विपक्षी दलों ने एनसीईआरटी की किताब से मौलाना आज़ाद का संदर्भ हटाने की निंदा की

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद कक्षा 11वीं की किताब से भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के सभी संदर्भों को भी हटा दिया है. कांग्रेस ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा इतिहास को फिर से लिखने और झूठ और असत्य पर बनी मनगढ़ंत, विकृत विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए एक ठोस प्रयास किया जा रहा है.

मौलाना आज़ाद और एनसीईआरटी का लोगो. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/फेसबुक)

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद कक्षा 11वीं की किताब से भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के सभी संदर्भों को भी हटा दिया है. कांग्रेस ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा इतिहास को फिर से लिखने और झूठ और असत्य पर बनी मनगढ़ंत, विकृत विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए एक ठोस प्रयास किया जा रहा है.

मौलाना आज़ाद और एनसीईआरटी का लोगो. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर/फेसबुक)

नई दिल्ली: विपक्षी दलों ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा प्रकाशित एक संशोधित राजनीति विज्ञान की किताब से मौलाना अबुल कलाम आजाद का संदर्भ हटाने की निंदा की है.

संशोधित किताब के लेखकों ने भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के सभी संदर्भों को भी हटा दिया है. कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की किताब ‘इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन ऐट वर्क’ के पहले अध्याय से आजाद के संदर्भ को हटाया गया है.

कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि इतिहास को फिर से लिखने और आगे बढ़ाने का ठोस प्रयास किया जा रहा है. सरकार इतिहास को विकृत करने की साजिश रच रही है.

बिजनेस स्टैंडर्स के मुताबिक, कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पार्टी प्रवक्ता अंशुल अविजित ने कहा कि इस सरकार द्वारा इतिहास को फिर से लिखने और झूठ और असत्य पर बनी मनगढ़ंत, विकृत विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए एक ठोस प्रयास किया जा रहा है.

अविजीत ने कहा कि एनसीईआरटी की 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब से मौलाना आजाद का नाम अनायास ही हटा दिया गया है, जो इतिहास, उनके नाम, कद, व्यक्तित्व और योगदान का एक बड़ा उपहास है.

उन्होंने कहा, ‘मैं कड़े इसे कड़े शब्दों में इसकी निंदा करता हूं. वह भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे और इस विडंबना को देखिए कि जिस पहले शिक्षा मंत्री ने 14 साल से कम उम्र के लोगों के लिए एक सार्वभौमिक अनिवार्य शिक्षा की नींव रखी, उनका नाम ही सबसे पहले हटाया गया है. यह बेहद शर्मनाक है.’

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में आजाद का महान योगदान था, वे एक महान विद्वान, गांधीवादी सिद्धांतों के अनुयायी, स्वराज और स्वदेशी के अनुयायी थे और संविधान सभा की समितियों के सदस्य थे.

उन्होंने कहा, ‘इस सरकार द्वारा इतिहास को फिर से लिखने की गति से कोई भी सुरक्षित नहीं है.’

आरएसएस पर इतिहास के पुनर्लेखन में शामिल होने का आरोप लगाते हुए अविजीत ने कहा, ‘जिन लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में कोई भूमिका नहीं निभाई, राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया और भारत के संविधान के निर्माण में उनकी कोई भूमिका नहीं थी, वे ही हैं जो खुद को हमारे इतिहास पर थोप रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘गुजरात दंगों का संदर्भ हटा दिया गया है, महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने का कोई संदर्भ नहीं है, जाति व्यवस्था के अत्याचारों को अब कम करके आंका गया है.’

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा, ‘क्या अपमान है. ऐतिहासिक आख्यान में उपेक्षित लोगों को जोड़ने पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन विशेष रूप से गलत कारणों से लोगों को हटाना हमारे विविध लोकतंत्र और इसके गौरवशाली इतिहास के लिए ठीक नहीं है.’

द हिंदू के मुताबिक, कांग्रेस के अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता क्लाइड क्रेस्टो ने कहा, ‘मौलाना आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार हमारी शिक्षा प्रणाली से उनका नाम मिटा रही है.’

यह देखते हुए कि एनसीईआरटी भारत सरकार का एक हिस्सा है और केंद्र में सरकार भाजपा के नेतृत्व में है, क्रेस्टो ने कहा, ‘एनसीईआरटी को भारत के नागरिकों को स्पष्ट करना चाहिए और जवाब देना चाहिए कि उन्होंने मौलाना आजाद का संदर्भ नई पाठ्यपुस्तक से क्यों हटाया है, जबकि 11वीं कक्षा की एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की पुरानी पाठ्यपुस्तक में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख किया गया था.’

उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने पिछले साल मौलाना आजाद फेलोशिप को बंद कर दिया था, जिसे 2009 में शुरू किया गया था. इसके तहत छह अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को पांच साल की अवधि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी.

गौरतलब है कि इससे पहले भी नरेंद्र मोदी सरकार आजाद के नाम पर अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को दी जाने वाली मौलाना आजाद राष्ट्रीय फेलोशिप को दिसंबर 2022 में खत्म कर चुकी है. उसके बाद अब उनसे जुड़े संदर्भ एनसीईआरटी द्वारा पाठ्यपुस्तक से हटाए गए हैं.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया, ‘स्कूल की पाठ्यपुस्तकों से मौलाना आजाद के किसी भी संदर्भ को हटाना अपमानजनक है. आरएसएस की फासीवादी वैचारिक योजना को आगे बढ़ाने के लिए झूठा विमर्श तैयार कर इतिहास का ऐसा प्रतिशोधपूर्ण पुनर्लेखन आधुनिक भारत की नींव को नष्ट करेगा.’

उन्होंने कहा, ‘यह कदम नृशंस और अस्वीकार्य है. मौलाना अब्दुल कलाम आजाद एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे. नेताजी की आईएनए में गुरिल्ला लड़ाकों की एक ‘आजाद ब्रिगेड’ थी. उन्होंने भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में सेवा की, जिसने दुनिया के कुछ बेहतरीन सोच-समझ वाले लोग दिए.’

पूर्व कांग्रेस नेता और डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने एक ट्वीट में कहा, ‘यह अस्वीकार्य है. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और शिक्षा प्रणाली में मौलाना आजाद का योगदान निर्विवाद है और उनका नाम मिटा देना एक राष्ट्र के रूप में हमारी प्रगति के लिए प्रतिकूल होगा. आइए हमारे अतीत के महान नेताओं को स्वीकार करें और उनकी सराहना करें, जिन्होंने हमारे भविष्य को आकार देने में मदद की!’

इतिहार एस. इरफान हबीब ने कहा, ‘एनसीईआरटी की सांप्रदायिक कुल्हाड़ी का सामना करने वाले अब मुगल अकेले नहीं हैं, यहां तक कि मौलाना आजाद जैसे हमारे अथक राष्ट्रवादी को भी पाठ्यपुस्तकों में जगह नहीं मिली है. वह खुले तौर पर उस सांप्रदायिक विचारधारा के शिकार हैं, जिसके खिलाफ उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया. ये शर्म की बात है.’

मालूम हो कि एनसीईआरटी की कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन ऐट वर्क’ के पहले अध्याय से देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के संदर्भ और उसी पाठ्यपुस्तक के अध्याय 10 में उल्लिखित जम्मू कश्मीर के भारत में विलय से जुड़ी वह शर्त हटा दी गई है, जिसमें इसे संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्त बनाए रखने की बात कही गई थी.

पुरानी पाठ्यपुस्तक में कहा गया था, ‘संविधान सभा में विभिन्न विषयों पर आठ प्रमुख समितियां थीं. आमतौर पर जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद या आंबेडकर इन समितियों के अध्यक्ष हुआ करते थे.’

इस संदर्भ को हटा दिया गया है.

इस कड़ी में 12वीं कक्षा की इतिहास की किताबों से मुगलों और 2002 के गुजरात दंगों पर सामग्री को हटाना और महात्मा गांधी पर कुछ अंश हटाया जाना शामिल है.

उल्लेखनीय है कि एनसीईआरटी ऐसा पहले भी कर चुका है. 2022 में एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटा दिए थे, जिस पर शिक्षकों ने विरोध जताया था.

इसी तरह, कोविड के समय एनसीईआरटी ने समाजशास्त्र की किताब से जातिगत भेदभाव से संबंधित सामग्री हटाई थी. इससे पहले कक्षा 12 की एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की किताब में जम्मू कश्मीर संबंधी पाठ में बदलाव किया था.

वहीं, कक्षा 10वीं की इतिहास की किताब से राष्ट्रवाद समेत तीन अध्याय हटाए थे. उसके पहले 9वीं कक्षा की किताबों से त्रावणकोर की महिलाओं के जातीय संघर्ष समेत तीन अध्याय हटाए गए थे.

वहीं, 2018 में भी एक ऐसे ही बदलाव में कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में ‘गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगों’ में से ‘मुस्लिम विरोधी’ शब्द हटा दिया था.

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