‘अयोध्या को अयोध्या ही न रहने दिया जाए तो क्या राम यहां रह पाएंगे?’

बीते दिनों अयोध्या के विश्वस्तरीय विकास के सरकारी दावे को ‘थका और बासी तर्क’ क़रार देते हुए शहर के प्रतिष्ठित आध्यात्मिक विचारक आचार्य मिथिलेशनन्दिनी शरण ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अयोध्या के भाजपा सांसद, विधायक आदि को टैग करते हुए लिखा कि बात यहां की सड़कें चौड़ी होने और निम्न-मध्य आय वर्ग के विस्थापित होने की आर्थिक-सामाजिक चिंताओं भर की नहीं है.

/
अयोध्या में बनाए जा रहे गोप्रतार घाट पर हो रहा सौंदर्यीकरण. (फोटो साभार: फेसबुक/@idamittham)

बीते दिनों अयोध्या के विश्वस्तरीय विकास के सरकारी दावे को ‘थका और बासी तर्क’ क़रार देते हुए शहर के प्रतिष्ठित आध्यात्मिक विचारक आचार्य मिथिलेशनन्दिनी शरण ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अयोध्या के भाजपा सांसद, विधायक आदि को टैग करते हुए लिखा कि बात यहां की सड़कें चौड़ी होने और निम्न-मध्य आय वर्ग के विस्थापित होने की आर्थिक-सामाजिक चिंताओं भर की नहीं है.

अयोध्या में बनाए जा रहे गोप्रतार घाट पर हो रहा सौंदर्यीकरण. (फोटो साभार: फेसबुक/@idamittham)

‘त्याग, वैराग्य और उपासना की राजधानी अयोध्या की जिस चौखट पर भक्त-श्रद्धालु निर्मल मन से माथा टेककर निर्भयता पाते थे, (अब) उस पावन चौखट की लकड़ी में भी घुन लगने लगे हैं… बैरागियों की इस सराय के कई सपने (अब) टूटते से लगते हैं…. उसकी आवाज इतनी दुर्बल (हो गई) है कि सोच के सन्नाटे में गए बिना उसे सुना भी नहीं जा सकता… अयोध्या की परंपराएं, उसकी प्रतिज्ञाएं, उसका अयोध्याशाही मिजाज सब दांव पर है और हम रो भी नहीं सकते… अयोध्या को अयोध्या न रहने दिया जाए तो क्या श्रीराम यहां रह पाएंगे?… सरयू, संत और संस्कृति के विलोपन के बाद जो अयोध्या उभरेगी, क्या वह भी रामपुरी ही होगी!’

गत दिनों अयोध्या के प्रतिष्ठित ‘आध्यात्मिक विचारक, दार्शनिक और महंत: श्री हनुमन्निवास’ (अपने ट्विटर एकाउंट में उन्होंने अपना यही परिचय दे रखा है.) आचार्य मिथिलेशनन्दिनी शरण ने एक लंबी फेसबुक पोस्ट में यह सब (और भी बहुत कुछ) लिखा तो जैसा कि बहुत स्वाभाविक था, अयोध्या में त्रेतायुग उतारने के सरकारी दावों के बरक्स उसने राजनीतिक व गैर राजनीतिक दोनों हलकों में भरपूर चर्चाएं बटोरीं.

राम मंदिर और अयोध्या के पुनर्निर्माण के मुखर समर्थक होने के बावजूद चूंकि अभी तक न उनकी कोई राजनीतिक सक्रियता सामने आई है, न ही उससे जुड़ी कोई महत्वाकांक्षा, इसलिए आम अयोध्यावासियों द्वारा उक्त पोस्ट में उनके द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं व पूछे गए सवालों को आमतौर पर सच्चे मन की अभिव्यक्तियां माना गया.

