बिहार जेल नियमों में संशोधन के बाद रिहा होने वाले क़ैदियों में पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह भी हैं, जिन्हें साल 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन ज़िलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या करने का दोषी ठहराया गया था. कृष्णैया की पत्नी के साथ आईएएस एसोसिएशन ने भी सरकार के इस फैसले को लेकर सवाल उठाए हैं.
नई दिल्ली: एक आईएएस अधिकारी और गोपालगंज के ज़िलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के दोषी ठहराए गए पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की नए जेल नियमों के तहत रिहाई को लेकर राजनीतिक दलों, आईएएस एसोसिएशन से लेकर उनके परिवार ने भी रोष जताया है.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए जी. कृष्णैया की पत्नी उमा जी. कृष्णैया ने कहा कि नीतीश कुमार हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को रिहा करके गलत मिसाल कायम कर रहे हैं. इससे अपराधियों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने का बल मिलेगा क्योंकि उन्हें मालूम है कि वे आसानी से जेल से बाहर आ जाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘कुछ राजपूत वोटों के लिए उन्होंने ऐसा फैसला लिया है जिसका नतीजा आम लोगों को भुगतना होगा. राजपूत समुदाय को भी इस बारे में सोचना चाहिए- कि क्या वे चाहते हैं कि आनंद मोहन जैसा अपराधी राजनीति में उनका प्रतिनिधित्व करे.’
उल्लेखनीय है कि 1994 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की कथित रूप से आनंद मोहन सिंह द्वारा उकसाई गई भीड़ ने हत्या कर दी थी. गैंगस्टर से नेता बने सिंह को 2007 में बिहार की एक निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था, जिसे 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था.
इस महीने की शुरुआत में बिहार सरकार ने ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या के दोषियों के लिए जेल की सजा को कम करने पर रोक लगाने वाले खंड को हटा दिया था. अपनी अधिसूचना में राज्य के कानून विभाग ने कहा है कि नए नियम उन कैदियों के लिए है, जिन्होंने 14 साल की वास्तविक सजा या 20 साल की सजा काट ली है.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए 60 वर्षीय उमा ने दुखी होकर कहा, ‘मुझे तो इसके (रिहाई) के बारे में मालूम भी नहीं था; सोसाइटी में किसी ने बताया और मेरा दिल टूट गया, मेरे मन की शांति चली गई.’
उन्होंने आगे जोड़ा, ‘यह मेरे बारे में नहीं है, मैंने तो अपनी जिंदगी काट ली. सेहत रही तो कुछ और साल जी लूंगी. लेकिन यह सिविल सेवकों, सरकारी अधिकारियों और आम लोगों की बात है जो अपराधियों का खामियाजा भुगतेंगे क्योंकि वे जैसा चाहेंगे वैसा करेंगे क्योंकि उन्हें अब नतीजों का डर नहीं है. यह केवल गुंडों और ठगों को कानून अपने हाथ में लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा; इसलिए बिहार में माफिया का राज है. तब भी वही था, अब भी वही है.’
उन्होंने बताया कि वे तीस साल की थीं, जब 5 दिसंबर, 1994 को उन्होंने अपने पति को खो दिया. इसके दो दिन बाद वे हैदराबाद चली गई थीं, जहां बेगमपेट में ऑफिसर्स ट्रांजिट हॉस्टल में उन्हें एक फ्लैट आवंटित किया गया था. उन्होंने बताया कि उनकी दो बेटियां उस समय 7 और 5 साल की थीं. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘हम सदमे में थे और बेहद डरे हुए थे.’
फरवरी 1995 तक उन्होंने बेगमपेट में गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज फॉर वीमेन में लेक्चरर के रूप में काम किया और 2017 में रिटायर हुईं. इस बीच, उन्हें जुबली हिल्स के प्रकाशन नगर में एक जमीन आवंटित किया गया, जहां उन्होंने घर बनाया है. उनकी बड़ी बेटी निहारिका एक बैंक मैनेजर हैं और छोटी बेटी पद्मा सॉफ्टवेयर इंजीनियर के बतौर काम करती हैं.
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और नीतीश कुमार को इस फैसले को वापस लेने के लिए कहना चाहिए. मेरे पति एक आईएएस अधिकारी थे और यह सुनिश्चित करना केंद्र की जिम्मेदारी है कि इंसाफ हो. जब उन्हें (मोहन को) मृत्युदंड के बदले आजीवन कारावास दिया गया तो मैं खुश नहीं थी. अब, मुझे इस सच से जूझना पड़ रहा है कि हत्यारों को पूरी सजा भुगते बिना ही जेल से रिहा किया जा रहा है. नीतीश कुमार कुछ सीटें जीत सकते हैं या सरकार भी बना सकते हैं, लेकिन क्या जनता ऐसे नेताओं और ऐसी सरकार पर विश्वास करेगी?’
उमा ने आगे कहा, ‘मुझे नहीं मालूम कि हमारे पास फिर से कानूनी प्रक्रिया से गुजरने का सब्र है या नहीं. मेरे पति के 1985 बैच के अधिकारी मेरे संपर्क में हैं और वे पूछ रहे हैं कि हमें बिहार सरकार के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए. हम इस पर चर्चा कर रहे हैं. मैं नहीं चाहती कि उन्हें जेल से रिहा किया जाए. उन्हें आजीवन जेल में रहना चाहिए.’
आईएएस एसोसिएशन ने कहा- न्याय का उपहास
दूसरी तरफ, सरकार से निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए आईएएस निकाय ने कहा कि एक सजायाफ्ता हत्यारे की रिहाई ‘न्याय से वंचित करने के समान’ है.
A convict of a charge of murder of a public servant on duty, cannot be re-classified to a less heinous category. Amendment of an existing classification which leads to the release of the convicted killer of a public servant on duty is tantamount to denial of justice.
— IAS Association (@IASassociation) April 25, 2023
एसोसिएशन द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, ‘ड्यूटी पर तैनात एक लोकसेवक की हत्या के आरोप में दोषी को कम जघन्य श्रेणी में पुनर्वर्गीकृत नहीं किया जा सकता. मौजूदा वर्गीकरण में किया गया संशोधन, जो एक ऑन ड्यूटी लोक सेवक के सजायाफ्ता हत्यारे को रिहाई की ओर ले जाता है, न्याय से इनकार करने के समान है. इस तरह के कमजोर पड़ने से लोक सेवकों के मनोबल में गिरावट आती है, सार्वजनिक व्यवस्था कमजोर होती है और न्याय प्रशासन का मखौल बनता है.’
उन्होने आगे कहा, ‘हम बिहार सरकार से दृढ़ता से अनुरोध करते हैं कि वह जल्द से जल्द अपने फैसले पर पुनर्विचार करे.