भारत फिल्मों के सेंसरशिप मामले में पाकिस्तान जैसा होता जा रहा है: ‘जॉयलैंड’ के निर्देशक

एक साक्षात्कार में ‘जॉयलैंड’ के निदेशक सैम सादिक़ और प्रोड्यूसर अपूर्वा चरण ने भारत में इसकी रिलीज़ की स्थिति, दमित समाज और सेंसरशिप पर चर्चा की है. समीक्षकों द्वारा प्रशंसित यह फिल्म साल 2023 के ऑस्कर में पाकिस्तान की आधिकारिक प्रविष्टि थी.

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जॉयलैंड फिल्म का पोस्टर. (फोटो साभार: फेसबुक)

एक साक्षात्कार में ‘जॉयलैंड’ के निदेशक सैम सादिक़ और प्रोड्यूसर अपूर्वा चरण ने भारत में इसकी रिलीज़ की स्थिति, दमित समाज और सेंसरशिप पर चर्चा की है. समीक्षकों द्वारा प्रशंसित यह फिल्म साल 2023 के ऑस्कर में पाकिस्तान की आधिकारिक प्रविष्टि थी.

जॉयलैंड फिल्म के निर्देशक सैम सादिक और प्रोड्यूसर अपूर्वा चरण. (फोटो साभार: फेसबुक/इंस्टाग्राम)

फिल्म निर्देशक सैम सादिक की समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्म ‘जॉयलैंड’ साल 2023 के ऑस्कर में पाकिस्तान की आधिकारिक प्रविष्टि थी. कोलंबिया फिल्म स्कूल में एक क्लास प्रोजेक्ट के रूप में जॉयलैंड की कल्पना की गई थी. इसके बाद सादिक ने 2016 में अपनी सहपाठी अपूर्वा चरण के साथ इसकी स्क्रिप्ट लिखनी शुरू की, जो फिल्म के प्रोड्यूसर भी हैं.

शुरू में इस कहानी पर एक शॉर्ट फिल्म डार्लिंग (2019) बनी थी. लाहौर में एक इरोटिक डांस थियेटर की पृष्ठभूमि में एक ट्रांसवुमन (बीबा, अलीना खान द्वारा निभाई गई भूमिका) के साथ एक विवाहित पुरुष (हैदर, अली जुनेजो द्वारा अभिनीत भूमिका) की बढ़ती निकटता की खोज करने का सादिक का मूल विचार हर ड्राफ्ट के साथ और परिष्कृत होता चला गया.

एक ‘वर्जित’ रिश्ते पर आधारित फिल्म ‘जॉयलैंड’ लाहौर के एक मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है, जो पितृसत्ता और दकियानूसी विचारों के साथ चलता है.

इस परिवार का छोटा बेटा हैदर, थियेटर आर्टिस्ट और एक ट्रांसवुमन बीबा के प्रेम में पड़ जाता है. इसमें किस तरह की दिक्कतें आती हैं, यह फिल्म इसी पर बात करती है.

‘जॉयलैंड’ में दिखाए गए परिवार में अब्बाजी (सलमान पीरज़ादा), बड़े बेटे सलीम (समीर सोहेल), उनकी कर्तव्यपरायण पत्नी नुची (सरवत गिलानी) और छोटे बेटे हैदर की पत्नी मुमताज (रस्ती फारूक) भी शामिल हैं.

‘जॉयलैंड’ प्रतिष्ठित कान फिल्म फेस्टिवल (2022) में प्रदर्शित होने वाली पाकिस्तान की पहली फिल्म है. यह कैमरा डी’ओर (पहली बार फीचर फिल्म बनाने वालों के लिए) प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाली पाकिस्तान की पहली फिल्म भी थी. इसके अलावा ​इसने यहां ज्यूरी अवॉर्ड और क्वीर पाम (Queer Palm) अवॉर्ड भी जीते थे.

अन्य प्रतिष्ठित समारोहों में टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (टीआईएफएफ/टीफ) 2022 में प्रदर्शित होने के अलावा जॉयलैंड ऑस्कर के लिए पाकिस्तान की आधिकारिक प्रविष्टि भी बन गई.

नवंबर 2022 में पाकिस्तान में रिलीज होने से एक हफ्ते पहले सादिक की फिल्म ‘जॉयलैंड’ को उनके देश में ही प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि व्यापक रूप से सोशल मीडिया पर हंगामे के बाद एक सप्ताह बाद यह प्रतिबंध हटा दिया गया.

हाल ही में सैम सादिक और अपूर्वा चरण ने लॉस एंजिल्स से ‘द वायर’ से बात की. उन्होंने इसके भारत में रिलीज होने की स्थिति, दमित समाज, सेंसरशिप आदि पर चर्चा की.