इसके कम से कम दो और कारण थे. पहला यह कि न वे श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से ‘असंतुष्ट’ संत-महंतों में शामिल हैं और न भाजपा या उसकी सरकारों के ऐसे आलोचक कि वह उन्हें रामविरोधियों से जोड़कर खारिज कर सके. दूसरा यह कि उन्होंने अपनी पोस्ट में बहुत भावुक होकर लिखा: मुझे नहीं पता कि मैं यह सब किससे कह रहा हूं, या इस अरण्यरोदन का क्या फल होगा… कोई इस दुख को दूर करने आ सकता है या कोई सिंह-व्याघ्र मेरी आवाज से उद्विग्न हो मेरा भक्षण कर सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, अयोध्या के भाजपा सांसद लल्लू सिंह, विधायक वेद गुप्ता और मेयर ऋशिकेश उपाध्याय आदि को टैग की गई इस पोस्ट में उन्होंने न सिर्फ अयोध्या के विश्वस्तरीय विकास के सरकारी दावे को ‘थका और बासी तर्क’ करार दिया बल्कि लिखा कि यह विषय सड़कें चौड़ी होने और निम्न-मध्य आय के लोगों के विस्थापित होने की आर्थिक-सामाजिक चिंताओं भर की नहीं है. उसके (तो) अनेक विकल्प हैं. उन्होंने लिखा कि वास्तव में विषय सात मोक्षदायिनी पुरियों में एक अयोध्या के अचानक पर्यटन केंद्र में बदले जाने की दुचिंता और ‘विनायकं प्रकुर्वाणो रचयामास वानरम्’ (विनायक बनाते-बनाते वानर बना दिया) की आशंका का है. इस सिलसिले में उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास को भी उद्धृत किया: बना तो रहे थे चंद्रमा पर बन गया राहु- ‘लिखत सुधाकर लिखिगा राहू.’

आगे अपनी चिंता को उन्होंने इन शब्दों में व्यक्त किया: सहस्रधारा तीर्थ से एक योजन पूर्व और एक योजन पश्चिम लंबाई और सरयू से तमसा तक की चौड़ाई वाली अंतर्गृही अयोध्या को सरयू कितने अंश में प्राप्त हैं, यह इस पर्यटन सिटी की चिंता नहीं है. यमस्थल, चक्रतीर्थ, ब्रह्मकुण्ड, कौशल्या घाट, कैकेयी घाट और सुमित्रा घाट जैसे तीर्थ कैसे अवैध आबादी बने हुए हैं, यह भी इसकी चिंता नहीं है. तिस पर : इस पर्यटन पुरी की निष्ठा… राम की पैड़ी में है, जहां सेल्फी खिंचाने के लिए धनुर्धर श्रीराम की प्रतिमा खुले आसमान के नीचे लगी है. ‘रामं छत्रावृताननम्’ कहने वाले आदिकवि महर्षि वाल्मीकि को कदाचित् कल्पना भी न रही हो कि… लोग उनके सिर से उनका पैतृक छत्र भी उतार लेंगे.

वे यहीं नहीं रुके, यह भी लिखा: आश्रमों का नगर, साधुओं का नगर, सहज मानवीय मूल्यों का नगर अचानक अप्रासंगिक हो उठा है. बात चल पड़ी है शहरी विकास की, पंच सितारा संस्कृति की और लग्जरी की… यात्री सुविधाओं, मल्टीलेवल पार्किंग, एयरपोर्ट और चौड़ी सड़कों वाली दिलफरेब अयोध्या में यात्री आकर करेंगे क्या! …ऑनलाइन बुकिंग कर लाइन में लगेंगे, (सरयू तट नहीं) रिवरफ्रंट पर सेल्फी लेंगे, क्रूज पर घूमेंगे, होटलों की विश्वस्तरीय सर्विसेज का सुख भोगेंगे और पंचकोसी, चौदह कोसी या चौरासी कोसी की वार्षिक यात्रा वाली अयोध्या के सिर पर हेलीकॉप्टर में बैठकर मंडराएंगे. या शायद कुछ और भी करें.

उन्होंने पूछा कि तब अयोध्या की बैरागियों, आचारियों, उदासियों, लश्करियों, जमातियों, मधुकरियों और ऐसी दर्जनों अन्य पहचानों का क्या होगा… (अभी तो जब विकसित होती दुनिया हरित व सौर ऊर्जा पर निर्भर कर रही है) सरयू तट की मछलियां मोटरचालित नावों के पंखों से घायल होकर घबराकर भाग रही हैं और… सरयू के जल में कच्चा और जला हुआ ईंधन घुल रहा है… आसमान में लोगों को मौज कराने के लिए हेलीकॉप्टर गड़गड़ा रहे हैं. अयोध्या के पक्षियों का आसमान भी अब उनका न रहेगा.

उन्होंने कुछ और प्रश्न भी किए: पुनः विकसित होने की सांसत में पड़ी इस अयोध्या के विश्वकर्मा या विक्रमादित्य कौन हैं? …श्रीरामजन्म भूमि को उन्मत्त लोक की क्रीड़ाभूमि बनाने का दायित्व वस्तुतः किस पर है? ठेके और कमीशन की कूटयोजना से डीपीआर बनाने वाले सरकारी गैरसरकारी अभियांत्रिक जगत् को अयोध्या की समझ और चिंता कितनी है?

