सुप्रीम कोर्ट ने भले ही विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा केंद्रीय एजेंसियों के काम को लेकर निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका सुनने से इनकार कर दिया हो, लेकिन द वायर द्वारा पड़ताल किए गए विपक्षी नेताओं से जुड़े मामलों में कई विसंगतियां और सवाल मिले हैं, जिनके जवाब दिए जाने की ज़रूरत है.
(इलस्ट्रेशन: द वायर)
(ईडी के कामकाज को लेकर दो लेखों की श्रृंखला का यह दूसरा हिस्सा है. पहला भाग यहां पढ़ सकते हैं.)
नई दिल्ली: पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने 18 राजनीतिक दलों द्वारा संयुक्त रूप से दायर एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. इस याचिका में सरकार पर सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों का इस्तेमाल करके ‘पूरे विपक्ष को कुचलने’ की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर इस याचिका को सुनने से इनकार कर दिया कि वह निजी मामलों के तथ्यात्मक संदर्भ के बिना अमूर्त तरीके से गाइडलाइंस जारी नहीं कर सकता है.
इस बीच द वायर ने पिछले नौ सालों से सुर्खियों में रहने वाले ईडी के कुछ वैसे मामलों का अध्ययन किया है जिनमें नेता- जो विपक्षी दलों से ताल्लुक रखते हैं- जेल में हैं.
कम से कम एक निचली अदालत ने ईडी के कामकाज को लेकर तीखी टिप्पणी की है. पिछले साल मुंबई के दो बिल्डरों को जमानत देते हुए मुंबई के स्पेशल जज एमजी देशपांडे ने कहा था, ‘ईडी द्वारा न्यायिक हिरासत को बढ़ाने की शक्ति के दुरुपयोग के खिलाफ प्रभावशाली अंकुश होना जरूरी है. इस अदालत का दृढ मत है यह ईडी जैसे अभियोक्ता द्वारा देश के कानूनों की अवमानना करते हुए किसी आरोपित व्यक्ति की न्यायिक हिरासत बढ़ाकर उसे अपमानित करने के कृत्य में सहयोगी नहीं बन सकता है.’ [पीडीएफ]
एनसीपी नेता नवाब मलिक का मामला
देशपांडे के शब्दों की गूंज नवाब मलिक मामले में सुनाई देती है. एनसीपी नेता 23 फरवरी, 2022 से मुंबई के कुर्ला इलाके के गांववाला कंपाउंड में जमीन खरीद मामले में जेल में हैं. मलिक को गिरफ्तारी के बाद ईडी दफ्तर में समन और अरेस्ट मेमो दिया गया. मलिक के परिवार के सदस्यों का कहना है कि उन्होंने 2003 और 2005 में दो बार गांववाला कंपाउंड में क्रमशः 10 और 15 लाख रुपये में जमीन खरीदी. इनमें से एक लेनदेन मलिक परिवार और गांववाला कंपाउंड की मालिक मरयमबाई फज़ले अब्बास के बीच सलीम पटेल के मार्फत हुआ.
संयोग से पटेल अंडरवर्ल्ड डॉन हसीना पार्कर का ड्राइवर था. दूसरी खरीद में मरयमबाई फज़ले अब्बास गांववाला के लिए किराया वसूल करने वाला सरदार खान शामिल था. 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट मामले में एक आरोपी सरदार खान जेल में है.
ईडी का कहना है कि गांववाला की बेटी मुनीरा ने अपने बयान में ईडी से कहा है कि उसने पॉवर ऑफ एटॉर्नी पर दस्तखत नहीं किए थे. जमीन पर कब्ज़ा करने के लिए मलिक परिवार ने यह जाली दस्तावेज तैयार किया. मलिक परिवार ने आरटीआई आवेदन के जरिये रिकॉर्ड हासिल किए हैं, जिनसे साबित होता है कि इन दस्तावेजों पर सब रजिस्ट्रार की मौजूदगी में दस्तखत किए गए थे. उस आरटीआई जवाब में यह भी कहा गया है कि यही दस्तावेज ईडी को भी मुहैया कराए गए हैं, लेकिन ईडी ने इस दस्तावेज को रिकॉर्ड में शामिल नहीं किया है और उसका अब भी कहना है कि मलिक ने जमीन पर कब्ज़ा किया है.
