सुप्रीम कोर्ट ने म्युनिसिपल टैक्स वसूली मामले में रासुका लगाने पर यूपी सरकार को फटकारा

सुप्रीम कोर्ट ने सपा नेता यूसुफ़ मलिक के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत लगाए गए आरोपों को ख़ारिज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि बिना किसी ठोस आधार के एनएसए लगाने से राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप लगते हैं.

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(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

सुप्रीम कोर्ट ने सपा नेता यूसुफ़ मलिक के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत लगाए गए आरोपों को ख़ारिज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि बिना किसी ठोस आधार के एनएसए लगाने से राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप लगते हैं.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता यूसुफ मलिक के खिलाफ लगाए गए एनएसए के आरोपों को खारिज करते हुए मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि बिना किसी ठोस आधार के राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) को लागू करने से राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप लगते हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने रामपुर जेल में बंद सपा नेता यूसुफ मलिक की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, साथ ही नगरपालिका कर वसूली मामले के संबंध में नेता के खिलाफ रासुका लगाने के लिए राज्य सरकार को फटकार लगाई.

पीठ ने कहा, ‘राजस्व बकाया की वसूली के लिए रासुका लगाने पर हम हैरान हैं. मामले के रिकॉर्ड देखने के बाद हमारा मानना है कि यह स्पष्ट रूप से दिमाग न लगाने का मामला है. इसलिए हम रासुका को रद्द करते हैं व निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा किया जाए.’

पीठ, जिसमें जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला भी शामिल थे, ने आगे निर्देश दिया कि बिना किसी देरी के मलिक को तुरंत जेल से रिहा करने के लिए सूचना रामपुर जिला न्यायाधीश को भेजी जाए.

सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य सरकार द्वारा पिछली सुनवाई पर अदालत के सुझाव के बावजूद मलिक के खिलाफ एनएसए के आरोपों को वापस न लेने पर नाराजगी व्यक्त की. पीठ ने कहा, ‘क्या यह एनएसए का मामला है? यही कारण है कि राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप सामने आते हैं. यही कारण है कि सरकार के खिलाफ आरोप हैं.’

पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा कि सरकार को इसे स्वयं वापस लेना चाहिए था. पीठ ने कहा, ‘हमने आपको पिछली तारीखों पर आगाह किया था, लेकिन आपने इसे वापस नहीं लिया. हमने केवल एनएसए को खारिज किया है और अपने आदेश में और कुछ नहीं कहा है, लेकिन यही कारण है कि सभी तरह के राजनीतिक आरोप लगाए जा रहे हैं.’

सपा नेता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील एसडब्ल्यूए कादरी ने पीठ से अदालत के आदेश को तुरंत प्रसारित करने का अनुरोध किया ताकि मलिक को रिहा किया जा सके. पीठ ने उनकी दलील मंजूर कर ली.

सपा नेता और पूर्व सांसद आजम खान के करीबी सहयोगी मलिक ने जनवरी में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें शिकायत की गई थी कि अप्रैल 2022 में राज्य सरकार द्वारा एनएसए लगाने के खिलाफ उनकी याचिका को कई बार आग्रह के बाद भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय देख नहीं रहा है.

मलिक ने कहा कि एनएसए के तहत तीन एक्सटेंशन दिए गए हैं, जबकि उच्च न्यायालय को पहले प्रतिबंधात्मक आदेश की वैधता की जांच करनी बाकी थी.

27 जनवरी को शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि वह आमतौर पर उच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई में देरी के खिलाफ एक रिट याचिका पर विचार नहीं करती है लेकिन तथ्य काफी ठोस हैं जो उन्हें नोटिस जारी करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

अपनी कार्रवाई को सही ठहराते हुए राज्य सरकार ने फरवरी में इस मामले में एक हलफनामा दायर किया और बताया कि मलिक के खिलाफ एक और आपराधिक मामला दर्ज किया गया है, इसके अलावा 2022 में उनके दामाद से राजस्व बकाया की वसूली के लिए एक अतिरिक्त नगर आयुक्त को धमकी देने का मामला है.

हालांकि, अदालत राज्य की प्रतिक्रिया से अप्रभावित रही और आश्चर्य जताया कि क्या नगर निगम के बकाए की वसूली से संबंधित मामला एनएसए के गंभीर आरोपों के तहत किसी पर मामला दर्ज करने का आधार हो सकता है, जिसे खतरनाक अपराधियों से बचाने के लिए एक निवारक कानून माना जाता है.