हाल ही में अधिसूचित नए आईटी नियम कहते हैं कि गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फ़र्ज़ी या भ्रामक’ बताई सामग्री हटाने के लिए बाध्य होंगी. सरकार ने इसके ख़िलाफ़ बॉम्बे हाईकोर्ट में दर्ज स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा की याचिका ख़ारिज करने की मांग की है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने शुक्रवार (21 अप्रैल) को बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया कि उसकी फैक्ट-चेक इकाई का उद्देश्य केवल सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों से संबंधित झूठी और भ्रामक जानकारी को हटाना है और यह किसी भी राय या विचार, व्यंग्य या कलाकार के काम को इंटरनेट से नहीं हटाएगी.
रिपोर्ट के अनुसार, स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा की याचिका के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में यह रेखांकित करने की मांग की गई है कि एक फैक्ट-चेक इकाई स्थापित करने के पीछे का विचार झूठी सूचनाओं को लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता के विश्वास को कमजोर करने से रोकना है, जो चुनी हुई सरकार की मंशा पर संदेह पैदा कर रही हैं.
कामरा ने अदालत से अनुरोध किया था कि सूचना प्रौद्योगिकी नियमों (आईटी नियमों) के नियम 3(1)(बी)(v) को असंवैधानिक घोषित किया जाए. उक्त नियम मध्यस्थों (सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) को यूज़र को ‘गलत’ या ‘भ्रामक जानकारी’ अपलोड करने या साझा करने से रोकने के लिए उचित प्रयास करने के लिए बाध्य करता है.
जिन नियमों पर कामरा ने आपत्ति जताई है, वह इसी महीने की शुरुआत में अधिसूचित आईटी नियम, 2021 में संशोधन के साथ लागू किए गए हैं, जो कहते हैं कि मध्यस्थों को इसके यूजर्स को ‘स्पष्ट रूप से गलत या भ्रामक जानकारी’ अपलोड या साझा न करने के लिए दायित्व के बारे में ‘सूचित’ करने की जरूरत है.
कामरा को डर था कि नियम संभावित रूप से सोशल मीडिया से उनकी सामग्री को मनमाने ढंग से हटा सकता है या इसके परिणामस्वरूप उनके सोशल मीडिया एकाउंट्स को ब्लॉक किया जा सकता है. उक्त संशोधन को रद्द करने की मांग करते हुए उन्होंने यह भी आशंका जताई कि यदि सरकार की फैक्ट-चेक इकाई ने उनकी सामग्री को ‘फर्जी’ माना तो मध्यस्थ आसानी से उनकी सामग्री को हटा सकता है.
हालांकि, सरकार ने कामरा के डर को निराधार माना है और उनकी याचिका ख़ारिज करने की मांग की है.
लाइव लॉ के अनुसार, सरकारी हलफनामे में कहा गया, ‘यह दोहराया जाता है कि तथ्य जांच इकाई की भूमिका केंद्र सरकार के किसी भी कामकाज तक सीमित है, जिसमें नीतियों, कार्यक्रमों, अधिसूचनाओं, नियमों, विनियमों, उसके अमल आदि के बारे में जानकारी शामिल हो सकती है. तथ्य जांच इकाई केवल फर्जी और गलत जानकारी की पहचान कर सकती है, किसी के विचार, व्यंग्य या कलात्मक काम इसके दायरे में शामिल नहीं है.’
कामरा की याचिका पर सरकार की प्रतिक्रिया दो हिस्सों में बंटी नजर आती है. याचिका को ‘समय-पूर्व’ बताते हुए उसने अदालत से कहा कि प्रस्तावित फैक्ट-चेक इकाई और जिन नियमों पर सवाल है, उन्हें अधिसूचित किया जाना बाकी है. इसने यह भी कहा ‘किसी भी मध्यस्थ को उत्तर देने वाले प्रतिवादी (लेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) द्वारा विवादित नियम के तहत किसी भी जानकारी को हटाने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया गया है.’
130 पन्नों के सरकारी हलफनामे का एक बड़ा हिस्सा फर्जी खबरों के प्रतिकूल प्रभाव और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से इसे हटाने के लिए कोई कार्रवाई न किए जाने पर उत्पन्न होने वाले मुद्दों पर केंद्रित है. इसने कहा कि लोग बिना आधिकारिक सरकारी घोषणा के अटकलबाजी वाली जानकारी पर कार्रवाई कर सकते हैं और ‘प्रामाणिक जानकारी’ का पता लगाना जनहित में होगा. यह भी कहा गया है, ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि एक सरकारी एजेंसी फैक्ट-चेक के बाद सूचना का प्रसार करे, ‘ताकि बड़े पैमाने पर जनता को होने वाले संभावित नुकसान को नियंत्रित किया जा सके.’
अपने तर्क के समर्थन में सरकार ने कहा कि फर्जी खबरों के प्रसार के कारण पिछले साल देश के विभिन्न हिस्सों में अग्निपथ योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था. इसने एक अन्य उदाहरण का भी हवाला दिया जहां एक यूट्यूब चैनल ने स्पष्ट दावा किया था कि भारत के राष्ट्रपति ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के उपयोग पर बैन लगाने का आदेश दिया था.
सरकार ने यह भी रेखांकित किया कि हाल के वर्षों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर समाचार देखने/पढ़ने वाले लोगों की संख्या में कई गुना वृद्धि हुई है, जिससे इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए एक नियामक व्यवस्था की आवश्यकता है. इसने रॉयटर्स इंस्टिट्यूट डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट- 2021 का हवाला दिया, जिसके अनुसार पारंपरिक माध्यमों पर केवल 41% लोगों ने समाचार देखे, वहीं यूट्यूब, ट्विटर और इंस्टाग्राम से 35% और फेसबुक से 37% ने खबरें पाईं.
सरकार ने कहा, ‘इसकाअर्थ यह है कि भारत में प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर सोशल मीडिया पर उपभोग की जाने वाली अधिकांश समाचार-संबंधी जानकारी आम यूजर्स द्वारा तैयार की जाती है, जिनके पास प्रकाशन से पहले जानकारी को सत्यापित करने की क्षमता, संसाधन और समय नहीं हो सकता है … जहां हो सकता है कि आम यूजर के पास जानकारी वेरीफाई करने के लिए समय और संसाधन नहीं हो, लेकिन असामाजिक और भारत विरोधी तत्व/ संगठन सोशल मीडिया की इस सुविधा का उपयोग जानबूझकर गलत सूचना प्रकाशित करने और फ़ैलाने के लिए कर रहे हैं.’
उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने इस मामले की पिछली सुनवाई में सरकार से इस नियम को लाने के आधार पूछा था. मामले की सुनवाई शुक्रवार 21 अप्रैल को होनी थी, लेकिन पीठ की अनुपलब्धता के कारण इसे स्थगित कर दिया गया. अब इसे सोमवार को सुना जाएगा.