तमिलनाडु: विधानसभा में राज्यपाल द्वारा विधेयक मंज़ूर करने की समयसीमा तय करने का प्रस्ताव पारित

तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र और राष्ट्रपति से सदन द्वारा पारित किए गए विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए एक समयसीमा तय करने का आग्रह किया है. सितंबर 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद से राज्यपाल आरएन रवि के पास राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित लगभग 20 विधेयक उनकी मंज़ूरी के लिए लंबित हैं.

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक पेज)

तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र और राष्ट्रपति से सदन द्वारा पारित किए गए विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए एक समयसीमा तय करने का आग्रह किया है. सितंबर 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद से राज्यपाल आरएन रवि के पास राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित लगभग 20 विधेयक उनकी मंज़ूरी के लिए लंबित हैं.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक पेज)

चेन्नई: तमिलनाडु विधानसभा ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र और राष्ट्रपति से सदन द्वारा पारित किए गए विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए एक समयसीमा तय करने का आग्रह किया.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, राज्य सरकार का यह प्रस्ताव राज्यपाल के टिप्पणी के कुछ दिनों बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि रोके गए बिलों को ‘मृत’ माना जाना चाहिए। सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) ने राज्य में उन पर ‘अनावश्यक तनाव, विवाद और सामाजिक उथल-पुथल पैदा करने’ का आरोप लगाया था.

सितंबर 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद से राज्यपाल के पास राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित लगभग 20 विधेयक उनकी मंजूरी के लिए लंबित हैं.

प्रस्ताव पर राजभवन की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, जबकि अधिकारियों ने बाद में कहा कि रवि ने ऑनलाइन जुए (betting) पर प्रतिबंध लगाने वाले लंबित विधेयक को अपनी सहमति दी है.

सोमवार को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें केंद्र सरकार से आग्रह किया गया कि वह राज्यपाल को समयबद्ध तरीके से विधेयकों को अपनी स्वीकृति देने की सलाह दें.

प्रस्ताव पेश करते हुए स्टालिन ने राज्यपाल पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी सनक और पसंद के कारण कुछ विधेयकों को मंजूरी नहीं दी. उन्होंने राज्यपाल पर राजभवन को ‘राजनीतिक भवन’ में बदलने और तमिलनाडु के लोगों के कल्याण के खिलाफ काम करने का भी आरोप लगाया.

उन्होंने कहा, ‘मैं यह नहीं कहूंगा कि राज्यपाल को संविधान की जानकारी नहीं है, लेकिन उनकी राजनीतिक निष्ठा संविधान के प्रति उनकी वफादारी पर भारी पड़ रही है.’ स्टालिन ने कहा कि अगर राज्यपाल राजनीतिक कारणों से उनकी सरकार को निशाना बनाते रहे, तो वे चुप नहीं रहेंगे।

स्टालिन ने राज्यपाल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तमिलनाडु यात्रा की पूर्व संध्या या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए उनकी (स्टालिन की) राष्ट्रीय राजधानी की यात्रा से एक दिन पहले जानबूझकर राज्य सरकार के खिलाफ बोलने का भी आरोप लगाया.

स्टालिन ने कहा कि राज्यपालों को सरकार के साथ स्वस्थ चर्चा में शामिल होना चाहिए, लेकिन सार्वजनिक मंच पर प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘वे (रवि) सरकार की नीतियों, तमिलों की भावनाओं, विधानसभा की संप्रभुता, लोगों के हित और कल्याण के लिए सदन द्वारा पारित किए गए विधेयकों का अपमान कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि राज्यपाल अपने पद से आगे बढ़ रहे हैं और एक नेता की तरह बोल रहे हैं.

विद्यानसभा में पारित प्रस्ताव, जिसमें राज्यपाल द्वारा लंबित रखे गए विधेयकों को भी दर्ज किया गया है, में कहा गया है, ‘यह सम्मानित सदन केंद्र सरकार और राष्ट्रपति से आग्रह करता है कि वे संबंधित राज्यपालों को विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए एक विशिष्ट समयसीमा निर्धारित करें, जो राज्य के लोगों की आवाज हैं.’

ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) उस समय सदन में मौजूद नहीं थी जब प्रस्ताव पारित किया गया, क्योंकि इसने राज्य में कानून और व्यवस्था से संबंधित एक मुद्दे पर पहले ही दिन वॉकआउट कर लिया था.

विधानसभा में एकमात्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य ने डीएमके द्वारा प्रस्ताव पेश किए जाने पर बहिर्गमन किया.

नागरकोइल से भाजपा विधायक एमआर गांधी ने कहा, ‘हम विधानसभा से बाहर चले गए क्योंकि वे हमारे राज्यपाल आरएन रवि के खिलाफ प्रस्ताव ला रहे हैं. वे हमेशा भाजपा के खिलाफ मुद्दे पैदा कर रहे हैं.’

एक अन्य भाजपा विधायक सी. सरस्वती ने कहा कि डीएमके सरकार का प्रस्ताव राज्यपाल की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है. उन्होंने कहा, ‘वे राज्यपाल के अभिभाषण के खिलाफ प्रस्ताव पेश कर रहे हैं. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है.’

राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच कुछ समय से विभिन्न मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है, जिसमें लगभग 20 विधेयकों पर राज्यपाल की लंबित स्वीकृति भी शामिल है. करीब 20 विधेयकों में से राज्यपाल रवि ने दो सदन को वापस कर दिए थे.

संविधान के अनुसार विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक को राज्यपाल अस्वीकार नहीं कर सकते हैं. वह अपनी आपत्तियों या टिप्पणियों के साथ सरकार को एक विधेयक वापस कर सकते हैं और यदि विधानसभा इसे दूसरी बार मंजूरी देती है, तो वह या तो अपनी स्वीकृति दे सकते हैं या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आगे बढ़ा सकते हैं. हालांकि, संविधान राज्यपाल को दोनों में से किसी एक पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा प्रदान नहीं करता है.

6 अप्रैल को रवि ने उस समय विवाद खड़ा कर दिया जब उन्होंने कहा था कि राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं जब उन्हें किसी विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी होती है.

उन्होंने राजभवन में सिविल सेवा के उम्मीदवारों के साथ बातचीत के दौरान कहा था, ‘एक, स्वीकृति, दूसरा, अनुमति को रोक लें – रोक का मतलब यह नहीं है कि मैं इसे पकड़ रहा हूं. रोक को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित किया गया है क्योंकि विधेयक गिर जाता है, तो विधेयक ख़त्म हो चुका होता है. यह ‘reject’ शब्द के स्थान पर प्रयोग की जाने वाली एक सभ्य भाषा है. जब आप ‘रोके’ कहते हैं, तो बिल ख़त्म चुका होता है. तीसरा विकल्प, राज्यपाल भारत के राष्ट्रपति के लिए बिल सुरक्षित रख सकते हैं.’

इस बीच, राज्य में डीएमके के नेतृत्व वाले सेकुलर प्रगतिशील गठबंधन ने 14 अप्रैल को राजभवन के सामने विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है.