भारत की इंटरनेट शटडाउन नीति की समीक्षा के लिए 300 से अधिक वैश्विक संगठनों ने सरकार को पत्र लिखा

105 देशों के 300 से अधिक संगठनों ने इंटरनेट शटडाउन को समाप्त करने की वकालत करने वाले #KeepItOn गठबंधन के बैनर तले केंद्रीय संचार एवं इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखे खुले पत्र में बताया है कि भारत ने 2022 में 84 बार ‘इंटरनेट शटडाउन’ किया. विश्व में लगातार पांचवें वर्ष भारत में यह संख्या सबसे अधिक रही.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: accessnow.org)

105 देशों के 300 से अधिक संगठनों ने इंटरनेट शटडाउन को समाप्त करने की वकालत करने वाले #KeepItOn गठबंधन के बैनर तले केंद्रीय संचार एवं इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखे खुले पत्र में बताया है कि भारत ने 2022 में 84 बार ‘इंटरनेट शटडाउन’ किया. विश्व में लगातार पांचवें वर्ष भारत में यह संख्या सबसे अधिक रही.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: accessnow.org)

नई दिल्ली: 105 देशों के 300 से अधिक संगठनों ने केंद्रीय संचार एवं इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें उनसे भारत में इंटरनेट शटडाउन पर कानूनी और नियामक ढांचे की समीक्षा करने का आग्रह किया गया है.

पत्र में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत 2016 के बाद से दर्ज किए गए कुल इंटरनेट शटडाउन में लगभग 58 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है.

एक्सेस नाउ और #KeepItOn गठबंधन की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2022 में 84 बार इंटरनेट बंद (इंटरनेट शटडाउन) किया – विश्व भर में लगातार पांचवे वर्ष भारत में यह संख्या सबसे अधिक रही.

दुनिया भर के 300 संगठन वाला #KeepItOn गठबंधन 2016 से इंटरनेट शटडाउन को समाप्त करने की वकालत में सक्रिय है, पत्र के लिए इसने भारत में इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन और पत्रकारिता प्रहरी रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स या आरएसएफ समेत कई अन्य मानवाधिकार संस्थाओं से हाथ मिलाया.

पत्र में कहा गया है कि हर बार जब भी इंटरनेट तक पहुंच में बाधा उत्पन्न होती है तो लोगों की अपने प्रियजनों से संवाद करने, आजीविका कमाने, सूचनाओं का आदान-प्रदान करने या शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाएं प्राप्त करने की क्षमता भी बुरी तरह प्रभावित होती है.

भारत में मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक खुले, सुरक्षित और विश्वसनीय इंटरनेट तक सभी के लिए अबाध पहुंच महत्वपूर्ण है.

पत्र में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि भारत में करोड़ों लोगों की आजीविका डिजिटल सेवाओं पर निर्भर करती है और इससे जुड़ी अर्थव्यवस्था इंटरनेट शटडाउन से बाधित नहीं होनी चाहिए.

पत्र में संलग्न यह तस्वीर दुनिया भर में हुए इंटरनेट शटडाउन की स्थिति बताती है, जहां भारत शीर्ष पर है.

पत्र में मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (ओएससीएचआर) के उन शब्दों का हवाला दिया गया है, जिनमें इंटरनेट बंद करने से अपूरणीय क्षति होने की बात कही गई है, जिसमें मानवाधिकार, नौकरी खोने, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजनीतिक भागीदारी आदि प्रभावित होना शामिल है.

पत्र में कहा गया है कि ओएससीएचआर ने लाखों लोगों के जीवन और मानवाधिकारों पर शटडाउन के नाटकीय प्रभावों को असराहनीय बताते हुए राज्यों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, व्यवसायों और सिविल सोसायटी से इस पर बहुत अधिक ध्यान देने की बात कही थी.

पत्र में लिखा है, ‘भारत को 2022 में शटडाउन के कारण लगभग 184.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ, इसने 12,07,43,890 इंटरनेट उपयोगकर्ता और सभी क्षेत्रों के छोटे-बड़े व्यवसायों पर प्रभाव डाला. 2021 में नुकसान की राशि लगभग 583 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी.’

