चार साल में पहली बार जनवरी-फरवरी में मनरेगा में नौकरियां प्री-कोविड स्तर से नीचे पहुंचीं

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस साल जनवरी में सृजित ‘व्यक्ति-दिवसों’ की संख्या 20.69 करोड़ रही, जबकि फरवरी में यह संख्या 20.29 करोड़ रही. इससे पहले के तीन वर्षों में इन्हीं महीनों के दौरान यह संख्या काफी अधिक रही थी.

(फोटो साभार: फेसबुक/Pawan Lovvanshi)

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस साल जनवरी में सृजित ‘व्यक्ति-दिवसों’ की संख्या 20.69 करोड़ रही, जबकि फरवरी में यह संख्या 20.29 करोड़ रही. इससे पहले के तीन वर्षों में इन्हीं महीनों के दौरान यह संख्या काफी अधिक रही थी.

(फोटो साभार: फेसबुक/Pawan Lovvanshi)

नई दिल्ली: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना (मनरेगा) के तहत इस वर्ष जनवरी और फरवरी में उत्पन्न रोजगार पिछले चार वर्षों में पहली बार कोविड-पूर्व स्तर से नीचे चला गया है. यह जानकारी योजना के पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से मिलती है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस साल जनवरी में मनरेगा के तहत सृजित ‘व्यक्ति-दिवसों’ की संख्या 20.69 करोड़ रही, जो जनवरी 2022 (26.97 करोड़), जनवरी 2021 (27.81 करोड़) और जनवरी 2020 (23.07 करोड़) से कम है.

फरवरी में भी यह संख्या 20.29 करोड़ रही, जो पिछले वर्षों में इसी महीने की तुलना में कम है. फरवरी 2022 में यह संख्या 26.99 करोड़, फरवरी 2021 में 30.79 करोड़ और फरवरी 2020 में 26.75 करोड़ थी.

कोविड-19 के प्रकोप के कारण मार्च 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के बाद मनरेगा के तहत काम की मांग में उछाल आया था. यह जून 2020 में चरम पर था, जब योजना के तहत 64 करोड़ से कुछ अधिक ‘व्यक्ति-दिवस’ सृजित किए गए थे. तब से योजना के तहत उत्पन्न व्यक्ति-दिवसों का मासिक आंकड़ा पूर्व-कोविड स्तर (वित्तीय वर्ष 2019-20) से अधिक बना हुआ है.

हालांकि, इस साल जनवरी से सृजित किए गए व्यक्ति-दिवसों का आंकड़ा कोविड से पहले के स्तर से कम रहा है. इसी तरह रोजगार गारंटी योजना का लाभ लेने वाले परिवारों की भी संख्या घटी है.

फरवरी 2023 में 1.67 करोड़ परिवारों ने योजना का लाभ उठाया, जो फरवरी 2022 (2.02 करोड़), फरवरी 2021 (2.28 करोड़) और फरवरी 2020 (1.87 करोड़) की तुलना में कम है.

इंडियन एक्सप्रेस से बात करने वाले अर्थशास्त्रियों और सांख्यिकीविदों ने कहा कि गिरावट के कई कारण हो सकते हैं. एक कारण यह है कि कई प्रवासी जो महामारी के दौरान अपने गांव लौट गए थे, काम पर वापस चले गए हैं. दूसरा, यह संभावना है कि पर्याप्त फंड की कमी के कारण राज्य काम की मांग में देरी कर रहे हैं.

जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ता उपस्थिति और भुगतान प्रणाली में भी बदलाव का हवाला देते हैं, जिसके चलते लोग पिछले दो महीनों में बिना काम के रहने के लिए मजबूर हो सकते हैं.

संयोगवश, गिरावट योजना के कार्यान्वयन से संबंधित कई बदलावों की शुरुआत के साथ मेल खाती है.

उदाहरण के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 1 जनवरी 2023 से राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली ऐप (एनएमएमएस) के माध्यम से उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य कर दिया था. श्रमिकों को योजना के पोर्टल पर अपलोड दो बार स्टैम्प और जियोटैग की गईं तस्वीरों की भी आवश्यकता होती है.

मंत्रालय का तर्क है कि नई प्रणाली का उद्देश्य कार्यक्रम के नागरिक निरीक्षण को बढ़ाना और शासन को आसान बनाना है, जबकि सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं का आरोप है कि यह योजना के कार्यान्वयन में बाधाएं पैदा कर रहा है.

नई उपस्थिति प्रणाली के अलावा मंत्रालय ने फरवरी से श्रमिकों के वेतन जमा करने के लिए आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के उपयोग को भी अनिवार्य कर दिया है. इस कदम की सिविल सोसायटी के कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है, जो नई उपस्थिति और भुगतान प्रणाली को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने कहा कि इन दो कदमों के कारण व्यवधान हुआ और रोजगार के आंकड़ों में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट आई. साथ ही उन्होंने दावा किया कि कई राज्यों को इस वित्तीय वर्ष में खर्च किए गए श्रम बजट का लगभग आधा आवंटित किया गया है.

मालूम हो ​कि मनरेगा को लेकर केंद्र सरकार की कुछ नीतियों के खिलाफ देश भर के मजदूर एक महीने से अधिक समय से दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

मोबाइल ऐप-आधारित उपस्थिति और आधार-आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) को रद्द करने, मनरेगा बजट में वृद्धि, मजदूरी का समय पर भुगतान और लंबित मजदूरी जारी करना आदि उनकी प्रमुख मांगें हैं.

सरकार द्वारा हाल ही में तीन निर्णय लिए गए हैं. पहला, मनरेगा बजट में एक तिहाई की कटौती कर दी गई है, दूसरा मोबाइल ऐप आधारित उपस्थिति (नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम) प्रक्रिया शुरू की गई है और तीसरा आधार-आधारित भुगतान प्रणाली को अनिवार्य बना दिया गया है.

मजदूर संगठनों ने इसे इस योजना पर सरकार का ‘तीन तरफा हमला’ बताया है.

इसके अलावा मनरेगा के कार्यान्वयन में चिंता के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं. इसमें हाल ही में बजट में 33 प्रतिशत की कटौती, काम की मांग करने वाले कर्मचारियों को वापस करना और कार्यक्रम के तहत पेश किया गया निराशाजनक मेहनताना शामिल हैं.

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मनरेगा के तहत सबसे कम राशि का आवंटन किया गया है. 2023-24 बजट में मनरेगा के लिए आवंटन में आश्चर्यजनक रूप से भारी कमी करते हुए इसे 60,000 करोड़ रुपये किया गया. वित्त वर्ष 2023 के लिए संशोधित अनुमान 89,400 करोड़ रुपये था, जो 73,000 करोड़ रुपये के बजट अनुमान से अधिक था.