मोदी सरनेम केस: राहुल गांधी की अपील पर सुनवाई कर रहे गुजरात हाईकोर्ट जज माया कोडनानी के वकील थे

‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मिली दो साल की सज़ा पर रोक लगाने संबंधी याचिका सत्र अदालत में ख़ारिज होने बाद गुजरात हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई जस्टिस हेमंत एम. प्रच्छक कर रहे हैं. वह 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक के मामले में आरोपी भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी का बचाव करने वाले वकीलों में से एक थे.

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जस्टिस हेमंत प्रच्छक और राहुल गांधी. (फोटो साभार: फेसबुक)

‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मिली दो साल की सज़ा पर रोक लगाने संबंधी याचिका सत्र अदालत में ख़ारिज होने बाद गुजरात हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई जस्टिस हेमंत एम. प्रच्छक कर रहे हैं. वह 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक के मामले में आरोपी भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी का बचाव करने वाले वकीलों में से एक थे.

जस्टिस हेमंत प्रच्छक और राहुल गांधी. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: ‘मोदी सरनेम’ मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने के आवेदन को सत्र न्यायालय की अस्वीकृति बाद गुजरात हाईकोर्ट में जस्टिस हेमंत एम. प्रच्छक इसकी सुनवाई कर रहे हैं.

जस्टिस प्रच्छक 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े एक के मामले में आरोपी भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी का बचाव करने वाले वकीलों में से एक थे.

बीते 20 अप्रैल को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा की सूरत की एक अदालत ने इस मामले में राहुल गांधी को मिली दो साल की सजा पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया था. अपील के भाजपा से सीधे संबंध के साथ राजनीतिक निहितार्थ थे, क्योंकि सत्र न्यायालय के फैसले से राहुल गांधी को संसद में लौटने में मदद मिल सकती थी.

बीते 13 अप्रैल को द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया था कि न्यायाधीश रॉबिन मोगेरा ने तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले में भाजपा नेता और अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वकील के रूप में कार्य किया था.

इस मामले के राजनीतिक महत्व को देखते हुए 2024 के आम चुनावों के बाद यह संभव है कि हितों के टकराव पर सवाल उठाए जा सकते हैं.

रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया था कि एक वकील के रूप में मोगेरा ने कम से कम 2014 तक शाह का प्रतिनिधित्व किया था, जब मामले की सुनवाई मुंबई में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की अदालत में चल रही थी.

इसके बाद समाचार वेबसाइट द फेडरल में एक रिपोर्ट आती है कि जस्टिस हेमंत एम. प्राचाक गुजरात हाईकोर्ट में सूरत सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ राहुल गांधी की अपील पर सुनवाई कर रहे हैं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि जस्टिस प्रच्छक ने फरवरी 2002 में अहमदाबाद के नरोदा पाटिया और नरोदा गाम इलाकों में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में भाजपा नेता माया कोडनानी का बचाव किया था, जहां महिलाओं और बच्चों सहित 100 से अधिक मुस्लिम मारे गए थे.

आगे बताया गया है, ‘उल्लेखनीय रूप से नरोदा पाटिया और नरोदा गाम मामलों के सभी आरोपियों को एक सप्ताह पहले गुजरात की विशेष अदालत ने बरी कर दिया था.’

द फेडरल की बीते 21 अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में नरेंद्र मोदी सरकार में शक्तिशाली मंत्री रहीं कोडनानी के बरी होने से सक्रिय राजनीति में लौटने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है.

राहुल गांधी ने सूरत की सत्र अदालत के फैसले से राहत पाने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. जस्टिस गीता गोपी को बीते 27 अप्रैल को मामले की सुनवाई करनी थी, लेकिन उन्होंने बिना कोई कारण बताए खुद को इससे अलग कर लिया था.

चूंकि राहुल के वकील पंकज चंपानेरी ने अपील की थी कि आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन पर तत्काल आधार पर सुनवाई की जाए, जस्टिस गोपी ने इसकी अनुमति दी लेकिन यह कहते हुए सुनवाई से खुद को अलग कर लिया, ‘मेरे सामने नहीं.’ इसके बाद मामला जस्टिस प्रच्छक के सामने आया है.

द फेडरल के अनुसार, जस्टिस प्रच्छक ने गुजरात हाईकोर्ट में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस शुरू की थी. उसके बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले गुजरात सरकार के सहायक वकील के रूप में काम किया.

2015 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें गुजरात हाईकोर्ट के लिए केंद्र सरकार का स्थायी वकील नियुक्त किया गया. वह 2019 तक यह जिम्मेदारी निभाते रहे.

इसके बाद साल 2021 में उन्हें गुजरात हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया.

बीते 23 मार्च को सूरत की एक अदालत ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनकी कथित ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ दायर 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में दो साल की जेल की सजा सुनाई थी.

हालांकि इसके कुछ ही देर बाद अदालत ने 15,000 रुपये के मुचलके पर राहुल गांधी की जमानत मंजूर कर ली और उन्हें इसके खिलाफ अपील करने की अनुमति देने के लिए 30 दिनों के लिए सजा पर रोक लगा दी थी.

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 8(3) के अनुसार, यदि किसी सांसद को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल की सजा सुनाई जाती है, तो वह अयोग्यता का पात्र होगा.

राहुल के खिलाफ भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी द्वारा 13 अप्रैल, 2019 को केस दर्ज कराया गया था. उन्होंने कर्नाटक के कोलार में लोकसभा चुनाव के समय एक रैली में राहुल द्वारा की गई टिप्पणी को लेकर शिकायत की थी.

राहुल गांधी ने कथित तौर पर रैली के दौरान कहा था, ‘सभी चोर, चाहे वह नीरव मोदी हों, ललित मोदी हों या नरेंद्र मोदी, उनके नाम में मोदी क्यों है.’

दोषी ठहराए जाने के अगले दिन 24 मार्च को राहुल गांधी को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया. लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया था कि वायनाड से सांसद राहुल गांधी को 23 मार्च 2023 से अयोग्य घोषित कर दिया गया है. इसके बाद उन्हें उनका सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस भी मिला था.

उन्होंने प्रोटोकॉल के मुताबिक बीते 22 अप्रैल को अपना तुगलक लेन का सरकारी बंगला खाली कर दिया. 2004 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से जीतने के बाद उन्हें पहली बार बंगला आवंटित किया गया था.

‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी के लिए बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी राहुल गांधी के खिलाफ याचिका दायर की है.

इस मामले में पटना की निचली अदालत ने राहुल गांधी को पेश होकर अपना पक्ष रखने को कहा था. हालांकि बीते 24 अप्रैल को पटना हाईकोर्ट ने राहुल गांधी को राहत देते हुए निचली अदालत के आदेश पर 15 मई तक रोक लगा दी.

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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