सरकार के पास यह साबित करने का कोई डेटा नहीं कि समलैंगिक विवाह ‘अभिजात्य विचार’ है: सीजेआई

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. सरकार ने बीते दिनों एक हलफनामा पेश करते हुए कहा था कि समलैंगिक विवाह ‘अभिजात्य वर्ग का विचार’ है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. सरकार ने बीते दिनों एक हलफनामा पेश करते हुए कहा था कि समलैंगिक विवाह ‘अभिजात्य वर्ग का विचार’ है.

(फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमंस)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि सरकार के पास अपने इस तर्क का समर्थन करने के लिए कोई डेटा नहीं है कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं द्वारा अदालत के समक्ष ‘जो पेश किया गया है’ वह ‘केवल सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य के लिए शहरी अभिजात्य विचार है.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का नेतृत्व करते हुए कहा, ‘यह इंगित करने के लिए सरकार की ओर से कोई डेटा नहीं आ रहा है कि यह शहरी (अभिजात्य विचार) है या कुछ भी, कोई डेटा नहीं है.’

गौरतलब है कि याचिकाओं के जवाब में दायर अपने दूसरे हलफनामे में केंद्र ने इस मामले को संसद पर छोड़ने का आग्रह करते हुए कहा था, ‘याचिकाएं केवल शहरी अभिजात्य विचारों को दर्शाती हैं’, जबकि विधायिका को व्यापक विचारों और आवाजों को ध्यान में रखना होता है, जिनमें ग्रामीण, अर्द्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी और पर्सनल लॉ के मुताबिक धार्मिक मतों को ध्यान में रखना होता है.’

सीजेआई की यह टिप्पणी कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी द्वारा पीठ का ध्यान नवतेज जौहर मामले की ओर आकर्षित कराने के बाद आई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों का आपराधिककरण करने वाली धारा 377 को असंवैधानिक बताया था.

सिंघवी ने इस मामले में फैसला सुनाने वालीं जस्टिस (सेवानिवृत्त) इंदु मल्होत्रा ने जो कहा था, उसकी ओर पीठ का ध्यान आकर्षित कराया था.

वरिष्ठ वकील ने कहा कि ‘जस्टिस मल्होत्रा ने कहा था कि किसी व्यक्ति का प्राकृतिक या जन्मजात यौन रुझान भेदभाव का आधार नहीं हो सकता है. एक व्यक्ति का यौन रुझान उसके लिए निजी है. एक वर्गीकरण जो व्यक्तियों के बीच उनके प्राकृतिक स्वभाव के आधार भेदभाव करता है, उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और संवैधानिक नैतिकता की कसौटी पर खरा नहीं उतर सकता.’

हलफनामे का उल्लेख किए बिना सीजेआई ने प्रतिक्रिया दी, ‘सिद्धांत बहुत सरल है, सरकार किसी व्यक्ति के खिलाफ उस लक्षण के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती है, जिस पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘और जब आप कहते हैं कि यह एक प्राकृतिक लक्षण है, तो यह भी एक तर्क है उस तर्क के जवाब में जो कहता है कि यह बहुत ही अभिजात्य या शहरी है या एक निश्चित वर्ग का पूर्वाग्रह है. जो कुछ सहज है, उसमें वर्ग पूर्वाग्रह नहीं हो सकता है. इसकी अभिव्यक्तियों में यह अधिक शहरी हो सकता है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में अधिक लोग कोठरी से बाहर आ रहे हैं.’

याचिकाओं पर दूसरे दिन दलीलें सुनने के बाद प्रधान न्यायाधीश ने समलैंगिक जोड़ों के गोद लेने की आशंकाओं का भी जवाब देने की मांग करते हुए कहा कि कानून के अनुसार एक व्यक्ति भी बच्चा गोद ले सकता है.

उन्होंने कहा, ‘भले ही कोई युगल समलैंगिक संबंध (गे या लेस्बियन) में हो, उनमें से एक अभी भी गोद ले सकता है. यह पूरा तर्क कि यह बच्चे पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेगा, इस तथ्य से झुठलाया जा सकता है कि कानूनन जब आप समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर चुके हैं, इसलिए लोगों के लिए लिव-इन में साथ रहने का विकल्प खुला है और आप में से कोई एक बच्चा गोद ले सकता है. बात सिर्फ इतनी है कि बच्चा माता-पिता के लाभ खो देता है.’

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने एलजीबीटीक्यू समुदाय की सामाजिक स्वीकृति पर कहा, ‘यह मानसिकता की समस्या है, समाज विकसित हुआ है, लेकिन उस मानसिकता का कुछ हिस्सा बचा हुआ है, जो सरकार के रुख से स्पष्ट है.’

रोहतगी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा, ‘हमारे माता-पिता ने हमें कमोबेश स्वीकार कर लिया है. हम अपने माता-पिता के साथ इस प्रक्रिया से गुजरे हैं. वे चाहते हैं कि वे सेटल हों, उनका परिवार हो, उनकी एक पहचान हो.’

उन्होंने कहा कि कानून की भाषा को संशोधित किया जाना चाहिए और जहां भी पति और पत्नी का उपयोग किया जाता है, उसे ‘स्पाउस’ का इस्तेमाल करके लिंग-तटस्थ बनाया जाना चाहिए और जहां पुरुष एवं महिला का उपयोग किया जाता है, उसे ‘व्यक्ति’ कहकर लिंग-तटस्थ बनाया जाना चाहिए.

पीठ में जस्टिस एसके कौल, रविंद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं.

जस्टिस कौल ने कहा कि सब कुछ एक साथ नहीं बदल सकता और अन्य परिवर्तनों में कुछ और समय लगेगा.

रोहतगी ने कहा, ‘वे कह रहे हैं कि मैं असामान्य हूं और जो सामान्य है वह बहुमत है. लेकिन यह कानून नहीं है, यह एक मानसिकता है. दूसरे पक्ष का तर्क यह है कि एक जैविक पुरुष है, एक जैविक महिला है, उनके मिलन से प्रजनन होगा, यह प्रकृति का क्रम है. (उनके लिए) महत्वपूर्ण बात विषमलैंगिक ढांचे का विखंडन है.’

इस बीच, बुधवार को केंद्र ने अदालत में एक नया हलफनामा दायर कर अपनी मांग दोहराई कि कोई अंतिम फैसला लेने से पहले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी सुना जाए.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games