ईडी का यह भी कहना है कि मलिक ने जमीन मरहूम हसीना पार्कर से खरीदी, जबकि इसे उसके ड्राइवर से खरीदा गया था. एजेंसी का यह दावा पार्कर के बेटे के बयान पर आधारित है, जिसकी उस समय उम्र 13 साल थी.
ईडी ने सरदार खान के बयान पर भरोसा किया है कि उसे 5 लाख रुपये दिए गए थे, न कि मलिक परिवार के दावे के अनुसार 10 लाख. लेकिन बैंक स्टेटमेंट से 10 लाख रुपये के भुगतान की पुष्टि होती है. मलिक के वकील रोहन दक्षिणी का कहना है, ‘खान 1993 के बम ब्लास्ट मामले आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. ऐसे में उसके बयान का सबूत के हिसाब से ज्यादा महत्व नहीं होना चाहिए. यह गवाह विश्वसनीय नहीं है और उसका बयान मलिक को जेल में बंद रखने का आधार नहीं हो सकता है.’
इससे भी ज्यादा दिलचस्प यह है कि ये बयान ईडी के सामने नवाब मलिक मामले में नहीं दिए गए हैं, बल्कि ये बयान डीएचएफएल घोटाला मामले में दिए गए हैं, जिनका इस्तेमाल नवाब मलिक के खिलाफ किया गया है.
संयोग से, इस मामले में ईडी ने अपनी शिकायत- ईसीआईआर, जो पुलिस एफआईआर के समकक्ष होती है- तयशुदा 60 दिनों के भीतर दायर कर दी थी, लेकिन कोर्ट ने इसका संज्ञान लेने में पांच हफ्ते बाद, ग्रीष्म अवकाश शुरू होने से पहले लिया.
मलिक की जमानत अर्जी ग्रीष्म अवकाश के बाद कोर्ट चालू होने के बाद आई . नियमों के अनुसार, आरोपी को शिकायत की प्रति कोर्ट द्वारा इसका संज्ञान लेने के बाद ही दी जा सकती है. इसके बाद ही आरोपी जमानत के लिए आवेदन कर सकता है. इस तरह से देखें, तो कोर्ट ने जमानत याचिका पर सुनवाई करने में पांच महीने का वक्त लगाया. मलिक ने जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है. इसमें एक बार एक निचली अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिका को आजीवन कारावास काट रहे सरदार खान के बयान के आधार पर खारिज कर दिया गया.
द वायर के सवालों के जवाब में ईडी का कहना है कि ‘सभी मामलों में ईडी द्वारा की गई सभी कार्रवाइयों को संबंधित अधिकारक्षेत्रीय न्यायालयों द्वारा समय-समय पर अनुमोदित किया गया है. इसके अलावा आपके द्वारा पूछे गए सवालों का ताल्लुक संवेदनशील मामलों से है और इनका जवाब देना न्यायालयों के समक्ष लंबित विचाराधीन मामलों में तथ्यों को उजागर करने के समान होगा. ऐसा करने से जांच से जुड़े तथ्य उजागर होंगे, जो कि मुनासिब नहीं होगा.’
