एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति मनमाना और संस्थागत अखंडता और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. गोयल को 19 नवंबर 2022 को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था.
नई दिल्ली: चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले गैर-सरकार संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि उनकी नियुक्ति मनमाना थी और यह संस्थागत अखंडता और चुनाव आयोग की स्वतंत्रता का उल्लंघन है.
सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, उनके अलग होने की घोषणा करने से पहले सोमवार को मामले की कुछ देर के लिए सुनवाई हुई, जिसमें प्रशांत भूषण याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए.
जस्टिस नागरत्ना ने भूषण से पूछा कि गोयल की नियुक्ति में किस नियम का उल्लंघन किया गया है, यह सुझाव देते हुए कि यह जल्दबाजी में किया गया हो सकता है, कोई नियम नहीं तोड़ा गया है.
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को नवंबर 2022 में चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था. वह फरवरी 2025 में राजीव कुमार के पद छोड़ने के बाद अगले मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के लिए कतार में हैं. गोयल का कार्यकाल दिसंबर 2027 तक होगा.
दलील में एडीआर ने तर्क दिया कि अरूप बरनवाल बनाम भारत संघ के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया था कि गोयल तैयार किए गए पैनल के चार व्यक्तियों में सबसे युवा थे.
एडीआर के अनुसार, अदालत ने कहा था कि पैनल जान-बूझकर इस तरह से तैयार किया गया था, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अन्य आवेदकों को खारिज कर दिया जाए.
बार और बेंच के अनुसार एडीआर ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पष्ट रूप से माना है कि हालांकि अरुण गोयल उन अन्य लोगों की तुलना में युवा थे, जिन्हें सूचीबद्ध किया गया था, फिर भी उनके पास छह साल का पूरा कार्यकाल नहीं होगा जैसा कि चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कामकाज का लेन-देन) अधिनियम, 1991 की धारा 4 के तहत अनिवार्य है और अदालत ने कहा है कि छह साल से कम का कार्यकाल भारत के चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालेगा.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एडीआर द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 2 मार्च को फैसला सुनाया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को एक पैनल द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) शामिल हों.
कहा गया है कि एडीआर ने अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइलों का अवलोकन किया है और इसमें ‘स्पष्ट मनमानी’ नजर आती है.
चयन में मानदंडों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एनजीओ ने तर्क दिया कि भारत संघ और गोयल ने ‘अपनी चूक और आयोग के अपने कृत्यों के माध्यम से अपने स्वयं के लाभ के लिए एक सावधानीपूर्वक आयोजित ‘चयन प्रक्रिया’ में भाग लिया’.
एडीआर ने तर्क दिया कि ‘मुद्दा गोयल की व्यक्तिगत योग्यता नहीं है’ बल्कि जिस तरह से गोयल की नियुक्ति हुई है यह ‘चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता है’ का मुद्दा है.
लाइव लॉ के मुताबिक, कहा गया कि ‘कार्यपालिका द्वारा की गई मनमानी के कारण चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति एक ‘हां में हां मिलाने वाले व्यक्ति’ (Yes Man) की धारणा से प्रभावित है.’
ज्ञात हो कि बीते मार्च में मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति के लिए सरकार की शक्ति को सीमित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि उन्हें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर नियुक्त किया जाएगा.
नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति में ‘जल्दबाजी’ पर सवाल उठाए थे. शीर्ष अदालत ने कहा था कि गोयल की चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्ति में ‘बहुत तेजी’ दिखाई गई और उनकी फाइल 24 घंटे भी विभागों के पास नहीं रही.
पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी अरुण गोयल को 19 नवंबर 2022 को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था. वह 60 वर्ष के होने पर 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले थे.