

समिति ने कहा, ‘समिति एयर इंडिया जैसी बड़ी कंपनी के विनिवेश से सरकार को मिले वास्तविक राजस्व का विवरण जानना चाहेगी, क्योंकि एयर इंडिया के रणनीतिक विनिवेश को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता के रूप में दिए गए 64,026.40 करोड़ रुपये और कुछ नहीं बल्कि जनता का पैसा है.’

रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने दिल्ली और मुंबई सहित विभिन्न हवाई अड्डों पर भीड़भाड़ से संबंधित मुद्दों की भी समीक्षा की. समिति ने कहा कि प्रमुख हवाईअड्डों पर इस तरह के मुद्दे ‘खराब प्लानिंग को दर्शाते’ हैं. इसने मंत्रालय से संबंधित हवाईअड्डा संचालकों को इसे लेकर उचित दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया.

समिति ने मंत्रालय से यह सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया कि वह विशेष तौर पर सक्षम यात्रियों के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा निर्धारित सभी दस एक्सेसिबिलिटी सुविधाओं को लागू करे और अधिक हवाई अड्डों को पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के हिस्से के रूप में शामिल किया जाए. (वर्तमान में केवल एक- गुजरात में धोलेरा- इस योजना के तहत सूचीबद्ध है.)