नियमों के अनुसार, चूंकि पीएमएल एक्ट के लिए एक विधेय (प्रेडिकेट)अपराध का होना पूर्व शर्त है, इसलिए ईडी ने मलिक की गिरफ्तारी से महज तीन हफ्ते पहले एनआईए द्वारा दायर एक शिकायत को मामला चलाने का आधार बनाया है. संयोग से मुंबई बम ब्लास्ट के 30 वर्षों बाद दाउद इब्राहिम एवं अन्यों के खिलाफ एफआईआर दाउद पर मामला चलाने की पहली कोशिश है. यह एफआईआर 3 फरवरी, 2022 को दायर की गई, वह भी केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद.
ईडी का कहना है कि द वायर ‘गैरजरूरी सवाल पूछ रहा है. इसका कारण यह हो सकता है कि आपका इस्तेमाल निहित स्वार्थ रखने वाले कुछ लोगों द्वारा अपने पूर्वाग्रहपूर्ण दृष्टिकोण का प्रसार करने और साथ ही आपके जरिये खोजी पत्रकारिता की आड़ में ईडी से संवेदनशील सूचनाएं निकालने के लिए किया जा रहा हो. ऐसा लगता है कि ज्यादातर सवाल या तो आरोपी द्वारा या आरोपी में दिलचस्पी रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा मुहैया कराई गई सूचना पर आधारित हैं और इनका मकसद अप्रत्यक्ष तौर पर आरोपी को मदद पहुंचाना है.’
नेशनल हेराल्ड मामला
नेशनल हेराल्ड मामले में मुख्य याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी ने असामान्य तरीके से अपनी याचिका पर उच्च न्यायालय से खुद स्थगन लिया है. मुख्य मामले पर पिछले 13 महीने से कोई सुनवाई नहीं हुई है. एक एजेंसी के तौर पर ईडी परंपरागत तौर पर तब तक दखल नहीं दे सकता है जब तक कि सीबीआई या पुलिस जैसी कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा एक विधेय (प्रेडिकेट) अपराध न तय कर दिया गया हो.
2015 में इस बंदिश का तोड़ निकाल लिया गया. उस समय ईडी के कार्यवाहक निदेशक ने एक सर्कुलर जारी किया, जिसमे कहा गया कि ईडी के लिए कार्रवाई शुरू करने के लिए अदालत द्वारा किसी मामले का संज्ञान लेना ही काफी है. इसी आधार पर ईडी ने अदालत की कार्रवाइयों को आधार बनाकर नेशनल हेराल्ड मामले में, जो सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर एक प्राइवेट शिकायत पर आधारित है, जांच शुरू कर दी. एक ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपी को जारी समन को ईडी ने फौरन लपक लिया.
ईडी ने द वायर से कहा, ‘जहां तक ईडी का सवाल है, यह उन मामलों की जांच कर सकता है, जहां एक विधेय (प्रेडिकेट) अपराध हो. विधेय अपराध का किसी एफआईआर पर आधारित होना जरूरी नहीं है. यह किसी कोर्ट में किसी विधेय अपराध के संबंध में दायर शिकायत समेत कोर्ट द्वारा भेजे गए समन के आधार पर हो सकता है.’ नेशनल हेराल्ड मामले में कोई विधेय अपराध नहीं है. सिर्फ एक नेता द्वारा एक निजी शिकायत दायर की गई है.
दिलचस्प यह है कि ईडी की शुरुआती जांच प्रेडिकेट अपराध के अभाव में बंद कर दी गई थी, लेकिन 2015 के सर्कुलर के बाद एजेंसी अचानक उस साल सितंबर महीने में हरकत में आ गई.
लेकिन 9 सालों में ईडी की जांच ईसीआईआर से आगे नहीं बढ़ पाई है. ईडी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी को कई बार उनका बयान दर्ज करने के लिए समन किया है और उनके बयान मीडिया में लीक भी किए गए हैं.
