छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में की इस विस्तार योजना को आदिवासी समुदाय से तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद राज्य सरकार ने इस पर रोक लगा दी थी.
मुंबई: छत्तीसगढ़ में मौजूदा खदान के निचले हिस्से में बिना निकला लाखों टन कोयला पड़ा होने के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्य में लगभग 3,000 एकड़ वन भूमि को साफ करने की अनुमति दी थी.
सरकार द्वारा वित्तपोषित दो रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए स्क्रॉल ने बताया है कि अडानी समूह को हसदेव अरण्य के जंगल को जरूरत से ज्यादा तेजी से साफ करते हुए खनन क्षेत्र का विस्तार करने की अनुमति दी गई है. हसदेव अरण्य मध्य भारत के अंतिम अखंडित वन क्षेत्रों में से एक है.
स्क्रॉल रिपोर्ट में कहा गया है कि दो सरकारी संस्थानों- भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान- ने मई 2019 और फरवरी 2021 के बीच उत्तरी छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र में जैव विविधता अध्ययन किया.
अध्ययन में कहा गया है कि खदान से अपेक्षा से कम मात्रा में उत्पादन किया गया या कोयल की तह तक पहुंचने के लिए मिट्टी को हटाया गया.
अध्ययन दिखाता है कि ऐसा इसलिए था क्योंकि खदान की सबसे निचली तह की खुदाई नहीं की गई थी. और इसके बावजूद भी, अडानी समूह को विस्तार की अनुमति दी गई.
इसी रिपोर्ट में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने क्षेत्र में खनन के पारिस्थितिकीय मूल्य पर भी प्रकाश डाला है. इसने सिफारिश की, ‘खनन संचालन की अनुमति केवल ब्लॉक की पहले से चालू खदान में ही दी जा सकती है’- यानी, विस्तार प्रस्ताव को खारिज कर दिया जाना चाहिए.
स्क्रॉल के अरुणाभ सैकिया अपने लेख में बताते हैं कि फरवरी 2022 में खदान के विस्तार को मंजूरी देते समय मोदी सरकार ने पारिस्थितिक प्रभाव को नजरअंदाज कर दिया था.
विस्तार योजना को छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय से तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा था, जिसने राज्य सरकार को विस्तार को रोकने के लिए मजबूर दिया था.
स्क्रॉल का कहना है कि बिना निकाले गए कोयले के बारे में ये निष्कर्ष हसदेव अरण्य में अडानी समूह के कोयला खनन कार्यों के इर्द-गिर्द सवाल खड़े करते हैं.
अडानी समूह राजस्थान की राज्य बिजली उत्पादन कंपनी राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड, की ओर से 2013 से परसा पूर्व और कांते बेसन खदान से कोयले की खुदाई कर रहा है. यह खदान मूल रूप से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित की गई है.
सरकारी कंपनियों द्वारा खनन को निजी फर्मों को आउटसोर्स करना आम बात है. लेकिन स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक, राजस्थान और अडानी समूह के बीच समझौता विवादास्पद है. उनकी पड़ताल के मुताबिक, राजस्थान ने न केवल अडानी को एक खनन ठेकेदार के रूप में अनुबंधित किया, बल्कि उसने कंपनी के साथ एक संयुक्त उद्यम समझौता किया, जिसमें उसे 74 प्रतिशत हिस्सेदारी दी गई.
यह समझौता 2007 का है, जब राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार थी. वर्तमान में राज्य में कांग्रेस सत्ता में है. इसके बावजूद, राजस्थान ने परियोजना के विस्तार पर जोर दिया है.
स्क्रॉल के अनुसार, सितंबर 2020 में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर दावा किया कि परसा पूर्व और कांता बसन खदान- जिन्हें परियोजना के पहले चरण में खनन के लिए मंजूरी दी गई थी- के 762 हेक्टेयर क्षेत्र में कोयला भंडार लगभग समाप्त हो गया है.
स्क्रॉल की रिपोर्ट में सरकार के हवाले से कहा गया है, ‘अपने बिजली स्टेशनों को एक कोयले की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए राजस्थान सरकार ने पर्यावरण मंत्रालय से परियोजना के दूसरे चरण के लिए आवश्यक अनिवार्य वन मंजूरी में तेजी लाने के लिए कहा है, जिससे 1,137 हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 2.5 लाख पेड़ों की कटाई की आवश्यकता होगी और घाटबर्रा के वन गांव को पूरी तरह से विस्थापित करना होगा.’
फरवरी 2022 में इस दौरान केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत विस्तार परियोजना के लिए अपनी मंजूरी दे दी थी, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने- हसदेव अरण्य वन की सुरक्षा के लिए खड़े जनांदोलन के चलते- अंतिम मंजूरी को रोक दी थी.
बता दें कि हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था. हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर 2021 को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.
खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते वर्ष छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दी थी.
यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बीते वर्ष मार्च में छत्तीसगढ़ के समकक्ष भूपेश बघेल से मुलाकात के बाद राज्य सरकार ने सरगुजा और सूरजपुर जिलों की 841.538 हेक्टेयर वन भूमि परसा खदान के लिए और सरगुजा जिले में पीईकेकेबी फेज-II खदान के लिए 1,136.328 हेक्टयर जमीन का इस्तेमाल गैर-वानिकी कार्य के लिए करने की अनुमति दे दी थी.
वहीं, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित केंटे एक्सटेंशन कोयला खदान पर जनसुनवाई लंबित है.
अक्टूबर 2021 में ‘अवैध’ भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी और प्रस्तावित खदान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था.
वन विभाग ने बीते वर्ष मई में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी. जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था. बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था.
वहीं, बीते वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और कहा था कि वह विकास के रास्ते में नहीं आएगा.