2002 में 11 लोगों की हत्या हुई थी, अब न्याय की हत्या हुई है: नरोदा गाम दंगा पीड़ित

गुजरात में अहमदाबाद के नरोदा गाम में 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक दंगे के दौरान 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. गुरुवार को इस मामले में आए अदालती फैसले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था. आरोपियों में गुजरात सरकार की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी भी शामिल थे.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

गुजरात में अहमदाबाद के नरोदा गाम में 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक दंगे के दौरान 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. गुरुवार को इस मामले में आए अदालती फैसले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था. आरोपियों में गुजरात सरकार की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी भी शामिल थे.

दंगों के आरोपियों में भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी भी शामिल थे. (फाइल फोटो: पीटीआई)

अहमदाबाद: गुजरात के नरोदा गाम दंगा मामले में विशेष अदालत द्वारा सभी 67 अभियुक्तों को बरी किए जाने के साथ ही मुकदमे में गवाही दर्ज कराने वाले गवाहों ने बृहस्पतिवार को पीड़ितों के लिए ‘काला दिन’ बताया और इसे ‘विवेकहीन’ फैसला करार दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अभियोजन पक्ष के गवाह रहे इम्तियाज अहमद हुसैन कुरैशी ने कहा, ‘मैंने 17 आरोपियों की पहचान की थी, जिनमें जयदीप पटेल (विश्व हिंदू परिषद के पूर्व नेता), प्रद्युम्न पटेल, तत्कालीन पार्षद वल्लभ पटेल और अशोक पटेल शामिल थे. मैंने उन्हें भीड़ को भड़काते और मस्जिद को जलाने, खास जगहों पर हमला करने का इशारा करते देखा था. मैंने उन्हें परिवारों को जलाकर मारते हुए देखा – पांच लोगों को मेरी आंखों के सामने जलाकर मार डाला – और मैंने उन्हें पहचान लिया. आरोपियों ने जो कपड़े पहने थे, मुझे उनका रंग भी याद है. मैंने सारे सबूत दिए थे.’

वे आगे बोले, ‘उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जानी चाहिए थी. इसके बजाय, यह दोषमुक्ति हमें न्यायपालिका में हमारा विश्वास खोने के लिए मजबूर करती है. हम पीड़ितों के लिए यह काला दिन है. जो मर गए, क्या फिर वे आत्महत्या करके मरे थे? क्या उन्होंने खुद को जलाकर मार डाला?’

कुरैशी ने कहा, ‘लेकिन हम लड़ाई जारी रखेंगे, हम फैसले को गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती देंगे. 21 साल हो गए हैं लेकिन मैं नरसंहार के विवरण को नहीं भूल सकता. कुंभार वास में एक नई दुल्हन आई थी, उसकी शादी को 15 दिन भी नहीं हुए थे. उसे चाकू मारे जाते मैंने अपनी आंखों से देखा. उसके पूरे परिवार को मार डाला गया और वह अपने मायके लौट गई.’

वे पूछते हैं, ‘क्या हम सबने झूठ देखा है?’

उन्होंने आगे कहा, ‘21 साल की देरी के बावजूद हमें अभी भी अदालत से उम्मीद थी. हमें विश्वास था कि अदालत के पास विवेक होगा. भले ही मैं उन लोगों को बरी किए जाने की छूट दे दूं जो मामूली अपराध में आरोपी थे, लेकिन हम मानते थे कि जिन लोगों पर हत्या के आरोप हैं, उनमें से कुछ को तो दोषी ठहराया जा सकता था. 2002 में 11 लोगों की हत्या हुई थी और आज इंसाफ की हत्या हुई है.’

नरोदा गाम हत्याकांड में परिवार के सदस्यों को खोने वालों में मदीनाबेन आरिफहुसैन मलिक का भी नाम था- वही नई दुल्हन जिनका कुरैशी ने जिक्र किया था.

मदीनाबेन ने 2002 में पुलिस कमिश्नर को लिखे एक पत्र में कहा था कि उनके पति, सास और पति के दो भाइयों को मिट्टी का तेल छिड़ककर आग लगाकर मार दिया गया था. मदीना ने आयोग के सामने गवाही भी दी थी, लेकिन अदालत के सामने नहीं दी.

मामले के एक अन्य गवाह 42 वर्षीय शरीफ मलिक ने अदालत में माया कोडनानी और जयदीप पटेल समेत 13 अभियुक्तों की पहचान की थी और उनके खिलाफ गवाही दी थी.

उन्होंने कहा, ‘यह फैसला इस बात का इशारा है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ राज्य-प्रायोजित हिंसा में भाग लेने वाले मुक्त हो जाएंगे. यह बड़े पैमाने पर लोगों के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश है. यह न्यायपालिका में हमारे विश्वास को कम करता है और वास्तव में न्यायपालिका की अयोग्यता पर सवाल उठाता है.’

मलिक ने आगे कहा, ‘निराश होते हुए भी हम हिम्मत नहीं हारेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो हम अगले 21 साल और 50 दिनों तक भी लड़ेंगे.’

बता दें कि गुजरात में अहमदाबाद के नरोदा गाम में 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक दंगे के दौरान 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में 86 आरोपी बनाए गए थे, उनमें से 18 की बीच अवधि में ही मौत हो गई थी.

आरोपियों में गुजरात सरकार की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी भी शामिल थे. नरोदा गाम में नरसंहार उस साल के नौ बड़े सांप्रदायिक दंगा मामलों में से एक था.

अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष ने 2010 में शुरू हुए मुकदमे के दौरान क्रमश: 187 और 57 गवाहों से पूछताछ की. मामला लगभग 13 वर्षों तक चला, जिसमें छह जजों ने मामले पर सुनवाई की. गृह मंत्री अमित शाह भी 2017 में कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए थे.

गुजरात सरकार में मंत्री रहीं कोडनानी को नरोदा पाटिया दंगा मामले में दोषी ठहराया गया था और 28 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. इन दंगों में 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी. साल 2018 में उन्हें गुजरात हाईकोर्ट द्वारा बरी कर दिया गया था.