जहां तक मूल शिकायत का सवाल है, तो यह आरोप पूर्व साक्ष्य (प्री चार्ज एविडेंस) के स्तर पर ही स्थगित कर दिया गया था. स्वामी गांधी परिवार से जुड़े आयकर के दस्तावेज अदालत के समक्ष रखना चाहते थे, जिसकी इजाजत कोर्ट ने यह कहते हुए नहीं दी कि दस्तावेजों को रिकॉर्ड में शामिल करने से पहले उनकी (स्वामी की) की जांच और उनसे पूछताछ जरूरी है.
गांधी परिवार के वकील का कहना है कि एविडेंस एक्ट के तहत ‘दस्तावेज लाने वाले व्यक्ति’ को गवाही देनी होगी. स्वामी इस इससे छूट चाहते थे. वे खुद से पूछताछ पूरी किए जाने से पहले गवाहों से पूछताछ भी करना चाहते थे. कोर्ट ने इन सारी मांगों को अस्वीकार कर दिया.
इस तरह से आरोप पूर्व साक्ष्य की रिकॉर्डिंग जुलाई, 2018 में मुख्य शिकायतकर्ता स्वामी से पूछताछ से शुरू हुई. इस दौरान उन्होंने छह स्थगन मांगे और उनसे चार बार पूछताछ हुई. उनके द्वारा हाईकोर्ट से स्टे लेने के बाद यह पूछताछ रुकी.
लेकिन मई 2018 में एडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल की टिप्पणी गौरतलब है, ‘यह कोई मकसद पूरा करने की जगह ट्रायल में देरी कर रहा है. मुख्य अभियोजनकर्ता के साक्ष्य की पहली तारीख 20.02.2016 थी, और अभी तक सबूत देने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है.’
कुछ भी हो, अगर स्वामी द्वारा आयकर उल्लंघनों का आरोप सही भी साबित होता, तो भी नेशनल हेराल्ड केस के कारण खजाने को होने वाला नुकसान 39.86 लाख रुपये ही होता- जो ईडी के किसी मामले में स्वतः दखल देने के लिए 1 करोड़ रुपये की वर्तमान न्यूनतम सीमा रेखा से काफी कम है.
2जी घोटाले में आरोपियों, जिनमें से सारे अदालत से बरी किए जा चुके हैं, के वकील विजय अग्रवाल ने द वायर से कहा, ‘अदालत का सारा समय ईडी के जमानत के मामलों में जाया हो रहा है और सुनवाई अनंत समय तक लटकी हुई है. ईडी ने खुद यह स्वीकार किया है कि इसने सिर्फ 24 मामलों में दोषसिद्धि (कंविक्शन) हासिल की है जबकि रिकॉर्ड किए ईसीआईआर की संख्या 5906 है.’
अगस्ता वेस्टलैंड की दिलचस्प कहानी
अगस्ता वेस्टलैंड मामले में पहली शिकायत 2013 में खुद कांग्रेस सरकार द्वारा 2013 में दायर की गई थी. ईडी के पास यह मामला 2014 में गया, जिसने तब से 11 अनुपूरक शिकायतें दायर की हैं. हथियारों का सौदागर क्रिश्चियन माइकल दिसंबर, 2018 से जेल में है, जब दुबई से उसका प्रत्यार्पण करवाया गया था, जहां वह अगले चार महीने तक हिरासत में रहा. उसकी जमानत अर्जी को छह बार खारिज किया जा चुका है, जबकि उसी तरह के आरोपों का सामना कर रहे अन्य लोग जमानत पर हैं.
उसके वकील एल्जो के. जोसेफ ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 1,280 दस्तावेजों और 250 गवाहों की जांच किए जाने की जरूरत है, और ट्रायल के कई सालों तक शुरू होने की संभावना नहीं है.
