सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जज लंबित मामलों पर मीडिया में इंटरव्यू नहीं दे सकते हैं

सुप्रीम कोर्ट तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय पर आरोप लगाया था कि उन्होंने मीडिया को एक इं​टरव्यू देते हुए कहा था कि वे बनर्जी को नापसंद करते हैं. गौरतलब है कि जस्टिस गंगोपाध्याय उस मामले पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बनर्जी आरोपी थे.

Justice Abhijit Gangopadhyay with the Calcutta high court in the background. Illustration: The Wire

सुप्रीम कोर्ट तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय पर आरोप लगाया था कि उन्होंने मीडिया को एक इं​टरव्यू देते हुए कहा था कि वे बनर्जी को नापसंद करते हैं. गौरतलब है कि जस्टिस गंगोपाध्याय उस मामले पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बनर्जी आरोपी थे.

जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय, बैकग्राउंड में कलकत्ता हाईकोर्ट. (इल्स्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जज लंबित मामलों पर मीडिया को इं​टरव्यू नहीं दे सकते हैं. यह कहते हुए शीर्ष अदालत ने कलकत्ता हाईकोर्ट से एक हलफनामा मांगा है कि क्या जैसा तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी ने आरोप लगाया है, जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने ‘एबीपी आनंदा’ (बंगाली भाषा के समाचार चैनल) को इंटरव्यू दिया था या नहीं.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि जो मामले लंबित हैं, उन पर इं​टरव्यू देना जजों का काम नहीं है.’

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि जस्टिस गंगोपाध्याय ने पिछले साल सितंबर में ‘एबीपी आनंदा’ को एक इं​टरव्यू दिया था और उनके प्रति अपनी ‘नापसंदगी’ जाहिर की थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सीजेआई ने कहा कि अगर उन्होंने वास्तव में इं​टरव्यू दिया है तो एक नए जज को मामले पर विचार करना चाहिए.

उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को गुरुवार (28 अप्रैल) तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. मामले पर अगली सुनवाई शुक्रवार (29 अप्रैल) को होगी.

सीजेआई ने स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष में नहीं पड़ रहे हैं और कहा, ‘अगर उन्होंने (जस्टिस गंगोपाध्याय) याचिकाकर्ता के बारे में वह कहा है तो उनका कार्यवाही में भाग लेने का कोई मतलब नहीं है. सवाल यह है कि क्या किसी राजनीतिक शख्सियत के बारे में इस तरह के बयान देने वाले जज को सुनवाई में भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए. कुछ प्रक्रिया होनी चाहिए.’

यह मामला शीर्ष अदालत के समक्ष टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी की याचिका के जवाब में आया, जिसमें उनके खिलाफ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने कथित बंगाल स्कूल नौकरी घोटाले के संबंध में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ई़डी) द्वारा जांच का आदेश दिया गया था.

बनर्जी ने दावा किया था कि कथित घोटाले के आरोपियों पर उनका नाम लेने के लिए दबाव डाला गया था, जिसके कारण हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ जांच का आदेश दिया था.

उन्होंने कहा था कि वह न तो पक्षकार हैं और न ही कथित घोटाले में सुनवाई की जा रही रिट याचिका से जुड़े हैं. बनर्जी ने पिछले सितंबर में कथित इं​टरव्यू का जिक्र करते हुए कहा था कि आदेश पारित करने वाले जस्टिस गंगोपाध्याय उन्हें ‘नापसंद’ करते हैं.

टीएमसी नेता ने यह भी दावा था किया कि जस्टिस गंगोपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी की थी, जो खुली अदालत में मामले में उनकी अपीलों की सुनवाई कर रहे थे.

बनर्जी ने आरोप लगाया था के जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा था, ‘सुप्रीम कोर्ट के जज जो चाहें कर सकते हैं? क्या यह जमींदारी है?’

इस पर शीर्ष अदालत ने कहा, ‘तथ्य यह है कि सर्वोच्च अदालत द्वारा पारित न्यायिक आदेश न सिर्फ जांच के घेरे में हैं बल्कि एकल जज द्वारा सबसे अशिष्ट तरीके से आलोचना की गई है, यह इस सम्मानीय अदालत द्वारा हस्तेक्षप की मांग करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संस्थान का महत्व बना रहे और एक आम आदमी का इसमें विश्वास मजबूत रहे.’

जैसा कि द वायर ने पहले रिपोर्ट किया था कि 17 सितंबर 2022 को प्रसारित इं​टरव्यू ने उन्हें चर्चा का केंद्र बना दिया था, क्योंकि एक जज के लिए एक समाचार चैनल से इतनी लंबी बातचीत करना दुर्लभ था.

इं​टरव्यू में जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा था कि वह ‘न्यायपालिका पर उंगली उठाने वाले’ किसी भी शख्स के खिलाफ ‘सख्त कार्रवाई’ के पक्ष में हैं, अन्यथा लोगों का न्याय प्रणाली पर से विश्वास उठ जाएगा.

बनर्जी का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था, ‘उन्होंने (अभिषेक बनर्जी) एक बार न्यायपालिका पर टिप्पणी की थी. मैं तब कोलकाता में नहीं था. मैं लद्दाख में था. वहां बैठकर मैंने सोचा कि मैं उनके खिलाफ आदेश जारी करूंगा, मैं उन्हें तलब करूंगा, मैं कार्रवाई करूंगा. एक बार जब मैं कोलकाता वापस आ गया तो मैंने पाया कि इस संबंध में एक याचिका दायर की गई थी, लेकिन एक खंडपीठ ने इस पर विचार नहीं किया. खंडपीठ को लगा कि इससे उन्हें (बनर्जी को) एक्स्ट्रा अटेंशन मिलेगी, लेकिन मेरी अलग राय है.’

जस्टिस गंगोपाध्याय, जिन्हें कथित नौकरी घोटाले से प्रभावित लोगों द्वारा ‘जनता का जज’ कहा जा रहा है, ने कहा था कि उन्होंने भ्रष्टाचार को कभी बर्दाश्त नहीं किया.

उन्होंने कहा था, ‘मैं कुछ फैसले देना चाहता हूं, जब लंबे समय बाद मैं नहीं रहूंगा, जो शोधकर्ताओं के सामने आएंगे और वे जानेंगे कि इस तरह के भी एक जज थे.’

उसी दिन, मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी, जिसमें शाम को जस्टिस गंगोपाध्याय के इं​टरव्यू के प्रसारण को रोकने की मांग की गई थी. हालांकि पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी.

जस्टिस गंगोपाध्याय को 2 मई 2018 को कलकत्ता हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने 30 जुलाई 2020 को हाईकोर्ट के स्थायी जज के रूप में कार्य करना शुरू किया था. यह पहली बार नहीं है कि जस्टिस गंगोपाध्याय प्रदेश के राजनीतिक हलकों में चर्चा के केंद्र में हैं.

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