मोदी सरनेम: राहुल के वकील ने कहा- जज मेरे क्लाइंट के प्रति कठोर थे, उन्होंने उन्हें ढीठ कहा था

गुजरात में सूरत की अदालत में बीते बृ​हस्पतिवार को ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई हुई. राहुल की ओर से पेश उनके वकील ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश को गुमराह किया गया था. अदालत ने अपना फैसला 20 अप्रैल तक के लिए सुरक्षित रख लिया है. 

राहुल गांधी. (फोटो साभार: फेसबुक/@rahulgandhi)

गुजरात में सूरत की अदालत में बीते बृ​हस्पतिवार को ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई हुई. राहुल की ओर से पेश उनके वकील ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश को गुमराह किया गया था. अदालत ने अपना फैसला 20 अप्रैल तक के लिए सुरक्षित रख लिया है.

राहुल गांधी. (फोटो साभार: फेसबुक/@rahulgandhi)

नई दिल्ली: गुजरात में सूरत की एक सत्र अदालत में बीते गुरुवार (13 अप्रैल) को कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई शुरू हुई.

राहुल गांधी के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा ने कहा कि गांधी वायनाड से रिकॉर्ड अंतर से चुने गए थे और दोष सिद्ध होने के बाद उनकी संसद सदस्यता का जाना बड़ी क्षति है.

बीते 23 मार्च को सूरत की एक अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनकी कथित ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ दायर 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में दो साल की जेल की सजा सुनाई थी.

राहुल के खिलाफ भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी द्वारा 13 अप्रैल, 2019 को केस दर्ज कराया गया था. उन्होंने कर्नाटक के कोलार में लोकसभा चुनाव के समय एक रैली में राहुल द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर शिकायत की थी.

दोषी ठहराए जाने के अगले दिन 24 मार्च को राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया. लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया था कि वायनाड से सांसद राहुल गांधी को 23 मार्च 2023 से अयोग्य घोषित कर दिया गया है. इसके बाद उन्हें उनका सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस भी मिला था.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान राहुल गांधी की ओर से पेश उनके वकील चीमा ने दलील दी कि मानहानि कानून के मुताबिक केवल पीड़ित व्यक्ति ही शिकायत दर्ज करा सकता है.

चीमा ने कहा, ‘इसका मतलब यह होगा कि एक व्यक्ति, जिसे बदनाम किया गया है, पीड़ित व्यक्ति होगा. आईपीसी की धारा 499 (मानहानि) के स्पष्टीकरण 2 में कहा गया है कि यह मानहानि होगी, यदि यह किसी कंपनी, व्यक्तियों के समूह आदि के खिलाफ है. मुझे केवल तभी बदनाम किया जा सकता है, जब मेरी कंपनी, मेरे समूह या व्यक्तियों के समूह को बदनाम किया गया है. तभी मैं शिकायत दर्ज कर सकता हूं.’

उन्होंने तर्क दिया कि इसलिए, अदालत को यह जांच करनी होगी कि क्या पूर्णेश मोदी के पास शिकायत दर्ज करने का अधिकार था?

इस संबंध में चीमा ने कहा कि राहुल गांधी के भाषण का प्रासंगिक विश्लेषण करने की जरूरत है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या उनकी ओर से मोदी सरनेम वाले व्यक्तियों के समूह को बदनाम करने की कोई मंशा थी.

चीमा ने कहा, ‘मेरा भाषण तब तक मानहानिकारक नहीं है जब तक कि संदर्भ से बाहर कर उसे न देखा जाए, लेकिन उसे परिपेक्ष्य से अलग रखकर मानहानिकारक बनाया गया.’

उन्होंने तर्क दिया कि यह मुकदमा और कुछ नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आलोचनात्मक रूप से बोलने का नतीजा है.

राहुल की ओर से उन्होंने ​कहा, ‘मूल रूप से हमारे प्रधानमंत्री के बारे में मुखर रूप से आलोचना करने का साहस करने के लिए मुझ पर मुकदमा चलाया गया. ट्रायल मेरे लिए कठोर और अनुचित था.’

उन्होंने ट्रायल कोर्ट के सामने पेश किए गए सबूतों पर भी आपत्ति जताई और कहा कि पूरे भाषण को रिकॉर्ड में नहीं लाया गया.

बार एंड बेंच के अनुसार, चीमा ने कहा, ‘कानून यह है कि अगर आप कुछ रिकॉर्ड पर लाना चाहते हैं तो आपको भाषण के स्रोत को लाने की आवश्यकता है. लेकिन इस मामले में हर तरीका विफल रहा, क्योंकि उन्होंने पूरे भाषण को रिकॉर्ड पर नहीं लाया. भाषण 13 अप्रैल को कोलार (कर्नाटक) में दिया गया था. यह 14 अप्रैल को स्थानीय प्रेस द्वारा रिपोर्ट किया गया था. शिकायत 15 अप्रैल को दर्ज की गई थी और 16 अप्रैल को उनके बयान दर्ज किए गए थे. इसके बाद से सुनवाई तक रिकॉर्ड पर कोई अन्य सबूत नहीं लाया गया है.’

विशेष रूप से वरिष्ठ अधिवक्ता (चीमा) ने मामले की सुनवाई में सूरत मजिस्ट्रेट अदालत के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया, जब विचाराधीन घटना कोलार में हुई थी.

