राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर 2020 में शीर्ष अदालत द्वारा कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाए गए अफ्रीकी चीतों की देखरेख के लिए गठित विशेषज्ञ समिति को भंग करने की अपील की है. प्राधिकरण के अनुसार, शेरों को चीतों के क्षेत्र में छोड़ना उचित नहीं है, क्योंकि प्रतिद्वंद्विता के कारण दोनों प्रजातियों के अस्तित्व के लिए यह क़दम हानिकारक होगा.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर अपील की है कि 2020 में शीर्ष अदालत द्वारा भारत के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीकी चीतों की देखरेख के लिए गठित विशेषज्ञ समिति को भंग कर दिया जाए.
हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्राधिकरण ने यह भी कहा है कि एक और बड़े मांसाहारी शेरों को चीतों के क्षेत्र में तुरंत भेजना उचित नहीं है, क्योंकि अंतर-प्रजाति प्रतिद्वंद्विता के कारण यह दोनों प्रजातियों के अस्तित्व के लिए हानिकारक होगा.
आवेदन को प्राधिकरण की कानूनी टीम ने 25 मार्च को अन्य उत्तरदाताओं के साथ साझा किया था.
आवेदन में कहा गया है, ‘यह विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया गया है कि 28 जनवरी, 2020 के आदेश द्वारा इस माननीय न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के मार्गदर्शन या सलाह को जारी रखना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के लिए अब आवश्यक या अनिवार्य नहीं है. हालांकि, यदि किसी भी स्तर पर प्राधिकरण को किसी भी विशेषज्ञ की सहायता और सलाह की आवश्यकता होती है तो ऐसा किया जा सकता है.’
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च को चीता ट्रांसलोकेशन (2020 के आदेश में परिकल्पित) पर प्राधिकरण को निर्देश देने की मांग करने वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा था कि वे केंद्र के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं.
चीतों के स्थानांतरण के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए जनवरी 2020 में शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का मार्गदर्शन करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था, जिसमें भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट (डब्ल्यूटीआई) के पूर्व निदेशक, भारतीय वन्यजीव संस्थान के प्रमुख एमके रंजीत सिंह और पर्यावरण मंत्रालय के एक अधिकारी शामिल थे.
अदालत ने कूनो में चीता के स्थानांतरण पर रोक (2012 से पहले की तारीख) को हटाते हुए भी ऐसा किया. दिलचस्प बात यह है कि 2012 का कोर्ट का स्टे कूनो के कारण ही था, जिसे उस समय गिर के शेरों के लिए दूसरा घर माना जाता था.
अदालत ने 2020 में रोक हटाते समय शेरों के स्थानांतरण में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं किया (विशेषज्ञों ने इसकी सिफारिश की थी, क्योंकि गिर में भीड़ हो रही थी और वे चिंतित थे कि एक बीमारी पूरी आबादी को खत्म कर सकती है).
फिर भी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, जो केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत आता है, उस मोर्चे पर कोई जोखिम नहीं ले रहा है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, प्राधिकरण द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए आवेदन में कहा गया है, ‘अनिवार्य पृथकता (Quarantine) अवधि के बाद चीतों को बड़े बाड़ों और मुक्त परिस्थितियों में छोड़ दिया गया है और उन्होंने अपने दम पर शिकार करना शुरू कर दिया है. चीतों को एक तनाव मुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए क्षेत्र में तुरंत एक और बड़ी मांसाहारी प्रजाति (शेर) को छोड़ना उचित नहीं है, क्योंकि यह अंतर-प्रजाति प्रतिद्वंद्विता के कारण दोनों प्रजातियों के जीवित रहने की संभावना के लिए हानिकारक होगा.’
आवेदन में कहा गया है कि केंद्र और गुजरात सरकार के संरक्षण प्रयासों के कारण पिछले पांच वर्षों में शेरों की आबादी में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2010 में 411 की तुलना में 2020 में 674 शेर थे.
आवेदन में कहा गया है, ‘प्रोजेक्ट लायन का अंतिम लक्ष्य व्यवहार्य एशियाई शेरों की आबादी को बनाए रखना सुनिश्चित करना है. गिर संरक्षित क्षेत्र की आबादी और बरदा वन्यजीव अभयारण्य सहित एक नए आसपास के क्षेत्र में प्राकृतिक फैलाव इस लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता रखता है.’
आवेदन में कहा गया है, ‘कुनो राष्ट्रीय उद्यान में अफ्रीकी चीतों को लाने और गिर राष्ट्रीय उद्यान से परे एशियाई शेरों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उठाए गए कदमों के संबंध में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और एनटीसीए ने एक विशेषज्ञ के दृष्टिकोण से गिर से कूनो तक एशियाई शेरों के स्थानांतरण के पूरे पहलू की फिर से जांच करने का निर्णय लिया. इस अदालत के समक्ष छह महीने के भीतर एक स्थिति रिपोर्ट/उपयुक्त आवेदन दायर किया जाएगा.’