सैम, क्या आप संक्षेप में बता सकते हैं कि यह प्रोजेक्ट कैसे विकसित हुआ?

सैम: मैंने 2016 में एक कक्षा के लिए इसकी कहानी लिखनी शुरू की. शुरू में मैं लिख रहा था, क्योंकि मुझे इसमें दिलचस्पी थी, मुझे यकीन नहीं था कि मैं इस पर फिल्म बनाऊंगा या नहीं, लेकिन जितना अधिक मैंने इसे लिखा, उतना ही मैं उस दुनिया से जुड़ता चला गया. फिर अपूर्वा साथ में जुड़ गईं, वह इसे प्रोड्यूस करना चाहती थीं.

जॉयलैंड के निर्देशक सैम सादिक और प्रोड्यूसर अपूर्वा चरण.

उसके बाद मुझे लगता है कि हमारे पास हर छह महीने में इसका एक नया ड्राफ्ट (कई बार रिराइट किया गया) होता था. यह थोड़ा अजीब था, (क्योंकि) उन शुरुआती ड्राफ्ट में, जिन चीजों से मुझे संघर्ष करना पड़ा, उनमें से एक फिल्म का मुख्य किरदार हैदर था. मैं उसे आज जैसा सहानुभूतिपूर्ण और जटिल चरित्र नहीं बना पाया था.

इसी कहानी पर आधारित शॉर्ट फिल्म ‘डार्लिंग’ से ठीक पहले मैं रिसर्च के लिए पाकिस्तान चला गया. कास्टिंग प्रक्रिया शुरू हुई और हमें अलीना (बीबा की भूमिका निभाने वाली) मिलीं, वह जॉयलैंड बनने के पी​छे के सबसे अभिन्न कारकों में से एक हैं. वह फिल्म के लिए कास्ट होने वाली पहले कलाकारों में से थीं. भले ही दोनों फिल्मों का आधार एक ही हो, लेकिन इसके बाद तैयार किया गया ड्राफ्ट ‘जॉयलैंड’ फिल्म का एक बड़ा हिस्सा बन गया.

आप किस तरह के परिवारों में पले-बढ़े? क्या पारिवारिक पृ​ष्ठभूमि ने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने में मदद की?

सैम: मैं एक सामान्य पारिवारिक व्यवस्था में पला-बढ़ा हूं. मेरे पापा आर्मी में थे, वो 2010 में रिटायर हुए. मेरी मां हाउस वाइफ हैं और मेरी एक बहन है, जिसकी शादी हो चुकी है.

मुझे लगता है कि हमारा काफी रूढ़िवादी परिवार है. मैंने अभी भी अपने माता-पिता को बिना सेंसर वाला संस्करण नहीं दिखाया है. वे इस तरह हैं कि हम जानते हैं कि तुमने कुछ बनाया है. हमें वह हिस्सा दिखाओ जिस पर हमें गर्व हो, असहजता महसूस न हो. वे अधिक समझदार हो गए हैं और अपने बच्चों को स्पेस देना सीख गए हैं.

फिल्म के किरदार मुमताज और नुची दोनों मेरी मां पर आधारित हैं. मैंने देखा है कि मेरे परिवार की महिलाओं पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. उनका घरेलू श्रम न केवल अवैतनिक है, बल्कि शायद ही कभी स्वीकार किया जाता है. इसने मुझे दुख से भर दिया कि जब उनके जैसा कोई मरता है, तो लोग नहीं जानते कि उन्हें किस लिए याद किया जाए.

वहीं, जब एक मर्द मरता है तो वे जानते हैं कि उसने यह किया और वह किया, लेकिन घरेलू महिलाओं के साथ यह इतना सामान्य है कि हम उन्हें कैसे याद करते हैं. ‘वह एक अच्छी महिला थी’ – इसका क्या मतलब है! ऐसा लगता है जैसे वे इंसान नहीं हैं.

अपूर्वा: मैं चरम सीमाओं के बीच पली-बढ़ी हूं. मेरे एकल परिवार में मेरे माता-पिता शामिल हैं. वे अपनी पीढ़ी के कुछ ‘जागृत’ लोग हैं. मेरी मां हमेशा एक कामकाजी महिला रही हैं और विस्तारित परिवार और मेरी मां के बीच हमेशा यह तनाव बना रहता था.

यह विचार कि वह मेरे पिता से कई चीजों के बारे में अनुमति नहीं मांगेगी या यह कि उसका अपना जीवन है, विस्तारित परिवार के लिए बहुत नया था. मुझे लगता है कि स्वतंत्र होने के कारण उसे थोड़ी ‘कीमत’ चुकानी पड़ी थी.

