बिहार: जेल नियमों में बदलाव कर ​डीएम हत्याकांड में सज़ायाफ़्ता पूर्व सांसद को रिहा किया जाएगा

बिहार जेल नियमों में संशोधन के कुछ दिनों बाद बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने 27 क़ैदियों की रिहाई की अधिसूचना जारी की है. रिहा होने वालों में पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह भी हैं, जिन्हें 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन ज़िलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या मामले में दोषी ठहराया गया था.

पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह. (फोटो साभार: एएनआई)

बिहार जेल नियमों में संशोधन के कुछ दिनों बाद बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने 27 क़ैदियों की रिहाई की अधिसूचना जारी की है. रिहा होने वालों में पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह भी हैं, जिन्हें 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन ज़िलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या मामले में दोषी ठहराया गया था.

पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह. (फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: बिहार जेल नियमों में संशोधन के कुछ दिनों बाद बिहार सरकार ने मंगलवार को 27 कैदियों की रिहाई की अधिसूचना जारी कर दी. रिहा होने वालों में पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह भी हैं, जिन्हें 1994 में नौकरशाह जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की कथित रूप से आनंद मोहन सिंह द्वारा उकसाई गई भीड़ ने हत्या कर दी थी. गैंगस्टर से राजनेता बने सिंह को 2007 में बिहार की एक निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था, उस आदेश को 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था.

इस महीने की शुरुआत में बिहार सरकार ने ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या के दोषियों के लिए जेल की सजा को कम करने पर रोक लगाने वाले खंड को हटा दिया था.

अपनी अधिसूचना में राज्य के कानून विभाग ने कहा कि नए नियम उन कैदियों के लिए है, जिन्होंने 14 साल की वास्तविक सजा या 20 साल की सजा काट ली है.

अधिसूचना में कहा गया है, ‘20 अप्रैल को बिहार राज्य दंड छूट परिषद की बैठक के आलोक में 14 साल की वास्तविक सजा या 20 साल की सजा काट चुके कैदियों की रिहाई के लिए निर्णय लिया गया.’

नियमों में बदलाव और आनंद मोहन सिंह की रिहाई ने बड़े विवाद को जन्म दिया है, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने नियमों में बदलाव को ‘दलित विरोधी’ करार दिया है.

मायावती ने ट्वीट किया, ‘बिहार की नीतीश सरकार द्वारा आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) महबूबनगर के रहने वाले गरीब दलित समाज से आईएएस बने बेहद ईमानदार जी. कृष्णैया की निर्दयता से की गई हत्या मामले में आनंद मोहन को नियम बदल कर रिहा करने की तैयारी देश भर में दलित विरोधी निगेटिव कारणों से काफी चर्चाओं में है.’

 

उन्होंने आगे कहा, ‘आनंद मोहन बिहार में कई सरकारों की मजबूरी रहे हैं, लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम कृष्णैया की हत्या मामले को लेकर नीतीश सरकार का यह दलित विरोधी व अपराध समर्थक कार्य से देशभर के दलित समाज में काफी रोष है. चाहे कुछ मजबूरी हो किन्तु बिहार सरकार इस पर जरूर पुनर्विचार करे.’

वहीं, भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी नीतीश कुमार पर निशाना साधा और कहा कि राजद की कुटिल चालों के सामने घुटने टेकने के लिए नीतीश कुमार को शर्म आनी चाहिए.

उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘बिहार सरकार ने बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन करके ‘ड्यूटी पर सरकारी कर्मचारी के हत्यारे’ श्रेणी के कैदियों को गुप्त रूप से हटा दिया था, जिससे डॉन और राजद नेता आनंद मोहन की रिहाई का मार्ग प्रशस्त हो गया है, जो दलित आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं.’

 

उन्होंने कहा, ‘सत्ता पर काबिज होने के लिए आपराधिक सिंडिकेट का सहारा लेने वाला क्या विपक्षी नेता के रूप में भी भारत का चेहरा हो सकता है?.’

इसी बीच इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले बिहार में सत्तारूढ़ जदयू ने मायावती को यूपी में भाजपा का बी-टीम करार देते हुए भाजपा पर हमला किया है.

जदयू नेता राजीव रंजन सिंह ने एक ट्वीट में कहा कि नियमों में बदलाव का मकसद आम आदमी और खास बंदियों को एक समान मंच पर लाना है.

उन्होंने कहा, ‘आनंद मोहन जी की रिहाई पर अब भाजपा खुलकर आई है. पहले तो यूपी की अपनी बी-टीम से विरोध करवा रही थी. बीजेपी को यह पता होना चाहिए कि नीतीश कुमार जी के सुशासन में आम व्यक्ति और खास व्यक्ति में कोई अंतर नहीं किया जाता है. आनंद मोहन जी ने पूरी सजा काट ली और जो छूट किसी भी सजायाफ्ता को मिलती है वह छूट उन्हें नहीं मिल पा रही थी, क्योंकि खास लोगों के लिए नियम में प्रावधान किया हुआ था. नीतीश कुमार जी ने आम और खास के अंतर को समाप्त किया और एकरूपता लाई, तब उनकी रिहाई का रास्ता प्रशस्त हुआ.’

उन्होंने कहा, ‘अब भाजपाइयों के पेट में न जाने दर्द क्यों होने लगा है! भाजपा का सिद्धांत ही है विरोधियों पर पालतू तोतों (जांच एजेंसी) को लगाना, अपनों को बचाना और विरोधियों को फंसाना. वहीं नीतीश कुमार जी के सुशासन में न तो किसी को फंसाया जाता है न ही किसी को बचाया जाता है.’

बिहार जेल नियमावली में बदलाव से राजपूत नेता आनंद मोहन सिंह को लाभ हुआ है, जिनका अपनी जाति के मतदाताओं पर काफी प्रभाव है.

पिछले दो सालों से राजपूत समुदाय के कई राजनेता सिंह की जल्द रिहाई की मांग कर रहे हैं. यहां तक कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कई मौकों पर संकेत दिया है कि वह अपने पूर्व सहयोगी के साथ खड़े हैं.

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