ऑडियो: वैश्विक डिजिटल अधिकार समूह एक्सेस नाउ के साथ काम करने वाली नम्रता माहेश्वरी का कहना है कि भारत में इंटरनेट शटडाउन के आदेश देने की प्रणाली पूरी तरह से अपारदर्शी है. साथ ही इसमें जवाबदेही का भी अभाव है.
नई दिल्ली: वैश्विक डिजिटल अधिकार समूह एक्सेस नाउ और #KeepItOn की रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट बंद करने के मामले में लगातार पांचवें साल भारत शीर्ष पर रहा है.
इनके द्वारा संकलित डेटा बताता है कि 2022 में दुनियाभर के 35 देशों ने कम से कम 187 बार इंटरनेट बंद किया. भारत में इस अवधि में 84 इंटरनेट शटडाउन हुए, जो दुनिया में सर्वाधिक थे.
बीते दिनों पंजाब सरकार ने चौबीस घंटे के लिए इंटरनेट सेवाओं को बंद किया था और अफवाहों और गलत सूचनाओं को रोकने का दावा करते हुए इस रोक को बढ़ाया गया था.
द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ भाटिया से बात करते हुए एक्सेस नाउ में सर्विलांस, डेटा सुरक्षा और इंटरनेट शटडाउन जैसे मुद्दों पर काम करने वाली नम्रता माहेश्वरी ने कहा कि इस तरह की पाबंदी आजीविका, शिक्षा, यहां तक कि स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्रभावित करती हैं. उन्हें किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता.
नम्रता का कहना है कि इंटरनेट बंद करने की प्रक्रिया बहुत अपारदर्शी है. ‘हम उन आदेशों को जानते या देख तक नहीं सकते हैं जिनके तहत इस तरह के शटडाउन का निर्देश दिया जाता है. यहां तक कि पुलिस भी इंटरनेट सेवाओं पर अस्थायी प्रतिबंध लगाने का आदेश दे सकती है. यहां जवाबदेही का पूरा अभाव है.’
उनके मुताबिक, इसके साथ ही ऐसे शटडाउन का प्रभाव भी संदिग्ध है. उन्होंने कहा, ‘ऐसे अध्ययन हैं जो दिखाते हैं कि इससे हिंसा और गलत सूचनाएं बढ़ सकती हैं.’
नम्रता यह भी कहती हैं कि अब लोग और कानूनविद यह महसूस कर रहे हैं कि इंटरनेट सेवाओं को इस तरह से निलंबित कर देना ठीक नहीं है. बदलाव के लिए आवाज उठ रही है.
इस पूरी बातचीत को नीचे दिए गए लिंक पर सुन सकते हैं.