फिर चेतावनी जैसी ‘व्यवस्था’ दी: निर्माण के कुछ मूल्य चुकाने पड़ते हैं… किंतु मूल्य वही होता है जिसे चुकाकर आप बचे रहते हैं… जिस मूल्य के बदले आप स्वयं चुक जाएं, वह मूल्य नहीं अभिशाप है.

इस पोस्ट का समय ऐसा था (तब अयोध्या के सांसद लल्लू सिंह द्वारा राजधानी दिल्ली में सात से नौ अप्रैल तक आयोजित अयोध्या पर्व की तैयारियां चल रही थीं और मीडिया राम मंदिर निर्माण की प्रगति व रामनवमी जुलूसों में हिंसा की खबरें देने में व्यस्त था.) कि उसके फेसबुक पर आने के बाद भाजपा, उसकी सरकारों व प्रशासन के कई हलकों में बेचैनी-सी फैल गई. दूसरी ओर उनके विरोधी (आचार्य के शब्दों में उनसे भयभीत लोग) पोस्ट को अयोध्या के उजड़ने-बिगड़ने की दशा का आर्तनाद मानकर उसका स्वर और तीखा करने में लग गए.

यह स्थिति तब तक बनी रही, जब तक आचार्य ने एक और पोस्ट में इस पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं व चर्चाओं को दिग्भ्रांत और समय को विमर्श के अयोग्य होता जाता नहीं बता डाला. इस नई पोस्ट में जहां एक ओर उन्होंने लिखा कि प्रश्न होंगे, असहमतियां भी होंगी, वहीं, यह भी कि ‘अयोध्या में चतुर्दिक कल्पनातीत संभावनाएं मुस्कुरा रही हैं’.

इतना ही नहीं, वे भाजपा के राज से पहले दशकों तक अयोध्या के राजनीतिक उपेक्षा और वितृष्णा से कुंंठित होने की बात भी कहने लगे. फिर तो ये सवाल भी पूछे जाने लगे कि क्या इसके पीछे सत्तापक्ष द्वारा किया गया डैमेज कंट्रोल का कोई प्रयास है?

कांग्रेस के प्रदेश महासचिव और प्रशासन प्रभारी दिनेश सिंह इस संभावना से इनकार नहीं करते. वे कहते हैं कि भाजपा ने सोचा था कि राम मंदिर निर्माण की आड़ में वह अयोध्या के उदात्त धर्म व संस्कृति से जो भी खिलवाड़ या अयोध्यावासियों पर जो भी अन्याय व अत्याचार करेंगी, उसे वे सिर झुकाकर स्वीकार करते रहेंगे. अब ऐसा नहीं हो रहा और लोग इसे लेकर आवाजें उठा रहे हैं तो असुरक्षा की शिकार और डरी हुई भाजपा असहमति का कोई विनम्र भी स्वर स्वीकार नहीं कर पा रही.

उनका दावा है कि यह अयोध्या के बदले हुए माहौल का ही असर है कि उनकी पार्टी के नेता राहुल गांधी को संसद की सदस्यता के आयेग्य ठहराए जाने के बाद सांसद के तौर पर उन्हें आवंटित बंगला खाली करने का नोटिस दिया गया और पार्टीजनों ने ‘मेरा घर राहुल का घर’ अभियान चलाना आरंभ किया तो अयोध्या की ऐतिहासिक हनुमानगढ़ी के महंत और अखिल भारतीय संकटमोचन सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय दास ने उनको गढ़ी के परिसर में स्थित अपना आवास देने का खुला ऑफर दिया और कहा कि हम अयोध्या के संत इस पावन नगरी में राहुल का स्वागत करते हैं. उनके लिए हनुमान जी का दरबार खुला हुआ है और वे जब भी चाहें, गढ़ी परिसर स्थित किसी भी आश्रम में आकर दर्शन, पूजा-अर्चना और निवास कर सकते हैं.

दिनेश सिंह के अनुसार उनके इस ऑफर से भाजपा इतने गहरे टेंशन में आ गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए हनुमान जी को ‘हनुमान दादा’ कह कर संबोधित किया और डींग हांक दी कि हनुमान दादा का ‘कैन डू एट्टीट्यूड’ उनकी प्रेरणा हैं. काश, वे समझते कि हनुमान जी किसी भी हालत में वैमनस्य व घृणा के प्रेरक नहीं बनते. अयोध्या में इसी को सिद्ध करती उनकी गढ़ी गंगाजमुनी तहजीब की बेमिसाल प्रतीक बनी हुई है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games