दिल्ली दंगा: अदालत ने पुलिस से आरोपी के ख़िलाफ़ मौजूद असत्यापित वीडियो पर कार्रवाई करने कहा

उत्तर पूर्व दिल्ली दंगे से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने पाया कि मामले के चार आरोपियों में से एक के ख़िलाफ़ सबूत के तौर मौजूद वीडियो पुलिस ने जांच के लिए एफएसएल लैब भेजा था, लेकिन वह चल नहीं रहा था. पुलिस ने दोबारा सही वीडियो भेजने के बजाय अदालत में पूरक आरोप-पत्र दायर कर दिया था.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

उत्तर पूर्व दिल्ली दंगे से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने पाया कि मामले के चार आरोपियों में से एक के ख़िलाफ़ सबूत के तौर मौजूद वीडियो पुलिस ने जांच के लिए एफएसएल लैब भेजा था, लेकिन वह चल नहीं रहा था. पुलिस ने दोबारा सही वीडियो भेजने के बजाय अदालत में पूरक आरोप-पत्र दायर कर दिया था.

(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: साल 2020 के उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली की एक अदालत ने संबंधित डिप्टी पुलिस कमिश्नर (डीसीपी) को एक आरोपी से जुड़े एक असत्यापित, आपत्तिजनक वीडियो के संबंध में ‘तत्काल उपचारात्मक कार्रवाई’ करने का निर्देश दिया है.

द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत चार लोगों राहुल कुमार, सूरज, योगेंद्र सिंह और नरेश के खिलाफ लगाए गए आरोपों को लेकर सुनवाई कर रहे थे.

चारों पर एक दंगाई भीड़ का हिस्सा होने का आरोप है जिसने 25 फरवरी 2020 को एक पूजास्थल और इसके भूतल में बनी कुछ दुकानों में आग लगा दी थी.

न्यायाधीश ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि एक गवाह था, जिसने राहुल कुमार की पहचान की थी, जबकि सूरज और योगेंद्र के संबंध में सीसीटीवी फुटेज थे. इसके अलावा, नरेश के खिलाफ एक वीडियो था, जिस पर आगजनी करने और पूजा स्थल के ऊपर झंडा फहराने का आरोप लगाया गया है.

पिछले सप्ताह पारित एक आदेश में जज ने कहा था, ‘हालांकि, जब वीडियो को सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (सीएफएसएल) को भेजा गया था तो प्राप्त रिपोर्ट में यह दर्ज था कि वीडियो विश्लेषक के सिस्टम में डीवीडी चल नहीं रही थी और इसलिए कोई जांच नहीं की गई थी. एफएसएल रिपोर्ट पूरक आरोप-पत्र के रूप में दायर की गई थी.’

जज ने कहा कि आरोपी नरेश की पहचान करने के लिए कोई अन्य गवाह नहीं है और यह ‘समझ से परे’ है कि आपत्तिजनक वीडियो सीएफएसएल भेजे जाने के बाद चलना कैसे बंद (Inaccessible) हो गया.

जज ने कहा, ‘अगर ऐसा था तो जांच अधिकारी (आईओ) या स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) या सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) को फिर से सही व सुलभ (Accessible) वीडियो एफएसएल को उनकी राय के लिए भेजना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय आईओ ने पूरक आरोप-पत्र दायर कर दिया, जिसके साथ न चलने वाले उक्त वीडियो की एफएसएल रिपोर्ट लगी थी.’

यह देखते हुए कि अदालत को उपलब्ध सबूतों के आधार पर आरोप तय करने हैं, उन्होंने कहा कि ‘असत्यापित डीवीडी’ के आधार पर नरेश के खिलाफ आरोप तय करना अदालत के लिए ‘मुश्किल’ है.

जज ने कहा, ‘लेकिन फिर भी यदि वीडियो मौजूद है और यह एफएसएल द्वारा सत्यापित किया जाता है तो इससे आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है और इस प्रकार एफएसएल रिपोर्ट के बिना उसे केस के इस स्तर पर बरी कर देना, इस अदालत की अंतरात्मा को ठेस पहुंचाएगा, विशेष तौर पर मामले की प्रकृति को देखते हुए कि एक धार्मिक स्थल को जला दिया गया. इसके अलावा, वीडियो की उत्पत्ति का खुलासा नहीं किया गया है.’

उन्होंने कहा, ‘इन परिस्थितियों में इस अदालत की राय है कि संबंधित डीसीपी को तत्काल उपचारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए.’

मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 7 जून तय की गई है.