जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने एक यूट्यूब चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि मोदी सरकार के पास इन आरोपों के ख़िलाफ़ कोई बचाव नहीं है कि अडानी समूह की ज़बरदस्त वृद्धि में उसका हाथ था. उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को संसद में बोलने की अनुमति दी जानी चाहिए थी. उन्होंने इस बारे में स्पीकर के रवैये को ‘अभूतपूर्व’ क़रार दिया.
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के मुखर पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा है कि अडानी संकट का नरेंद्र मोदी सरकार पर क्रोनी कैपिटलिज्म के आरोपों का असर 2024 के आम चुनावों पर पड़ेगा.
रिपोर्ट के अनुसार, गोवा, जम्मू कश्मीर, मेघालय और बिहार के राज्यपाल के रूप में काम कर चुके मलिक ने यूट्यूब चैनल डीबी लाइव के साथ एक साक्षात्कार के दौरान विभिन्न मुद्दों पर टिप्पणी की.
उन्होंने पुलवामा आतंकी हमले, धारा 370 को निरस्त करने, अडानी समूह पर लगे आरोपों और उच्च शिक्षा संस्थानों पर आरएसएस के प्रभाव पर चर्चा की. साक्षात्कार 9 अप्रैल को यूट्यूब पर प्रकाशित हुआ था.
मलिक ने कहा कि मोदी सरकार के पास इन आरोपों के खिलाफ कोई बचाव नहीं है कि गौतम अडानी की जबरदस्त वृद्धि में उसका हाथ था. उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को संसद में बोलने की अनुमति दी जानी चाहिए थी. उन्होंने स्पीकर के रवैये को ‘अभूतपूर्व’ करार दिया.
अडानी समूह की कंपनियों में 20,000 करोड़ रुपये के स्रोत के बारे में गांधी के आरोपों का प्रधानमंत्री मोदी ने अभी भी जवाब नहीं दिया है.
पूर्व राज्यपाल ने आगे कहा कि अडानी मामला आम जनमानस के अंदर तक जा चुका है. उन्होंने एक गीत का हवाला दिया जिसे उन्होंने एक महिला को गाते हुए सुना, ‘ये न चायवाला है, न गाय वाला, अंबानी-अडानी का ये लगता साला है. इसने देश बेच डाला.’
मोदी के इस बयान का जिक्र करते हुए कि ‘उनकी छवि खराब करने के लिए उनके खिलाफ एक सुपारी निकाली गई’, मलिक ने कहा कि अगर ऐसा कोई क़रार हुआ होगा, तो यह ‘अडानी को ही दिया गया होगा.’
उन्होंने कहा कि अडानी का मामला ही प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को सबसे ज्यादा खराब कर रहा है. अडानी मामला 2024 के चुनावों में भाजपा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा.
अब निरस्त किए जा चुके तीन कृषि कानूनों के पारित होने के बाद से मलिक मोदी सरकार के आलोचक रहे हैं. उन्होंने पिछले साल जनवरी में कहा था कि जब उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया कि कानून के विरोध चल रहे आंदोलन में 500 किसान मारे गए हैं, तो मोदी ने पूछा था, ‘क्या वे मेरे लिए मरे?’
साक्षात्कार में मलिक ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा था कि सिखों और जाटों को दुश्मन न बनाएं और किसानों के आंदोलन को जल्दी से सुलझाएं. उन्होंने इस बयान को दोहराया कि मोदी ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया.
मलिक ने कहा कि वह किसी पार्टी में शामिल नहीं होंगे, लेकिन 2024 के आम चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ प्रचार करेंगे. उन्होंने कहा कि वह भाजपा का संयुक्त विपक्ष बनाने के लिए बातचीत कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि अगर 2024 के चुनाव में हर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के खिलाफ एक विपक्षी उम्मीदवार खड़ा किया जाता है, तो भाजपा को 150 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी.
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76 वर्षीय सत्यपाल मलिक उस आरोप- जिसमें उन्होंने पहले आरोप लगाया था कि एक निजी कंपनी ने उन्हें जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत देने की कोशिश की थी, के बारे में खुलासा किया कि सौदे में ज्यादा रुचि रखने वाले ‘आरएसएस पदाधिकारी’ राम माधव थे.
मलिक ने बताया कि उन्होंने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था जिसके लिए उन्हें रिश्वत के रूप में 300 करोड़ रुपये की पेशकश की गई थी. मलिक ने दावा किया कि प्रस्ताव रद्द करने के एक दिन बाद राम माधव सुबह 7 बजे राजभवन पहुंचे.
