आजकल के नेता आलोचना को लेकर असहिष्णु होते जा रहे हैं: वेंकैया नायडू

पूर्व उपराष्ट्रपति और एम. वेंकैया नायडू ने एक समारोह में कहा कि नेता पत्रकारों के सभी दृष्टिकोणों से सहमत नहीं हो सकते हैं, लेकिन उन्हें आलोचना को अपने पक्ष में लेना चाहिए. पत्रकारों को नेताओं और हस्तियों की आलोचना करने के लिए स्वतंत्र महसूस करना चाहिए, अन्यथा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

समारोह में एम. वेंकैया नायडू. (फोटो साभार: ट्विटर/@MVenkaiahNaidu)

पूर्व उपराष्ट्रपति और एम. वेंकैया नायडू ने एक समारोह में कहा कि नेता पत्रकारों के सभी दृष्टिकोणों से सहमत नहीं हो सकते हैं, लेकिन उन्हें आलोचना को अपने पक्ष में लेना चाहिए. पत्रकारों को नेताओं और हस्तियों की आलोचना करने के लिए स्वतंत्र महसूस करना चाहिए, अन्यथा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.

समारोह में एम. वेंकैया नायडू. (फोटो साभार: ट्विटर/@MVenkaiahNaidu)

नई दिल्ली: भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता एम. वेंकैया नायडू ने रविवार (16 अप्रैल) को कहा कि वर्तमान नेता आलोचना के प्रति असहिष्णु होते जा रहे हैं. उन्होंने उन्हें सलाह दी कि वे आलोचनाओं को शालीनता से स्वीकार करें.

रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने प्रेस क्लब में आयोजित एक समारोह में कहा, ‘नेता पत्रकारों के सभी दृष्टिकोणों से सहमत नहीं हो सकते हैं, लेकिन उन्हें आलोचना को अपने पक्ष में लेना चाहिए, और पत्रकारों को नेताओं और सार्वजनिक हस्तियों की आलोचना करने के लिए स्वतंत्र महसूस करना चाहिए, अन्यथा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा.’

नायडू हैदराबाद प्रेस क्लब में साहित्य अकादमी सम्मानित लेखक, कवि और पत्रकार ए. कृष्णा राव को पत्रकारिता के लिए गोरा शास्त्री अवॉर्ड देने के समारोह में पहुंचे थे.

द हिंदू के मुताबिक, हाल ही में नायडू ने कहा था कि कई दृष्टिकोणों को समझने वाले नेताओं की संख्या कम हो रही है. उन्होंने ‘पत्रकारों कि ख़बरों को अपने विचारों से भरने की बढ़ती प्रवृत्ति’ की भी निंदा की थी. प्रेस क्लब के आयोजन में उन्होंने राव की ख़बरों में निष्पक्षता बरतने की सराहना भी की.

तेलुगु अख़बार आंध्र ज्योति के अनुसार, नायडू ने कहा कि राव के लेखों और अख़बार में अक्सर उनकी आलोचना की जाती है, लेकिन लोकतंत्र की पहली विशेषता ही आलोचना को स्वीकार करना है.’

नायडू के इस बयान की पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने तारीफ की.

उन्होंने इससे संबंधित खबर साझा करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘पूर्व उपराष्ट्रपति को प्रेस की आजादी पर बोलते देखना सुखद है. उम्मीद है कि सत्ता और ऊंचे ओहदों पर बैठे लोग, जो समझते हैं कि आलोचना से कथित तौर पर ‘भारत’ (पढ़ें: मोदी) को चोट पहुंचती हैं, ने इस बात पर ध्यान दिया हो कि उन्होंने क्या कहा.’

गौरतलब है कि भारत में प्रेस की आजादी लगातार सवालों के घेरे में रही है और 2015 के बाद से रिपोर्टर्स सैंस फ्रंटियर्स के विश्व स्तर पर बनाए गए वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की स्थिति में भारी गिरावट देखी गई है. वर्तमान सर्वेक्षण में शामिल 180 देशों में भारत नीचे से 30 में शामिल है.

बीते सालों में ऑनलाइन सूचना के लिए लाए गए सूचना प्रौद्योगिकी नियम आलोचना का केंद्र रहे हैं और इन्हें अदालतों में चुनौती दी गई है. अब ऑनलाइन मंचों के लिए इसी महीने की शुरुआत में अधिसूचित किए गए नए नियम भी सवालों के घेरे में हैं. यह नियम कहते हैं कि यदि सरकार की फैक्ट-चेक इकाई किसी सूचना/जानकारी को ‘फर्जी या भ्रामक’ करार दे देती है तो इन्हें सोशल मीडिया मंच और इंटरनेट प्रदाताओं को हटाना ही होगा.