महाराष्ट्र: सीएम शिंदे के गढ़ ठाणे में 10 माह में राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ 25 एफ़आईआर

ठाणे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गढ़ माना जाता है. यहां से वे विधायक और उनके बेटे सांसद हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि पूर्व सांसद आनंद परांजपे के ख़िलाफ़ शुरू में एक ही अपराध में 11 एफ़आईआर दर्ज की गई थी, जो अंतत: बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा ठाणे पुलिस को फटकार लगाने के बाद घटाकर एक कर दी गई.

एकनाथ शिंदे. (फोटो साभार: फेसबुक)

ठाणे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गढ़ माना जाता है. यहां से वे विधायक और उनके बेटे सांसद हैं. एक रिपोर्ट बताती है कि पूर्व सांसद आनंद परांजपे के ख़िलाफ़ शुरू में एक ही अपराध में 11 एफ़आईआर दर्ज की गई थी, जो अंतत: बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा ठाणे पुलिस को फटकार लगाने के बाद घटाकर एक कर दी गई.

एकनाथ शिंदे. (फोटो साभार: फेसबुक)

मुंबई: एकनाथ शिंदे के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके गढ़ ठाणे में राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने का ट्रेंड बन गया है.

ठाणे पुलिस द्वारा दर्ज की गईं एफआईआर (30 जून 2022 को शिंदे सरकार के सत्ता में आने के बाद से मीडिया रिपोर्टों के आधार पर) का इंडियन एक्सप्रेस द्वारा किया गया विश्लेषण दिखाता है कि पिछले 10 महीनों में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के सदस्यों के खिलाफ 25 एफआईआर दर्ज की गई हैं और एक एफआईआर एक रैपर के खिलाफ दर्ज की गई है.

26 एफआईआर में से 21 सोशल मीडिया पोस्ट, टिप्पणियों या बैनरों के माध्यम से विपक्ष द्वारा शिंदे को ‘निशाना’ बनाने के संबंध में हैं.

पूर्व सांसद आनंद परांजपे के खिलाफ शुरू में 11 एफआईआर दर्ज की गई थीं, जो अंततः बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा ठाणे पुलिस को फटकार लगाने के बाद घटाकर एक कर दी गई. अधिकांश एफआईआर आईपीसी की धारा 153(ए) (विभिन्न समूहों के बीच द्वेष को बढ़ावा देना) के तहत दर्ज की गई हैं, जिसमें अधिकतम पांच साल कारावास की सजा है.

इसी अवधि में ‘शिंदे सेना’ के खिलाफ मुट्ठी भर एफआईआर दर्ज की गईं. इन कुछ एफआईआर में से एक शिंदे सेना के कार्यकर्ताओं द्वारा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक कार्यकर्ता पर हमला करने के संबंध में थी. इसके अलावा, शिंदे सेना के सदस्यों के खिलाफ दो कथित असंज्ञेय अपराध दर्ज किए गए.

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह एक साक्षात्कार में अजीत पवार ने कहा था कि शिंदे का ठाणे में जबरदस्त दबदबा है, जहां वह रहते हैं और जहां से उन्हें विधायक और उनके बेटे श्रीकांत को सांसद चुना गया है. पवार ने संकेत दिया कि मुख्यमंत्री बनने से पहले भी शिंदे का ठाणे आयुक्तालय में पुलिस पोस्टिंग में दखल होता था.

उन्होंने आगे कहा था, ‘सीएम के रूप में उद्धव ठाकरे ने शिंदे को यह तय करने का पूरा अधिकार दिया था कि ठाणे में कौन अधिकारी (नियुक्त) होगा. सभी निकाय और पुलिस अधिकारियों को शिंदे (तब ठाकरे के मंत्रिमंडल में) द्वारा नियुक्त किया गया था. जब शिंदे ने कुछ विधायकों के साथ सूरत भागने का फैसला किया तो सभी अधिकारी उनके प्रति वफादार रहे. हालांकि, ठाकरे ने अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि सूरत जाने वाले वाहनों को मातोश्री (ठाकरे निवास) वापस भेजा जाए, लेकिन अधिकारी शिंदे के प्रति वफादार रहे.’

जनवरी में पूर्व सांसद आनंद परांजपे ने आरोप लगाया था कि ठाणे के कुछ पुलिस अधिकारी शिंदे की ‘निजी सेना’ के रूप में काम कर रहे हैं.

तब इंडियन एक्सप्रेस से ही बात करते हुए परांजपे ने कहा था, ‘ठाणे पुलिस, खासकर कुछ अधिकारी, शिंदे सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं. ठाणे पुलिस द्वारा दर्ज मामले अदालत में औंधे मुंह गिर रहे हैं, क्योंकि पुलिस ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है. ज्यादातर मामलों में आरोपी को तुरंत जमानत मिल जाती है.’

परांजपे के खिलाफ एक ही अपराध के लिए 11 एफआईआर दर्ज करने के लिए ठाणे पुलिस की खिंचाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा था, ‘पुलिस अधिकारी तब तक सबक नहीं सीखेंगे, जब तक कि उन पर जुर्माना नहीं लगाया जाता और इसे उनके वेतन से वसूल नहीं किया जाता. इसे रोकना होगा.’

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे मामलों में जहां राजनीतिक प्रतीत होने वाली एफआईआर दर्ज की गई हैं, उनमें कोई कार्रवाई नहीं की गई है, न ही आरोपी की गिरफ्तारी की गई है और न ही आरोप-पत्र दायर किया गया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर शिंदे खेमे के नेताओं के खिलाफ शिकायत दी जाती है तो उन मामलों में भी कार्रवाई की जाएगी.’

ठाणे पुलिस कमिश्नर जयजीत सिंह ने अखबार को बताया, ‘सभी एफआईआर प्रारंभिक जांच के बाद दर्ज की जाती हैं. गिरफ्तारियां केवल कानून द्वारा मुनासिब होने पर और जांच के लिए आवश्यकता होने पर ही की जाती हैं. हम निष्पक्ष जांच करते हैं और यह सुनिश्चित करने के बाद ही आरोप-पत्र दायर किया जाता है कि रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं जो अदालत में जांच के दायरे में आएंगे.’

‘शिंदे सेना’ के प्रवक्ता किरण पावस्कर ने कहा कि मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था के मामले में दखल नहीं देते हैं. विपक्ष की आदत हो गई है कि वह हर चीज के लिए मुख्यमंत्री को दोष दे रहा है, चाहे वह पुलिस की कार्रवाई हो या गर्म लू चले.