मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा में दिए गए आंकड़े बताते हैं कि पिछले 2018 और 2022 के बीच आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा में की गई कुल 4,365 नियुक्तियों में ओबीसी से 695, एससी से 334 और एसटी समुदायों से 166 उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया है.
नई दिल्ली: ऐसे समय में जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणी को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के ‘अपमान’ के रूप में पेश करके संसद से उन्हें अयोग्य ठहराने को लेकर संयुक्त विपक्ष के हमले का मुकाबला कर रही है, मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा को दिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले पांच वर्षों में अखिल भारतीय सेवाओं में ओबीसी, अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति (एससी) का प्रतिनिधित्व कम रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार, केरल के सांसद जॉन ब्रिटास के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 2018 और 2022 के बीच वर्षवार आंकड़े दिए हैं की इस दौरान भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईओएफएस) में कितने ओबीसी, एसटी और एससी उम्मीदवारों को नौकरी दी गई.
आंकड़ों से पता चलता है कि 2018 और 2022 के बीच आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा में की गई कुल 4,365 नियुक्तियों में ओबीसी से केवल 695, एससी से 334 और एसटी समुदायों से 166 उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया था.
2018 में कुल 464 आईएएस अधिकारियों को नियुक्त किया गया था, उनमें से केवल 54 ओबीसी से, 29 एससी से और 14 एसटी समुदायों से थे. 2019 और 2022 के बीच के आंकड़े बताते हैं कि आईएएस उम्मीदवारों ने कभी भी (ओबीसी, एससी और एसटी को मिलाकर) सौ का आंकड़ा पार नहीं किया.
मंत्री के जवाब के अनुसार, 2019 में नियुक्त किए गए 371 और 2020 में नियुक्त 478 आईएएस अधिकारियों में केवल 61 ओबीसी समूहों से थे. वहीं, 2019 में अनुसूचित जाति वर्ग से 28 और अनुसूचित जनजाति से 14 और 2020 में अनुसूचित जाति से 25 और अनुसूचित जनजाति समूहों से 14 को आईएएस अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया.
2021 में, जबकि 54 ओबीसी व्यक्तियों को आईएएस अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था और 2022 में 58, एससी से 30 व्यक्तियों को एससी और 13 एसटी से आईएएस में नियुक्त किया गया था. 2022 में एससी के 28 और एसटी के 14 उम्मीदवारों को आईएएस के लिए चुना गया था.
आईपीएस और आईओएफएस श्रेणियों में भी पिछले पांच सालों में ओबीसी, एससी और एसटी वर्गों से नियुक्ति की दर कम देखी गई थी. 337 आईपीएस अधिकारियों में से केवल 49 ओबीसी, 25 एससी और 20 एसटी समुदाय से थे. 2021 में 339 आईपीएस अधिकारियों में से केवल 57 ओबीसी समुदायों से थे जबकि 28 एससी व 14 एसटी श्रेणियों से थे.
2021 में 19 आईओएफएस अधिकारियों में से केवल 40 ओबीसी, 16 एससी और आठ एसटी वर्ग से थे.
सरकार के जवाब पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माकपा सांसद ब्रिटास ने समुदायों से नियुक्ति की ‘चिंताजनक रूप से कम दर’ बताया. उन्होंने कहा, ‘पिछले पांच वर्षों के दौरान आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा में नियुक्तियों के कुल आंकड़ों में से (प्रत्यक्ष और पदोन्नति दोनों नियुक्तियां) ओबीसी से आने वाले व्यक्तियों ने केवल 15.92 प्रतिशत नौकरियां हासिल कीं, जबकि एससी ने 7.65% और एसटी ने 3.80 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की.’
ब्रिटास ने जोड़ा, ‘इन आंकड़ों के पीछे की असलियत का पता तब लगाया जा सकता है जब इन संख्याओं को देश की कुल आबादी में ओबीसी, एससी और एसटी के प्रतिनिधित्व से जोड़ा जाए.’
ज्ञात हो कि 2011 की जनगणना के अनुसार, मोटे तौर पर देश की कुल आबादी में ओबीसी का प्रतिशत 41-52% के बीच है, वहीं अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय क्रमशः लगभग 16.6% और 8.6% हैं.
ब्रिटास ने एक प्रेस नोट में कहा कि उन्होंने केंद्र सरकार से अखिल भारतीय सेवाओं में इन समुदायों के ‘इस कम प्रतिनिधित्व को सुधारने के लिए युद्धस्तर पर कार्रवाई करने’ का आग्रह किया है.
विपक्षी सांसद की यह मांग सत्तारूढ़ भाजपा के हाल ही में ओबीसी समुदायों को लुभाने के लिए किए गए प्रयास के विपरीत है.
2022 में पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राज्य इकाई प्रमुख के तौर पर भूपेंद्र चौधरी, जो ओबीसी से हैं, को नियुक्त किया, ताकि आदित्यनाथ सरकार को ‘ठाकुर-ब्राह्मण’ गठबंधन न कहा जाए. वहीं, कर्नाटक, जहां इस साल विधानसभा चुनाव होना है, में इसने मुख्यमंत्री को बदल दिया. वर्तमान सीएम बसवराज बोम्मई ओबीसी समुदाय से आते हैं. वहीं, पिछले हफ्ते पार्टी ने बिहार और ओडिशा में अपने राज्य इकाई प्रमुखों के रूप में भी ओबीसी नेताओं को नियुक्त किया है.