आईटी नियम ‘प्रेस स्वतंत्रता की स्वतंत्रता का गंभीर रूप से उल्लंघन’ करेंगे: इंटरनेट कोअलिशन

एशिया इंटरनेट कोअलिशन के अलावा इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित विभिन्न प्रेस निकायों ने कानून और स्वतंत्र प्रेस पर इसके प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की है. इनकी ओर से कहा गया था कि आईटी नियम सरकार या उसकी नामित एजेंसी को कोई ख़बर फ़र्जी है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए ‘पूर्ण’ और ‘मनमानी’ शक्ति प्रदान करेंगे.

(फोटो: द वायर)

एशिया इंटरनेट कोअलिशन के अलावा इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित विभिन्न प्रेस निकायों ने कानून और स्वतंत्र प्रेस पर इसके प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की है. इनकी ओर से कहा गया था कि आईटी नियम सरकार या उसकी नामित एजेंसी को कोई ख़बर फ़र्जी है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए ‘पूर्ण’ और ‘मनमानी’ शक्ति प्रदान करेंगे.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: एशिया इंटरनेट कोअलिशन ने कहा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए नए आईटी नियम ‘प्रेस की स्वतंत्रता का गंभीर रूप से उल्लंघन करेंगे.’

इस कोअलिशन में गूगल, मेटा, एप्पल और अमेज़ॉन जैसी कंपनियां शामिल हैं.

आईटी नियमों में संशोधन बीते छह अप्रैल को औपचारिक रूप से लाया गया था, जो सरकार द्वारा स्थापित ‘फैक्ट चेक इकाई’ को ‘केंद्र सरकार के किसी भी व्यवसाय’ के संबंध में किसी भी ‘नकली या झूठे या भ्रामक’ सामग्री को हटाने की अनुमति देता है.

नई सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 (आईटी नियम) ऑनलाइन सूचनाओं और उन्हें इंटरनेट से हटाने की सरकार की शक्तियों से संबंधित है.

सरकार की फैक्ट चेक इकाई के पास सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) और अन्य सेवा प्रदाताओं सहित मध्यस्थों को निर्देश जारी करने का अधिकार होगा कि वे ऐसी सामग्री को हटा दें.

इसके अलावा गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फर्जी या भ्रामक’ करार दी गई सामग्री इंटरनेट से हटाने को बाध्य होंगी.

17 अप्रैल को अपने बयान में एशिया इंटरनेट कोअलिशन ने चिंता के साथ नोट किया है कि ‘आईटी नियम सामग्री को हटाने के लिए पर्याप्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा और सूचना तक लोगों की पहुंच के मौलिक अधिकारों की रक्षा किए बिना ऐसा करने के लिए व्यापक शक्ति प्रदान करते हैं.’

संगठन ने अपने प्रबंध निदेशक जेफ पाइन के हवाले से जारी एक बयान में कहा है, ‘स्पष्ट परिभाषा दिए बिना सिर्फ प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) जैसी सरकारी एजेंसी को सरकार से संबंधित मीडिया में आईं खबरों का फैक्ट चेक करने की शक्ति देना कानून के कार्यान्वयन के दौरान दुरुपयोग का कारण बन सकता है, जो प्रेस की स्वतंत्रता का गंभीर रूप से उल्लंघन करेगा.’

पाइन ने कहा, ‘निर्देशात्मक कानून के बजाय सरकारों को मीडिया संस्थानों से इस संबंध में परामर्श करना चाहिए और इंटरनेट के लाभों की रक्षा करने और लोगों को नुकसान से बचाने के लिए स्वैच्छिक तंत्र पर भी विचार करना चाहिए.’

इस संबंध में एक रिपोर्ट ऑनलाइन पोर्टल मीडियानामा द्वारा प्रकाशित की गई है.

एशिया इंटरनेट कोअलिशन के अलावा इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित विभिन्न प्रेस निकायों ने कानून और स्वतंत्र प्रेस पर इसके प्रभाव पर गहरी चिंता व्यक्त की है.

इन संगठनों की ओर से कहा गया था कि यह कदम सरकार या उसकी नामित एजेंसी को कोई खबर फर्जी है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए ‘पूर्ण’ और ‘मनमानी’ शक्ति प्रदान करेगा.

इस बीच आईटी नियमों को स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट में अदालत में चुनौती दी गई है.

संशोधित नियमों के एक पुराने संस्करण में उल्लेख किया गया था कि पीआईबी एक फैक्ट चेक इकाई के रूप में कार्य करेगी, अंतिम संस्करण में कहा गया है कि एक गैर-पीआईबी ‘आधिकारिक’ इकाई है, जिसे फैक्ट चेक का काम सौंपा गया है. यह भी सरकार द्वारा स्थापित एक इकाई होगी, यह पीआईबी नहीं है जो फैक्ट चेक का कार्य करेगी.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें