सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत नवंबर 2019 में प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो में एक फैक्ट-चेक इकाई बनाई थी, जिसे केंद्र से संबंधित फ़र्ज़ी ख़बरों के स्वत: संज्ञान के साथ नागरिकों द्वारा भेजे प्रश्नों के माध्यम से संज्ञान लेने का काम मिला था. इसे सही जानकारी के साथ इन सवालों का जवाब देने और सोशल मीडिया पर किसी भी ग़लत सूचना को चिह्नित करने का भी काम सौंपा गया है.
नई दिल्ली: प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने एक आरटीआई के जवाब में खुलासा किया है कि इसकी फैक्ट-चेक यूनिट भारतीय सूचना सेवा (आईआईएस) के दो अधिकारियों द्वारा चलाई जाती है- एक संयुक्त निदेशक और एक सहायक निदेशक.
आरटीआई में यह भी स्वीकार किया गया है कि पीआईबी की फैक्ट-चेक यूनिट के अधिकारियों का मूल्यांकन करने वाला कोई डोमेन विशेषज्ञ भी नहीं है. पीआईबी ने अपने जवाब में माना है कि यह फैक्ट-चेक यूनिट वर्तमान में बिना किसी वैधानिक आधार या संस्थागत तंत्र के काम कर रही है.
इसके द्वारा की गई फैक्ट-चेकिंग को जांचने/मूल्यांकित करने में विशेषज्ञता का अभाव, फैक्ट-चेक यूनिट के मुख्यालय के भीतर इसके स्तर और क्षमता का कथित मुद्दा और सक्रिय होने के साथ-साथ कामकाज से जुड़ी अपर्याप्तताएं चिंता का कारण हैं.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत नवंबर 2019 में पीआईबी में एक फैक्ट-चेक यूनिट स्थापित की गई थी, जिसे केंद्र सरकार से संबंधित फर्जी खबरों का स्वत: संज्ञान लेने और नागरिकों द्वारा भेजे गए प्रश्नों के माध्यम से संज्ञान लेने का काम सौंपा गया. इसे सही जानकारी के साथ इन सवालों का जवाब देने और सोशल मीडिया पर किसी भी गलत सूचना को चिह्नित करने का भी काम सौंपा गया है.
ध्यान देने योग्य बात यह है कि पीआईबी ने अपने जवाब में खुलासा किया है कि पिछले तीन वर्षों यानी अप्रैल 2020 से इंटरनेट पर सूचनाओं का फैक्ट-चेक करने के लिए इसे लगभग 1.2 लाख अनुरोध प्राप्त हुए हैं, जबकि इसने उनमें से केवल 1,223 पर ही कार्रवाई की है- जो कि 1 फीसदी की मामूली दर है.
21 मार्च 2023 को सूचना एवं प्रसारण मंत्री द्वारा संसद में दिए गए जवाब में कहा गया था कि ‘पीआईबी फैक्ट-चेक यूनिट ने अब तक 37,000 कार्रवाई योग्य प्रश्नों का जवाब दिया है.’ इससे पहले 7 फरवरी 2023 को संसद में प्रस्तुत एक अन्य जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री द्वारा भी यह जवाब दिया गया था.
फिर भी, ‘कार्रवाई दर बनाम प्राप्त प्रश्नों की संख्या’ में अंतर चिंताजनक है. लेकिन कार्यबल के स्तर और क्षमता की कमी के मुद्दों के इर्द-गिर्द चिंता को पीआईबी की फैक्ट-चेक यूनिट द्वारा दूर करने की आवश्यकता होगी, विशेष तौर पर इसकी निष्क्रियता को देखते हुए, और इसके दिए इस आरटीआई जवाब को देखते हुए कि ‘इसने 1,189 फेक न्यूज का भंडाफोड़ किया है.’
संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने ‘मीडिया कवरेज में नैतिक मानक’ पर अपनी 27वीं रिपोर्ट में पाया कि ‘दिसंबर 2019 में पीआईबी में एक फैक्ट चेक यूनिट (एफसीयू) की स्थापना की गई है और इस तरह के एफसीयू को पीआईबी के 17 क्षेत्रीय कार्यालयों में भी स्थापित किया गया है.’ इन क्षेत्रीय कार्यालयों की मौजूदगी से पैमाने और क्षमता की चिंता कम हो सकती है, हालांकि यह सवाल करने योग्य है कि क्या पीआईबी के अधिकारी पूरी तरह से उपयुक्त, प्रशिक्षित और केंद्र सरकार से संबंधित ऑनलाइन सामग्री के फैक्ट-चेक के लिए पर्याप्त रूप से स्वतंत्र हैं. पीआईबी के फैक्ट-चेकर द्वारा वर्तमान में किए जा रहे कार्य के पैमाने और महत्व को देखते हुए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी स्वतंत्रता, क्षमता और विशेषज्ञता स्थापित करके जनता का विश्वास हासिल करे.
आरटीआई आवेदन, जिस पर पीआईबी ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी, जनवरी 2023 में आए आईटी नियम-2021 के मसौदा संशोधन के संदर्भ में दायर किया गया था. बता दें कि उक्त मसौदा संशोधन में प्रस्तावित किया गया था कि पीआईबी की फैक्ट-चेक यूनिट को केंद्र सरकार के बारे में ‘फर्जी’ और ‘झूठी’ चिह्नित की गई ऑनलाइन सूचनाओं को हटाने के आदेश देने का अधिकार होगा. तब मध्यस्थ (Intermediaries) ऐसी सामग्री को हटाने के लिए बाध्य होंगे.
इसके बाद, 6 अप्रैल 2023 को अधिसूचित आईटी नियम संशोधन-2021 में पीआईबी की फैक्ट-चेक यूनिट का सीधा संदर्भ हटा दिया, जिसमें किसी अन्य फैक्ट-चेक यूनिट की स्थापना का संकेत दिया गया.
अधिसूचित आईटी संशोधन नियम 2023 के तहत स्थापित की जाने वाली ये फैक्ट-चेक इकाइयां अभी तक स्थापित नहीं की गई हैं और आईटी संशोधन नियम 2023 ने मौजूदा पीआईबी फैक्ट-चेक यूनिट को अभी तक ये शक्तियां प्रदान नहीं की हैं.
पीआईबी के फैक्ट-चेकर की बजाय एक अलग फैक्ट-चेक यूनिट बनाने का यह बदलाव इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की उस व्यापक आलोचना का परिणाम हो सकता है, जिसमें सरकार की नोडल एजेंसी पीआईबी को सरकार से संबंधित खबरों का फैक्ट-चेक करने की जिम्मेदारी दे दी गई थी.
पीआईबी की केंद्र सरकार से निकटता इसके द्वारा अपने काम को निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से करने की इसकी क्षमता पर प्रासंगिक सवाल उठाती है. इसके अलावा, पीआईबी की फैक्ट-चेक इकाई की विश्वसनीयता को लेकर भी चिंताएं उठाई गई हैं.
इन्हीं चिंताओं ने कई हितधारकों, विशेष रूप से समाचार मीडिया संगठनों और पत्रकारों को हैरान किया है कि यह उनकी बोलने की स्वतंत्रता और सूचना प्राप्त करने के अधिकार को कैसे प्रभावित कर सकता है.
हालांकि, केंद्र सरकार अभी भी संशोधित आईटी नियम 2021 के तहत पीआईबी के वर्तमान फैक्ट-चेकर को आधिकारिक फैक्ट-चेकिंग संस्थाओं में से एक के रूप में अधिसूचित करने का विकल्प चुन सकती है.
(लेखक तन्मय सिंह और तेजसी पंजियार इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन में क्रमश: लिटिगेशन काउंसल और एसोसिएट पॉलिसी काउंसल हैं)
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)