दिलचस्प बात यह है कि मनमानी हिरासत पर संयुक्त राष्ट्र के वर्किंग ग्रुप ने यूएई और भारत सरकार के खिलाफ कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं. इसका कहना है कि माइकल को भारत द्वारा हिरासत में लिए गए एक हाई प्रोफाइल व्यक्ति के बदले में प्रत्यर्पित किया गया. यहां हिरासत में लिए गए जिस व्यक्ति का जिक्र है, वह यूएई की प्रधानमंत्री के बेटी प्रिंसेस लतीफा हैं, जो फरवरी, 2018 में अपने पिता से छिपकर भारत आई थीं. भारतीय तटरक्षक बल द्वारा उन्हें जबरन हिरासत में ले लिया गया और उन्हें दुबई को लौटा दिया गया. माइकल का प्रत्यर्पण 4 दिसंबर, 2018 को हुआ.
‘वर्किंग ग्रुप एक स्रोत द्वारा दी गई इस जानकारी, जिसका खंडन किसी सरकार द्वारा नहीं किया गया है, को चिंता के साथ दर्ज करता है कि संयुक्त अरब अमीरात द्वारा भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध का अनुमोदन दुबई की एक हाई प्रोफाइल डिटेनी को पकड़ने और उन्हें वापस दुबई को लौटाने के एवज में किया गया. भारत के प्रधानमंत्री ने मार्च, 2018 में कथित तौर पर इस अदला-बदली पर मुहर लगाई थी… उनकी स्वतंत्रता कानूनी आधार के बिना छीनी गई.’
इस मामले में मुख्य सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है. ईडी ने द वायर से कहा कि जब भी किसी आरोपी की गिरफ्तारी आदि को लेकर किसी न्यायिक मंच पर सवाल उठाया गया है, ईडी ने सही सूचना के साथ उसका समुचित जवाब दिया है, जिसे अदालतों ने स्वीकार किया है.’
‘अधिकारों के हनन का अचूक नुस्खा’
द वायर ने यह पहले भी बताया है कि किस मामले में कार्रवाई करनी है और किस मामले को अनदेखा करना है, ईडी यह फैसला करने में मनमाना मानक अपना रही है. अगस्ता वेस्टलैंड मामले में पैसे के लेन-देन का पता लगाते हुए ईडी ने अपनी पहली और दूसरी शिकायत में कहा था कि कुछ पैसे बाकी कंपनियों के अलावा सिंगापुर की एक कंपनी गुदामी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड को भी हस्तांतरित किए गए थे. इन कंपनियों में से कुछ के बारे में ब्योरे की मांग करने वाली चिट्ठी पर सिंगापुर सरकार के जवाब के बाद गुदामी को छोड़कर बाकी कंपनियों पर जांच जारी रखी गई. फिर, गुदामी का नाम इस जांच से चुपचाप हटा दिया गया. यह कंपनी कथित तौर पर गौतम अडानी से उनके भाई और अदानी ग्रुप के प्रमोटर, साइप्रस के नागरिक विनोद अदानी के मार्फत जुड़ी हुई है. द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने विनोद अदानी को शीर्ष कारोबारी गौतम अदानी का ‘एल्यूसिव ब्रदर’ (मायावी भाई) करार दिया है.
वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा का कहना है, ‘अगर आप एक जांचकर्ता को व्यापक शक्तियां दे देते हैं, खुद की बेगुनाही के पक्ष में सबूत पेश करने का दायित्व आरोपी पर डाल देते हैं, जमानत देने के लिए दोहरी प्रतिबंधकारी शर्तें लगा देते हैं, बयानों को स्वीकार्य बना देते हैं और जांचकर्ता की शक्तियों पर न्यायिक निगरानी को कम कर देते हैं, तो आप दोषी न साबित न होने तक बेगुनाह होने के विचार को कुचलने और अधिकारों को सीमित करने का पूरा इंतजाम कर देते हैं.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘इसके साथ यह तथ्य भी जोड़िए कि मनी लॉन्ड्रिंग के ‘विशिष्ट’ (स्टैंड अलोन) अपराध होने के नाम पर ईडी अपनी शक्ति का दायरा तय करने के मामले में खुदमुख्तार है. सुप्रीम कोर्ट की एक तीन सदस्यीय पीठ द्वारा किया गया हल्का-सा बदलाव भी स्थिति को ज्यादा नहीं बदलता. जब तक कि संसद इसमें हस्तक्षेप नहीं करती है, आखिरी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट में लंबित एक पुनर्समीक्षा पर टिकी है. साथ ही साथ कुछ उच्च न्यायालयों ने प्रावधानों की व्याख्या उदारवादी नजरिये से की है और अतीत में कुछ मामलों को समाप्त कर दिया है. हम सिर्फ ऐसी ज्यादा अदालतों की उम्मीद कर सकते हैं.’
दिल्ली में आप नेताओं के खिलाफ मामला
ईडी सीबीआई जैसी किसी एजेंसी द्वारा दायर किसी विधेय प्रेडिकेट या प्राथमिक अपराध से कमाए गए धन की जांच कर सकता है. आम आदमी पार्टी के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के मामले में यह एक कदम आगे चला गया है. सीबीआई का कहना है कि जैन एक आभूषण कंपनी में शेयरधारक थे जिसमें कि कोलकाता के कुछ एंट्री ऑपरेटर्स से 4.80 करोड़ रुपये आये.
सीबीआई का केस यह है कि कंपनी के शेयरहोल्डिंग पैटर्न के हिसाब से इस पैसे में जैन का एक तिहाई हिस्सा है. दूसरे शब्दों में ईडी को धन के एक तिहाई हिस्से की जांच करनी चाहिए थी. लेकिन इसकी शिकायत में कहा गया है कि 4.80 करोड़ की पूरी राशि जैन को मिली. इसके अलावा जैन के वकीलों का कहना है कि रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के दस्तावेजों के हिसाब से भी देखें, तो कंपनी में जैन की शेयरहोल्डिंग 2 प्रतिशत से कम से लेकर 19 प्रतिशत तक ठहरती है, जिसके हिसाब से उनके हिस्से आना वाला पैसा 57 लाख ठहरता है, जो ईडी की जांच के लिए 1 करोड़ रुपये की तय सीमा से काफी कम है. पीएमएलए के तहत राशि के एक करोड़ से कम होने पर तत्काल जमानत का प्रावधान है, लेकिन जैन पिछले साल 30 मई से जेल में हैं.
दिलचस्प बात यह है कि कानून यह भी कहता है कि मनी लॉन्ड्रिंग में मदद करने वाला व्यक्ति भी समान रूप से दोषी है और उसे भी आरोपी बनाया जाना चाहिए. लेकिन यहां कोलकाता के एंट्री ऑपरेटर्स को इस मामले में गवाह बना दिया गया है.
ईडी ने द वायर से कहा, ‘बाकी के सवाल भी तथ्यात्मक तौर पर गलत हैं, और हम मामले की संवेदनशील प्रकृति के कारण इस संबंध में ब्योरे साझा नहीं कर सकते हैं.’
आम आदमी पार्टी के एक दूसरे नेता दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के मामले में, उनके वकीलों का कहना है कि अब रद्द कर दी गई आबकारी नीति कैबिनेट का सामूहिक फैसला थी, जिसकी संस्तुति एक्साइज और वित्त विभागों ने की थी और जिस पर और किसी अन्य ने नहीं खुद मोदी सरकार द्वारा नियुक्त लेफ्टिनेंट गवर्नर ने दस्तखत किया था. सिसोदिया इस साल के 26 फरवरी से जेल में हैं. दिलचस्प तरीके से 7 अप्रैल को ईडी द्वारा दायर तीसरी शिकायत में सिसोदिया का नाम आरोपी के तौर पर नहीं लिया गया है.
ईडी का कहना है कि आबकारी नीति के तहत मिलनेवाले 12 फीसदी के मार्जिन के बारे में मंत्रियों के समूहों की बैठक में कभी चर्चा नहीं की गई थी.
