राज्यपालों द्वारा बिल पास करने का समय तय करने को लेकर स्टालिन ने ग़ैर-भाजपा सीएम को पत्र लिखा

तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र और राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि सदन द्वारा पारित किए गए विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए समयसीमा तय की जाए. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर ऐसा ही प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया है.

एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक)

तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र और राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि सदन द्वारा पारित किए गए विधेयकों को मंज़ूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए समयसीमा तय की जाए. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर ऐसा ही प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया है.

एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बीते बुधवार को गैर-भाजपा शासित राज्यों में अपने समकक्षों को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया कि वे अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित करें, ताकि केंद्र से राज्यपालों द्वारा विधायिकाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा तय करने का आग्रह किया जा सके.

इससे पहले तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने राज्यपालों पर विधायिकाओं द्वारा पारित विधेयकों पर बैठने (निर्णय न लेने का) का आरोप लगा चुके हैं.

तमिलनाडु विधानसभा ने बीते सोमवार (10 अप्रैल) को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र और राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि सदन द्वारा अपनाए गए विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए समयसीमा तय की जाए.

यह कदम राज्यपाल आरएन रवि की टिप्पणी के कुछ दिनों बाद उठाया गया है कि जिन विधेयकों को रोक दिया गया है, उन्हें ‘मृत’ माना जाना चाहिए. इस बयान से राजनीतिक विवाद छिड़ गया था.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, गैर-बीजेपी शासित राज्यों में मुख्यमंत्रियों को लिखे अपने पत्र में स्टालिन ने कहा है, ‘कुछ राज्यपाल आज अनिश्चितकाल के लिए विभिन्न विधेयकों को रोक रहे हैं, जो राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित किया गया और अनुमोदन के लिए भेजा गया. इसकी वहज से संबंधित राज्य प्रशासन को ऐसे क्षेत्रों में गतिरोध से गुजरना पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए हमने ‘बिल टू बैन ऑनलाइन रम्मी’ सहित अनुमोदन के लिए भेजे गए विधेयकों पर राज्यपाल द्वारा उठाए गए संदेहों और चिंताओं को स्पष्ट करने के लिए कई प्रयास किए. जैसा कि हमारे प्रयास विफल रहे और हमें पता चला कि कई अन्य राज्यों में समान मुद्दे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमने तमिलनाडु में अपनी राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करना उचित समझा, जिसमें संबंधित विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए केंद्र सरकार और भारत के राष्ट्रपति से राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करने का आग्रह किया गया है.’

इस दौरान सोमवार को ही राज्यपाल ने विधानसभा द्वारा समयसीमा निर्धारित करने संबंधी प्रस्ताव पारित किए जाने के कुछ घंटों बाद तमिलनाडु के ऑनलाइन जुआ निषेध और ऑनलाइन खेलों के नियमन विधेयक को अपनी सहमति दे दी.

सितंबर 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद से उन्हें राज्य कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए लगभग 20 विधेयकों पर अपनी सहमति देनी है.

रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार को विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव की एक प्रति संलग्न करते हुए स्टालिन ने पत्र में कहा, ‘मुझे यकीन है कि आप (गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री) प्रस्ताव की भावना और सामग्री से सहमत होंगे और अपनी राज्य विधानसभा में समान प्रस्ताव पारित करके राज्य सरकारों और विधानसभाओं की संप्रभुता और स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए इस संबंध में अपना समर्थन देंगे.’

स्टालिन ने कहा कि भारतीय संविधान में राज्यपाल की भूमिका के साथ केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘हालांकि, यह देखा गया है कि ऐसे सिद्धांतों का अब न तो सम्मान किया जाता है और न ही उनका पालन किया जाता है, जिससे राज्य सरकारों के कामकाज पर असर पड़ता है.’

इससे पहले तेलंगाना, केरल और पश्चिम बंगाल जैसे विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यपालों पर विधायिकाओं द्वारा पारित विधेयकों पर बैठने का आरोप लगा चुके हैं.

स्टालिन का पत्र 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने के उनके प्रयासों के रूप में भी देखा जा रहा है. बीते 3 अप्रैल को उनकी पार्टी डीएमके ने ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस के पहले सम्मेलन की मेजबानी की थी, जिसमें 19 विपक्षी दलों ने भाग लिया था.

इस बीच डीएमके के नेतृत्व वाले सेक्युलर प्रोग्रेसिव अलायंस ने लंबित बिलों को लेकर बुधवार को तमिलनाडु राजभवन के सामने राज्यपाल के खिलाफ धरना भी दिया.

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच पिछले कुछ समय से विभिन्न मुद्दों को लेकर गतिरोध की स्थिति बनी हुई है. इन मुद्दों में लगभग 20 विधेयकों भी शामिल हैं, जिन पर राज्यपाल की सहमति लंबित है. इनमें से दो को उन्होंने सदन को वापस भेज दिया है.

अंडरग्रेजुएट मेडिकल कोर्स 2021 विधेयक, जो राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) को समाप्त करने का प्रयास करता है, को पिछले साल फरवरी में पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया गया था.

इसके अलावा तमिलनाडु ऑनलाइन गेम निषेध विधेयक, जो ऑनलाइन जुए पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है, इस साल मार्च में वापस कर दिया गया था क्योंकि राज्यपाल ने तर्क दिया था कि राज्य विधानसभा इस विषय पर कानून बनाने के लिए सक्षम नहीं है.

राज्य विधानसभा ने दूसरी बार इन दोनों विधेयकों को फिर से अपनाया और राज्यपाल को उनकी सहमति के लिए भेजा है. जहां नीट विरोधी विधेयक गृह मंत्रालय के पास है, वहीं ऑनलाइन जुए के खिलाफ विधेयक को राजभवन ने सोमवार को मंजूरी दे दी.

6 अप्रैल को राज्यपाल आरएन रवि की टिप्पणी पर राजनीतिक विवाद छिड़ गया था, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि जिन विधेयकों को रोक दिया गया है, उन्हें ‘मृत’ माना जाना चाहिए.

उनकी टिप्पणी की डीएमके सरकार द्वारा यह कहते हुए निंदा की गई थी कि यह एक व्यक्ति के लिए ‘अशोभनीय’ है, जो एक संवैधानिक पद रखता है.

संविधान के अनुसार विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक को राज्यपाल अस्वीकार नहीं कर सकता है. वह अपनी आपत्तियों या टिप्पणियों के साथ सरकार को विधेयक वापस कर सकता है और यदि विधानसभा इसे दूसरी बार मंजूरी देती है, तो वह या तो अपनी सहमति दे सकता है या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को आगे बढ़ा सकता है. हालांकि, संविधान राज्यपाल को दोनों में से किसी एक पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा प्रदान नहीं करता है.