मालेगांव धमाका: सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल पुरोहित की आरोपमुक्ति की मांग वाली याचिका ख़ारिज की

वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की आरोपमुक्ति की अपील बॉम्बे हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दी थी, जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख़ किया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में दख़ल देने से इनकार कर दिया है.

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लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित. (फाइल फोटो: पीटीआई)

वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की आरोपमुक्ति की अपील बॉम्बे हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दी थी, जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने शीर्ष अदालत का रुख़ किया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में दख़ल देने से इनकार कर दिया है.

लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को आरोप मुक्त करने की याचिका को खारिज कर दी.

लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 2 जनवरी के आदेश, जिसमें उनकी आरोप मुक्ति की अपील खारिज कर दी गई थी, को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था.

लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित छह अन्य मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं. सभी आरोपी फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

द हिंदू के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ऋषिकेश रॉय और मनोज मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया.

अदालत ने कहा, ‘यहां चुनौती उच्च न्यायालय के उस आदेश को है जिसमें यह पाया गया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 197 (2) के तहत मंजूरी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसका आक्षेपित आचरण उसके किसी भी आधिकारिक कर्तव्यों से संबंधित नहीं है.’

पीठ ने कहा, ‘आरोप के आधार पर ध्यान देने के बाद हम इसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते हैं और इसलिए, विशेष अनुमति याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है.’

हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट को उच्च न्यायालय के आदेश में टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए.

पीठ ने कहा, ‘मंजूरी के मुद्दे की जांच के उद्देश्य से दिए गए आदेश के बिंदुओं से निचली अदालत के समक्ष कार्यवाही में अभियोजन पक्ष या बचाव पक्ष पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए.’

आरोपमुक्ति मांगने के अन्य आधारों के अलावा पुरोहित ने दावा किया था कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के संबंधित प्रावधानों के तहत मंजूरी की कमी थी.

गौरतलब है कि 29 सितंबर 2008 को मालेगांव में मस्जिद के पास मोटरसाइकिल में छिपाकर रखे गए विस्फोटक में हुए धमाके से छह लोगों की मौत हो गई थी और करीब 100 अन्य लोग घायल हुए थे. महाराष्ट्र के नासिक जिला स्थित मालेगांव सांप्रादायिक रूप से संवेदनशील शहर है.

महाराष्ट्र पुलिस की शुरुआती जांच के मुताबिक हमले में इस्तेमाल मोटरसाइकिल वर्तमान में भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम रजिस्टर थी, जिसके आधार पर उनकी गिरफ्तारी हुई. इस मामले की जांच बाद में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने अपने हाथ में ली और इस समय सभी आरोपी जमानत पर हैं.

मालूम हो बीते दिसंबर महीने में प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले से खुद को आरोपमुक्त किए जाने संबंधी अपनी याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट से वापस ले ली थी.

आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य करना) और 18 (आतंकी साजिश रचना) के तहत आरोप लगाए गए हैं.

इसके अलावा उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 324 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) और 153ए (दो समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं.

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