भारत की पहली भ्रष्टाचार-रोधी संस्था लोकपाल को चार साल पहले प्रधानमंत्री समेत सरकारी पदाधिकारियों के ख़िलाफ़ शिकायतों की जांच के लिए स्थापित किया गया था. इसने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग पर गठित संसदीय समिति को बताया है कि इसके द्वारा आज तक एक भी व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के लिए मुक़दमा नहीं चलाया गया है.
नई दिल्ली: पिछले चार वर्षों में भारत के लोकपाल के पास आने वालीं सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ लगभग भ्रष्टाचार की 68 फीसदी शिकायतें बिना किसी कार्रवाई के ‘निपटा’ दी गईं.
लोकपाल कार्यालय द्वारा एक संसदीय समिति को दी गई जानकारी के अनुसार, केवल तीन शिकायतों की पूरी तरह से जांच की गई. लगभग 90 फीसदी शिकायतें ‘निर्धारित प्रारूप में’ नहीं थीं.
द हिंदू के मुताबिक, भारत की पहली भ्रष्टाचार-रोधी संस्था लोकपाल को चार साल पहले प्रधानमंत्री समेत सरकारी पदाधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए स्थापित किया गया था. इसने संसदीय समिति को बताया कि ‘इसने आज तक एक भी व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के लिए मुकदमा नहीं चलाया है.’
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) पर गठित एक संसदीय समिति को लोकपाल कार्यालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 के बाद से इस भ्रष्टाचार रोधी संस्था को 8,703 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 5,981 का निस्तारण किया गया.
बताया गया है कि सही प्रारूप में न होने के कारण 6,775 शिकायतों को खारिज कर दिया गया. कार्यालय ने बताया कि केवल तीन शिकायतों की पूरी तरह से जांच की गई और 36 शिकायतें प्रारंभिक चरण में हैं. 2022-23 में 2,760 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से केवल 242 निर्धारित प्रारूप में थीं.
5 जनवरी को भारत के लोकपाल ने एक आदेश जारी किया कि भविष्य में भारत के लोकपाल के कार्यालय द्वारा प्राप्त शिकायतें जो निर्धारित प्रारूप में नहीं होंगी, उन पर किसी भी स्तर पर विचार नहीं किया जाएगा.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति लोकपाल द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से अनुमान लगाती है कि बड़ी संख्या में शिकायतों का निस्तारण इस आधार पर किया जा रहा है कि शिकायत निर्धारित प्रारूप में नहीं है. लोकपाल ने समिति बताया है कि उसने आज तक भ्रष्टाचार के आरोपी एक भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया है.’
लोकपाल के 10 साल
हालांकि, लोकपाल अधिनियम वर्ष 2013 में पारित किया गया था, लेकिन जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को 19 मार्च 2019 को आठ अन्य सदस्यों के साथ देश का पहला लोकपाल नियुक्त किया गया था.
जस्टिस घोष ने मई 2022 में 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद कार्यालय छोड़ दिया था और तब से प्रदीप कुमार मोहंती लोकपाल के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं.
लोकपाल को 2022-23 में 197 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था और 31 जनवरी तक इसने 152 करोड़ रुपये खर्च किए. चालू वित्त वर्ष के लिए इसे 92 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
पिछले साल, केंद्र ने दक्षिणी दिल्ली के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में लोकपाल के लिए 254.88 करोड़ रुपये में 59,504 वर्ग फुट का एक कार्यालय खरीदा था.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कानूनी और संस्थागत तंत्र को मजबूत करने के लिए लोकपाल की स्थापना की गई थी, ‘हालांकि लोकपाल का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं लगता है.’
इसने कहा कि लोकपाल की स्थापना साफ और जवाबदेह शासन को बढ़ावा देने के प्रयास में की गई थी और इसलिए लोकपाल को अवरोधक के बजाय एक मजबूत संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति लोकपाल से सिफारिश करती है कि वास्तविक शिकायतों को केवल इस तकनीकी आधार पर खारिज न करें कि यह निर्धारित प्रारूप में नहीं है. इस मोड़ पर जब भारत जी-20 भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकारी समूह का नेतृत्व कर रहा है, लोकपाल को इस अवसर पर आगे आना चाहिए और देश में भ्रष्टाचार विरोधी परिदृश्य को मजबूत करने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए.’