गोधरा ट्रेन अग्निकांड: सुप्रीम कोर्ट ने आठ दोषियों को ज़मानत दी, चार अन्य की नामंज़ूर की

गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से ‘कारसेवकों’ को लेकर लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा देने के कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे.

गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में लगी आग के बाद तैनात सुरक्षाकर्मी. इस घटना में 59 लोगों की मौत हुई थी, जिसके बाद राज्य में दंगे भड़क गए थे. (फाइल फोटो: पीटीआई)

गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से ‘कारसेवकों’ को लेकर लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा देने के कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे.

(फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में दोषी आठ लोगों को बीते शुक्रवार को जमानत दे दी, जबकि चार अन्य दोषियों की जमानत नामंजूर कर दी. 27 फरवरी 2002 को हुई इस घटना में भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा देने से 59 लोगों की मौत हो गई थी.

2011 में ट्रायल कोर्ट ने कुल 31 दोषियों को सजा सुनाई थी – 11 को मौत की सजा और 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था. उसके बाद सभी 31 को आजीवन कारावास की सजा हो गई थी.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने जिन दोषियों को जमानत दी गई है, उनमें – अब्दुल सत्तार इब्राहिम गद्दी असला, यूनुस अब्दुल हक्क समोल, मोहम्मद हनीफ अब्दुल्ला मौलवी बादाम, अब्दुल रऊफ अब्दुल मजीद ईसा, इब्राहिम अब्दुलरजाक अब्दुल सत्तार समोल, अयूब अब्दुल गनी इस्माइल पटालिया, सोहेब यूसुफ अहमद कलंदर और सुलेमान अहमद हुसैन शामिल हैं.

पीठ ने कहा, ‘हम कारावास की अवधि को ध्यान में रखते हुए उन्हें जमानत देने के लिए इच्छुक हैं, विशेष रूप से इसलिए कि अपीलों को जल्द से जल्द निपटाने की संभावना नहीं है.’

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सत्र न्यायालय द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों के अधीन उन्हें जमानत पर रिहा किया जा सकता है.

हालांकि, पीठ ने चार अन्य दोषियों – अनवर मोहम्मद मेहदा, शौकत अब्दुल्ला मौलवी इस्माइल बादाम, महबूब याकूब मीठा उर्फ पोपा और सिद्दीक मोहम्मद मोरा (मोरैया) को राहत देने से इनकार कर दिया.

गुजरात सरकार ने इसे दुर्लभतम मामला बताते हुए उनकी जमानत याचिकाओं का विरोध किया था.

मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल रहमान धंतिया को चिकित्सा आधार पर उनकी पत्नी और मानसिक रूप से कमजोर बेटियों की देखभाल के लिए अंतरिम जमानत दी थी. दिसंबर 2022 में शीर्ष अदालत ने एक अन्य दोषी को भी जमानत दे दी थी, जिसने 17 साल जेल में बिताए थे.

मालूम हो कि गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से ‘कारसेवकों’ को लेकर लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगा देने के कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद राज्य में दंगे भड़क उठे थे, जिसमें 1,200 से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे.

हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2017 के अपने फैसले में गोधरा ट्रेन कोच जलाने के मामले में 11 दोषियों को दी गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. हाईकोर्ट 20 अन्य दोषियों को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था.

बीते जनवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए कुछ दोषियों की जमानत याचिकाओं पर गुजरात सरकार से जवाब मांगा था. इससे पहले दिसंबर 2022 में शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से कहा था कि वह दोषियों की व्यक्तिगत भूमिका को स्पष्ट करे.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पथराव करने के आरोपियों की जमानत याचिका पर विचार किया जा सकता है, क्योंकि वे पहले ही 17-18 साल जेल में बिता चुके हैं.

इस दौरान गुजरात सरकार ने कुछ दोषियों की जमानत याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि वे केवल पत्थरबाज नहीं थे और उनके कृत्य ने जल रहीं बोगियों से लोगों को भागने से रोका था.