कर्नाटक सरकार ने मुस्लिमों को धार्मिक आधार पर आरक्षण से बाहर कर दिया, जबकि जैन और ईसाई पात्र हैं

कर्नाटक की भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीते 27 मार्च के एक आदेश में मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा वर्ग आरक्षण की पात्रता से बाहर कर दिया था. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा था कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण के लिए संविधान के तहत कोई प्रावधान नहीं है.

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कर्नाटक मुख्यमंत्री बसवाराज बोम्मई. (फोटो: ट्विटर/@BSBommai)

कर्नाटक की भाजपा सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीते 27 मार्च के एक आदेश में मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा वर्ग आरक्षण की पात्रता से बाहर कर दिया था. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा था कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण के लिए संविधान के तहत कोई प्रावधान नहीं है.

कर्नाटक मुख्यमंत्री बसवाराज बोम्मई. (फोटो: ट्विटर/@BSBommai)

नई दिल्ली: विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने बीते 27 मार्च के एक आदेश में आरक्षण के लिए ‘पिछड़े वर्ग’ की परिभाषा को पुनर्वर्गीकृत किया है, जिसमें मुसलमानों को पात्रता से बाहर रखा गया है, जबकि जैन (दिगंबर) और ईसाई आरक्षण के पात्र हैं.

जैसा कि द वायर  ने रिपोर्ट किया है, भाजपा सरकार ने विवादास्पद रूप से राज्य में मुसलमानों के लिए अब तक 4 प्रतिशत आरक्षण को हटाते हुए इसे राज्य के प्रभावशाली समुदायों – लिंगायत और वोक्कालिगा – के बीच समान रूप से बांट दिया है.

वोक्कालिगा के लिए कोटा 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है. पंचमसालियों, वीरशैवों और लिंगायतों वाली अन्य श्रेणी के लिए कोटा भी 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है.

मुसलमानों को ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) श्रेणी में जोड़ा गया है, जिसमें कुल 10 प्रतिशत हैं और इसमें ब्राह्मण, जैन, आर्यवैश्य, नागरथ और मोदलियार शामिल हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 27 मार्च के आदेश के जरिये मुसलमानों को 2बी पिछड़ा वर्ग श्रेणी (उन्हें 1994 में इसका हिस्सा बनाया गया था) से हटा दिया गया था, ईसाइयों और जैनियों को 2डी श्रेणी के तहत वर्गीकृत किया गया है

ओ. चिनप्पा रेड्डी आयोग सहित कई राज्य आयोगों की सिफारिश के बाद मुख्यमंत्री एचडी देवेगौड़ा के कार्यकाल के दौरान 1994 में मुसलमानों को 2बी आरक्षण (मध्यम पिछड़े वर्गों के लिए) दिया गया था, उन्हें सामाजिक रूप से पिछड़े के रूप में वर्गीकृत किया गया था.

26 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ‘साहसिक निर्णय’ बताते हुए राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को बधाई दी थी.

शाह ने कहा था, ‘अल्पसंख्यकों को दिया गया आरक्षण असंवैधानिक था. धर्म के आधार पर आरक्षण देने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. कांग्रेस सरकार ने अपनी तुष्टीकरण की राजनीति के चलते अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिया.’

बोम्मई ने 24 मार्च को कहा था, ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण के लिए संविधान के तहत कोई प्रावधान नहीं है. इसे आंध्र प्रदेश की अदालत ने रद्द कर दिया था. यहां तक कि डॉ. बीआर आंबेडकर ने भी कहा था कि आरक्षण जातियों के लिए है.’

विपक्षी दलों ने नई आरक्षण नीति की आलोचना करते हुए तर्क दिया है कि कई अलग-अलग अध्ययनों ने मुसलमानों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े के रूप में वर्गीकृत किया है. मुस्लिम समूहों ने भी राज्य के कुछ हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया है.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव 10 मई को होंगे और मतगणना 13 मई को होगी.

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