अप्रत्याशित तरीके से जॉयलैंड ने भारत और पाकिस्तान को एक साथ लाया, जब इसकी रिलीज को कुछ समय के लिए रोक दिया गया. इस घटनाक्रम ने आपको क्या सिखाया?

अपूर्वा: मुझे लगता है कि सबक (फिल्म से जुड़ीं) धारणाओं को प्रबंधित करना था, क्योंकि लड़ाई पाकिस्तान में जमीन पर लड़ी गई थी. यह हमारे प्रोड्यूसर सैम और सना थे, जो हर दिन (पाकिस्तानी) प्रतिबंध के बारे में मीडिया से बात कर रहे थे. हम जितना समर्थन कर सकते थे, हमने किया.

जॉयलैंड फिल्म का पोस्टर. (फोटो साभार: फेसबुक)

एक चीज जो हुई, वह यह थी कि जैसे ही प्रतिबंध की घोषणा की गई, लोगों ने मान लिया कि हम ऑस्कर में पाकिस्तान की प्रविष्टि नहीं हैं. यह नुकसान को कम करने का समय था.

सैम और उनके साथ के लोग प्रतिबंध के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, जबकि मैं ऑस्कर के लिए हमारी प्रवेश योग्यता बनाए रखने के लिए फिल्म को फ्रांस में रिलीज करने की कोशिश कर रही थी, क्योंकि इससे फिल्म के वैश्विक वितरण पर असर पड़ता. इसलिए, हमने धारणाओं को सुधारना सीखा.

क्या भारत में रिलीज की राह आसान साबित हो रही है?

अपूर्वा: पीवीआर ने (भारत में डिस्ट्रिब्यूशन के लिए) फिल्म खरीदी है. हम उम्मीद करते हैं कि भारत में यह रिलीज होगी. हम प्रमाणन प्रक्रिया से गुजर रहे हैं. यह देखा जाना बाकी है कि क्या वे मित्रवत होंगे या हमारे खिलाफ. हम उम्मीद कर रहे हैं कि फिल्म को इसके शुद्ध रूप में (बिना किसी कट के) रिलीज किया जा सकता है.

क्या सेंट्रल बोर्ड फॉर फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी/भारतीय सेंसर बोर्ड) से आपको कोई जवाब मिला है?

अपूर्वा: हम केवल इतना जानते हैं कि यह प्रक्रिया से गुजर रही है. हमारी अपेक्षा से अधिक समय लग रहा है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि हम मार्च में रिलीज की तारीख तक इसे पूरा कर पाएंगे, जैसा कि हमने शुरू में योजना बनाई थी. इसमें अधिक समय लगेगा.

भारत और पाकिस्तान दोनों का दमनकारी सेंसरशिप का एक लंबा इतिहास रहा है और यह बदतर होता जा रहा है.

सैम: पाकिस्तान में पिछले कुछ समय से हालात खराब हैं. भारत में हाल ही में चीजें खराब हो गई हैं. शायद इसकी वजह राजनीति है. हम (भारत और पाकिस्तान) आज अधिक समान हो गए हैं (दोनों हंसते हैं).

हो सकता है कि हमारे अनुभव से पहले मैंने इसे रोमांटिसाइज किया हो. जैसे हम कलाकारों के रूप में कैसे पीड़ित होते हैं, लेकिन हम इससे उबर जाते हैं. इसका एक हिस्सा सच है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जॉयलैंड की प्रतिष्ठा – जितनी टीआईएफएफ/टीफ या कान फिल्म समारोहों से बढ़ी – प्रतिबंध से भी बढ़ी थी. यह अचानक एक ऐसी फिल्म बन गई, जिसकी चर्चा होने लगी.

क्या मैं चाहता था कि बातचीत इस तरह हो? नहीं, लेकिन क्या इससे फिल्म को फायदा हुआ है? बिल्कुल. आप जिस आघात (बैन) से लाभान्वित हो रहे हैं, उससे सामंजस्य बिठाना कठिन है, लेकिन यह वास्तविक जीवन का आघात भी है.

यह किसी भी कलाकार या फिल्म निर्माता के लिए निचले स्तर की बहस है – अगर सवाल यह हो जाए कि ‘क्या हम यह कहानी सुनाएं?’ मेरी राय में हमें सभी कहानियां बतानी चाहिए. यहां तक कि बदसूरत प्रोपगेंडा फिल्में भी – उन्हें भी होना चाहिए. 2023 में यह सवाल कभी नहीं होना चाहिए.

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