मलिक के अनुसार, आरएसएस नेता बहुत परेशान थे और उन्होंने पूछा, ‘कहां से ऐसे निवेश आएगा?’ मैंने कहा, ‘निवेश आए या न आए मैं गलत काम नहीं करूंगा.’
जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मलिक ने कहा था कि उन्होंने सीबीआई को बताया कि दो सौदों में कुछ लोग शामिल थे, जिनमें से एक हाइडल पावर प्लांट के लिए था. और ये लोग ‘माननीय प्रधानमंत्री के लोग’ थे.
फरवरी 2019 में हुए पुलवामा आतंकी हमले पर मलिक ने कहा कि सीआरपीएफ के जवानों की गतिविधियों के बारे में उन्हें जानकारी में नहीं रखा गया था. उन्होंने कहा कि हमले से पहले के दिनों में वे सड़क मार्ग से यात्रा करने के बजाय एक विमान चाहते थे, लेकिन अनुरोध को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया.
उन्होंने कहा कि आतंकी हमला लापरवाही और अक्षमता का परिणाम था और इसके पीछे कोई साजिश नहीं थी.
एक सवाल के जवाब में मलिक ने कहा कि पिछले एक साल में जिन कुलपतियों को नियुक्त किया गया है, उनमें से कई योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि आरएसएस से जुड़े होने के कारण नियुक्त किए गए हैं. उनमें से कई ‘इंटरमीडिएट कॉलेजों के प्रिंसिपल बनने के लायक भी नहीं थे.’
उन्होंने कहा कि जब वे राज्यपाल थे, तो उन पर भी कुछ लोगों को नियुक्त करने का दबाव था लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार किया था.
मलिक ने यह भी बताया कि उन्होंने गोवा के राज्यपाल का पद इसलिए छोड़ा क्योंकि प्रधानमंत्री ‘गोवा के एक भ्रष्ट मुख्यमंत्री का समर्थन कर रहे थे.’ मलिक के राज्यपाल के बतौर कार्यकाल, जो नवंबर 2019 से अगस्त 2020 तक चला था, के दौरान गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत थे.
कई विपक्ष शासित सरकारों और राज्यपालों के बीच कड़वे संबंधों के बारे में बात करते हुए मलिक ने संवैधानिक पद पर व्यक्तियों की नियुक्ति के तरीके में बदलाव की वकालत की. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि जी हुज़ूरी करने वालों को राज्यपाल के पद न मिले, नियुक्ति न्यायपालिका के परामर्श से की जानी चाहिए – ठीक वैसा ही जैसे के चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय ने हालिया फैसले में कहा.
गौरतलब है कि सितंबर 2022 में मेघालय के राज्यपाल के पद से सेवानिवृत्त हुए मलिक केंद्र की भाजपा सरकार पर जब-तब निशाना साधते रहे हैं. सितंबर महीने में ही उन्होंने कहा था कि उन्हें संकेत दिया गया था कि अगर वह केंद्र के खिलाफ बोलना बंद कर दें तो उन्हें उपराष्ट्रपति बना दिया जाएगा.
मलिक ने उस समय आयकर विभाग व ईडी द्वारा मारे जा रहे छापों को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना पर कहा था कि कुछ छापे भाजपा वालों पर भी डलवा दिए जाएं तो यह बात नहीं कही जाएगी. भाजपा में छापे डलवाने लायक बहुत लोग हैं.
इससे पहले सत्यपाल मलिक किसान आंदोलन से जुड़े मसलों को लेकर भी मोदी सरकार को आड़े हाथों ले चुके हैं. अगस्त 2022 में ही उन्होंने कहा था कि एमएसपी लागू न करने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का दोस्त अडानी है.
उससे पहले जून 2022 में मलिक ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि एमएसपी पर कानून नहीं बना तो देश में किसानों की सरकार के साथ बहुत भयानक लड़ाई होगी.
उसी साल मई में भी सत्यपाल मलिक ने एमएसपी पर कानून बनाने की वकालत करते हुए कहा था कि सरकार ने कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को समाप्त कराने के लिए जो वादे किए थे उन्हें अभी तक पूरा नहीं किया गया है. किसानों ने केवल दिल्ली में अपना धरना समाप्त किया है, लेकिन तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ उनका आंदोलन अभी भी जीवित है.
जनवरी 2022 में उन्होंने प्रधानमंत्री पर ‘घमंडी’ होने का आरोप लगाते हुए बताया था कि जब मलिक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से (अब निरस्त कर दिए गए) नए कृषि कानूनों को लेकर बात करनी चाही, तब वे ‘बहुत अहंकार में थे’ और मलिक की उनसे ‘पांच मिनट में ही लड़ाई हो गई.’