वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को दी गई छूट पर मूल फाइलों को रिकॉर्ड पर रखने को लेकर अनिच्छा दिखाते हुए केंद्र और राज्य सरकार ने बीते मंगलवार को इस सूचना पर विशेषाधिकार का दावा किया है. कांग्रेस ने सवाल किया कि सरकार क्या छिपाने की कोशिश कर रही है.
नई दिल्ली: बिलकीस बानो मामले में पिछले साल 11 दोषियों को सजा से दी गई छूट को लेकर कांग्रेस ने बुधवार को केंद्र और गुजरात सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि इस तरह के अपराधियों को रिहा किए जाने के आधार की सच्चाई सामने आने की जरूरत है.
वर्ष 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में इन दोषियों को दी गई छूट पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गुजरात सरकार से सवाल करने के एक दिन बाद विपक्षी दल का यह बयान आया. बीते 18 अप्रैल को सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था और पूछा कि क्या कोई दिमाग लगाया गया था.
केंद्र और गुजरात सरकार ने भी अदालत को बताया कि वे 27 मार्च के आदेश की समीक्षा की मांग कर सकते हैं, जिसमें उन्हें छूट देने के मूल फाइलों के साथ तैयार रहने के लिए कहा गया है.
मोदी सरकार को यह जवाब देना होगा कि बिलकिस बानो के दोषियों को क्यों छोड़ा गया?
आज इस देश की हर महिला पूछती है कि ऐसे लोगों को मोदी सरकार क्यों बचा रही है?
: @SupriyaShrinate जी pic.twitter.com/gUn96iIvbp
— Congress (@INCIndia) April 19, 2023
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई और शीर्ष अदालत की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, ‘यह कोई सामान्य अपराध या सिर्फ गैंगरेप नहीं था, उनकी बच्ची को मार दिया गया था. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि उन पर क्या गुजरी होगी. गुजरात और केंद्र सरकार का कहना है कि ये फाइलें विशेषाधिकार हैं.’
उन्होंने कहा, ‘क्या विशेषाधिकार है, क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है? यह महिला के अधिकार का मामला है. आपको सच्चाई सामने रखनी होगी कि किस आधार पर आपने ऐसे खूंखार अपराधियों को रिहा किया और किस आधार पर आपके लोगों ने उन्हें ‘संस्कारी’ कहा.’
दोषियों की समय से पहले रिहाई के कारणों के बारे में पूछते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने उनके कैद की अवधि के दौरान उन्हें दी गई पैरोल पर भी सवाल उठाया था.
मंगलवार (18 अप्रैल) को मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था, ‘आज यह महिला (बिलकीस) है लेकिन कल यह कोई भी हो सकती है. यह आप या मैं हो सकते हैं. यदि आप छूट देने के अपने कारण नहीं बताते हैं, तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे.’
कांग्रेस नेता श्रीनेत ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछा गया प्रश्न सही है. देश की हर महिला आज यही पूछती है कि मोदी जी और उनके लोग ऐसे लोगों को बचाते हैं. स्मृति ईरानी और अन्य कहां हैं, वे मुंह पर टेप लगाकर बैठे हैं. कांग्रेस नेता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूछा गया सवाल इस देश की अंतरात्मा को झकझोर देता है कि कल बिलकीस बानो थीं और आज कोई और हो सकती है.’
श्रीनेत ने कहा, ‘सरकार क्या छिपाने की कोशिश कर रही है. यहां राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में कुछ भी नहीं है, बिलकीस बानो के दोषियों को कैसे रिहा किया गया, इस सच्चाई को सामने लाने की जरूरत है, क्योंकि यही वह सच्चाई है जिसे देश की हर महिला और मैं भी जानना चाहती हूं. किस आधार पर उन्हें रिहा किया गया?’
27 मार्च को बिलकीस बानो के गैंगरेप और 2002 के गोधरा दंगों के दौरान उसके परिवार के सदस्यों की हत्या को एक ‘भयावह’ कृत्य करार देते हुए शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से पूछा था कि क्या हत्या के अन्य मामलों में समान मानक लागू किए गए थे, जबकि इस मामले में 11 दोषियों को छूट दी गई है.
अदालत ने बानो द्वारा दायर याचिका पर केंद्र, गुजरात सरकार और अन्य से जवाब मांगा था, जिसने सजा में छूट को चुनौती दी है.
शीर्ष अदालत ने माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व वीसी रूपरेखा वर्मा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं को भी संज्ञान में लिया है.
मालूम हो कि 15 अगस्त 2022 को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.
शीर्ष अदालत द्वारा इस बारे में गुजरात सरकार से जवाब मांगे जाने पर राज्य सरकार ने कहा था कि दोषियों को केंद्र की मंज़ूरी से रिहा किया गया. गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सजा माफी का विरोध किया था.
अपने हलफनामे ने सरकार ने कहा था कि ‘उनका (दोषियों) व्यवहार अच्छा पाया गया था’ और उन्हें इस आधार पर रिहा किया गया कि वे कैद में 14 साल गुजार चुके थे. हालांकि, ‘अच्छे व्यवहार’ के चलते रिहा हुए दोषियों पर पैरोल के दौरान कई आरोप लगे थे.
एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 11 दोषियों में से कुछ के खिलाफ पैरोल पर बाहर रहने के दौरान ‘महिला का शील भंग करने के आरोप’ में एक एफआईआर दर्ज हुई और दो शिकायतें भी पुलिस को मिली थीं. इन पर गवाहों को धमकाने के भी आरोप लगे थे.
दोषियों की रिहाई के बाद सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी.
उस समय इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने भी इसके बाद अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की थी.
गौरतलब है कि 3 मार्च 2002 को अहमदाबाद के पास एक गांव में 19 वर्षीय बिलकीस बानो के साथ 11 लोगों ने गैंगरेप किया था. उस समय वह गर्भवती थीं और तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. हिंसा में उनके परिवार के 7 सदस्य भी मारे गए थे, जिसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.