इसके मुताबिक, ‘2018 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक महानगरीय क्षेत्र में 10 दिनों से अधिक के शटडाउन से राज्य को अपनी वार्षिक जीडीपी का लगभग 0.8 फीसदा नुकसान होता है. और ब्रुकिंग्स के एक अध्ययन ने 2016 में इंटरनेट शटडाउन के कारण भारत में आर्थिक नुकसान को 968 मिलियन अमेरिकी डॉलर आंका था.’

पत्र में आगे कहा गया है कि बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने के अलावा, शटडाउन लोगों की आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और रोजगार के नुकसान में सीधे योगदान करते हैं. इनका महिलाओं पर भी अनुपातहीन प्रभाव पड़ता है. व्यापार, निवेशक और उपभोक्ता भी प्रभावित होते हैं.

पत्र में आगे कहा गया है, ‘इंटरनेट शटडाउन के मानवीय और आर्थिक, दोनों नुकसान अच्छी तरह से प्रमाणित हैं.’

पत्र में लिखा है कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने शटडाउन लगाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर बार-बार सरकार से जवाबदेही मांगी है.

2020 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि ‘दूरसंचार सेवाओं के निलंबन पर – चाहे वह इंटरनेट हो या कुछ और – एक कठोर उपाय होने के चलते सरकार द्वारा केवल ‘आवश्यक’ और ‘अपरिहार्य’ होने पर ही विचार किया जाना चाहिए.’ साथ ही, शटडाउन आदेशों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए.

पत्र में आगे कहा गया है, ‘ये ऐसी आवश्यकताएं हैं, जिनका पालन करने में अधिकारी लगातार विफल रहे हैं. विभिन्न संदर्भों में शटडाउन के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने वाले विभिन्न हाईकोर्ट की पृष्ठभूमि में और कम से कम एक हाईकोर्ट द्वारा शटडाउन हटाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सरकार से जवाब मांगा है.’

पत्र में कहा गया है, ‘दिसंबर 2021 में संचार और आईटी पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में इंटरनेट को ‘जीवनरेखा’ (Lifeline) माना गया था और पाया था कि वर्तमान कानूनी ढांचे में स्पष्टता और सुरक्षा उपायों का अभाव है, और इस प्रक्रिया में परामर्श और निगरानी सीमित है.’

इसके अनुसार, ‘रिपोर्ट में जवाबदेही बढ़ाने और शक्तियों के दुरुपयोग के खिलाफ सुरक्षा उपाय तैयार करने के लिए सरकार को लगभग एक दर्जन सिफारिशें की गईं थीं. हालांकि, सरकार ने किसी भी निष्कर्ष और सिफारिशों पर कार्रवाई नहीं की है. फरवरी 2023 में समिति ने अपनी एक्शन टेकन रिपोर्ट में इस संबंध में सरकार द्वारा ठोस कार्रवाई नहीं किए जाने पर निराशा व्यक्त की थी. समिति की सिफारिशों में दूरसंचार सेवाओं के निलंबन के लिए कानूनी व्यवस्था की समीक्षा और शटडाउन आदेशों का डेटाबेस तैयार करना शामिल है.’

पत्र में आगे कहा गया है कि कनेक्टिविटी में कोई भी व्यवधान देश के डिजिटल इंडिया विजन के साथ तालमेल नहीं खाता है और न ही भारत सरकार की उस घोषित इच्छा से तालमेल खाता है, जिसमें वह अपनी लोकतांत्रिक परंपरा और वैश्विक नेतृत्व को प्रदर्शित करना चाहती है, जैसा कि वह इस साल जी20 की अध्यक्षता कर रही है.

पत्र में आगे सरकार और संसद से पत्र में की गईं सिफारिशों पर कार्रवाई करने का आग्रह किया गया है, जिनमें संबंधित मौजूदा कानूनों की सभी हितधारकों से प्रतिक्रिया लेते हुए समीक्षा करना, संसदीय समिति की सिफारिशें लागू करना,  सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में अधिकारियों के बीच जागरूकता पैदा करना, समिति द्वारा मांगी गई सभी जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराना, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करना और पिछले वर्षों में दिए गए इंटरनेट शटडाउन सहित सभी शटडाउन आदेशों को सार्वजनिक करना, मनमाने ढंग से शटडाउन लगाने या अन्य कारणों से इंटरनेट तक पहुंच में बाधा डालने से बचना आदि शामिल हैं.

पूरे पत्र को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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