शिकायतकर्ता (पूर्णेश मोदी) के भौगोलिक क्षेत्राधिकार का मुद्दा उठाते हुए चीमा ने कहा कि भाषण कोलार में दिया गया था और शिकायतकर्ता को उसके वॉट्सऐप पर एक संदेश मिला.

चीमा ने पूछा, ‘शिकायतकर्ता को उसके वॉट्सएप पर एक संदेश मिला था. वह सूरत में रहते हैं, भाषण कोलार में दिया गया था, इसलिए अधिकार क्षेत्र संदिग्ध है. मान लीजिए कि कोई मुझे एक संदेश भेजता है और मुझे यह तब मिला, जब मैं चंडीगढ़ में अपने घर पर था तो क्या मैं चंडीगढ़ में याचिका दायर कर सकता हूं.’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मानहानि कानून को लागू करने के लिए बहुत बारीकी से जांच करने की जरूरत है.

चीमा ने कहा, ‘अगर कोई कहता है कि आप पंजाबी झगड़ालू और गाली-गलौज करने वाले हैं, तो क्या मैं जाकर मानहानि का मुकदमा दायर कर सकता हूं? ऐसे शब्दों का इस्तेमाल अक्सर गुजरातियों, अन्य भाषायी समूहों, धार्मिक संस्थाओं आदि के लिए किया जाता है.’

चीमा ने शिकायतकर्ता के तर्क पर भी सवाल उठाया कि मोदी सरनेम वाले 13 करोड़ लोगों को बदनाम किया गया, जबकि गुजरातियों की कुल आबादी केवल 6 करोड़ थी.

उन्होंने यह भी पूछा कि क्या ‘मोदी सरनेम’ वाला हर कोई एक वर्ग बना सकता है. इस संबंध में उन्होंने गवाह के बयान पर भरोसा किया, जिसने गवाही दी कि मोदी एक जाति नहीं है, बल्कि ‘गोसाई’ एक जाति है और ‘गोसाई जाति’ के लोगों को अक्सर ‘मोदी’ कहा जाता है.

उन्होंने कहा, ‘मोदी समुदाय क्या है, इसे लेकर बहुत भ्रम है और यह शिकायतकर्ता और उसके गवाहों की गवाही से आ रहा है. अगर हम इस समूह की पहचान करने की कोशिश करते हैं तो सबूत हमें भ्रमित करते हैं.’

बार एंड बेंच के अनुसार, महत्वपूर्ण रूप से चीमा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे ट्रायल कोर्ट ने राहुल गांधी को दोषी ठहराया था और सजा के तुरंत बाद अपराध के लिए अधिकतम सजा सुनाई थी.

चीमा ने कहा, ‘सुबह 11:51 बजे मेरे मुवक्किल को दोषी ठहराया जाता है और आधे घंटे के भीतर उन्हें सबसे कठोर और अधिकतम सजा दी जाती है. जज ने कहा है कि आप सांसद हैं और मैं समाज को संदेश देना चाहता हूं.’

चीमा ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि अदालत इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थी कि अगर उसने उन्हें एक दिन भी कम सजा दी होती, तो वह अयोग्य नहीं होते.’

दिलचस्प बात यह है कि चीमा ने राहुल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की पिछली टिप्पणी के संबंध में मजिस्ट्रेट के आदेश की सत्यता को भी विवादित बताया.

उन्होंने कहा, ‘मैं इस बात पर हैरानी जताना चाहता हूं कि ट्रायल कोर्ट कहा था कि ‘आपको (राहुल गांधी) सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी दी थी. बड़े ढीठ हो आप कुछ नहीं समझे’. मुझे खेद है कि मैं कड़े शब्दों का प्रयोग कर रहा हूं, लेकिन हां न्यायाधीश को गुमराह किया गया और वह (उनके प्रति) कठोर थे.’

चीमा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी राहुल गांधी के कोलार में दिए गए भाषण के पहले नहीं, बल्कि बाद में आई है.

चीमा ने पूछा, ‘राहुल ने नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट (चौकीदार ही चोर है टिप्पणी के लिए) से माफी मांगी थी और (इससे पहले) अप्रैल 2019 में इस मामले में विचाराधीन भाषण दिया था. तो न्यायाधीश कार्यवाही पर कैसे भरोसा कर सकते हैं, जहां शिकायतकर्ता ने कहा है कि उन्हें शीर्ष अदालत ने फटकार लगाई थी. भाषण सुप्रीम कोर्ट में माफी से पहले दिया गया था. तो वे इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं और कह सकते हैं कि उन्होंने शीर्ष अदालत की कार्यवाही से कुछ नहीं सीखा.’

बार एंड बेंच के मुताबिक, कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा दायर आपराधिक मानहानि मामले में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा उनकी सजा पर रोक लगाने की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. 20 अप्रैल को फैसला सुनाया जाएगा.

मालूम हो कि राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी द्वारा 13 अप्रैल, 2019 को केस दर्ज कराया गया था. उन्होंने कर्नाटक के कोलार में लोकसभा चुनाव के समय एक रैली में राहुल द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर शिकायत की थी.

राहुल गांधी ने कथित तौर पर रैली के दौरान कहा था, ‘सभी चोर, चाहे वह नीरव मोदी हों, ललित मोदी हों या नरेंद्र मोदी, उनके नाम में मोदी क्यों है.’