मामलों के ट्रांसफर का रणनीतिक उपयोग?
ईडी पर कानून की सीमा को विस्तार देने और मामलों का ट्रांसफर नई दिल्ली- राउज एवेन्यू कोर्ट करने का भी आरोप लगाया गया है.
तृणमूल नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी अनुब्रत मंडल पर बांग्लादेश की सीमा के आरपार मवेशियों की तस्करी का आरोप लगाया गया है. मंडल की लीगल टीम का कहना है, ‘सीबीआई के केस और पीएमएल के तहत विधेय /प्रेडिकेट अपराध दोनों की ही क्षेत्रीय अधिकारिता कोलकाता है, लेकिन फिर भी ईडी ने दिल्ली में एक अन्य मनी लॉन्ड्रिंग मामला दायर कर दिया और मामले का यहां ट्रांसफर करवा लिया.’ मंडल अभी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं.
ईडी जिस एक और मामले का ट्रांसफर छत्तीसगढ़ से दिल्ली के राउज एवेन्यू में करवाना चाहती है, वह है राज्य की पिछली भाजपा सरकार से जुड़ा नान घोटाले का मामला. कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2019 में ईडी छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा दायर एक एफआईआर का इस्तेमाल ईसीआईआर के आधार के तौर पर करके, इस मामले में कूद पड़ी. अब ईडी इस पूरे मामले को दिल्ली लाना चाहती है. छत्तीसगढ़ सरकार के वकील का कहना है, ‘क्षेत्राधिकार की बात गलत और दुर्भावनापूर्ण है.’ उनका कहना है, यहां मकसद भाजपा को केस बंद करवाने में मदद करना और भाजपा को क्लीनचिट देना है.
वायर को अपने जवाब में ईडी ने दोहराया कि जहां तक दूसरे मामलों का संबध है, आपके आरोप गलत है. सभी मामलों में ईडी द्वारा की गई कार्रवाइयों का अनुमोदन संबंधित क्षेत्राधिकारीय न्यायालयों द्वारा किया गया है. इसके अलावा आपके द्वारा पूछे गए सवाल संवेदनशील प्रकृति के हैं और इनके बारे में कोई जानकारी देना न्यायालयों के समक्ष लंबित विचाराधीन मामलो में तथ्यों को उजागर करने के समान होगा, जो कि उचित नहीं होगा. जब भी आरोपी की गिरफ्तारी आदि को लेकर किसी न्यायिक मंच पर सवाल उठाए गए हैं, ईडी ने सही सूचनाओं के साथ उनका समुचित जवाब दिया है, जिसे अदालतों द्वारा स्वीकार किया गया है.’
निष्कर्ष :
अगस्त, 2021 में राजनीतिक प्रतिनिधियों के खिलाफ जांच में देरी से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की मदद के लिए ईडी ने एमिकस क्यूरी को मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का सामना कर रहे 122 निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक सूची सौंपी थी. स्क्रॉल के अनुसार, जब इसने आरटीआई के तहत इनका ब्योरा मांगा तो ईडी ने इस जानकारी को साझा करने से इनकार कर दिया. हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस सूची से निकाले गए 52 नामों को शामिल करने वाली एक रिपोर्ट प्रकाशित की. इनमें से लगभग सभी नाम विपक्षी दलों से थे.
इंडियन एक्सप्रेस ने सितंबर, 2022 में यह रिपोर्ट किया था कि 2014 से नेताओं के खिलाफ ईडी के मामलों में चार गुना उछाल आया है, जिनमें से 95 फीसदी मामले विपक्षी दलों से जुड़े हैं.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पीएमएलए के सबसे सख्त प्रावधानों- जो केंद्र के निशाने पर प्रतीत होने वाले लोगों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस लगाने में सहायक होते हैं- का सुप्रीम कोर्ट द्वारा हालिया अनुमोदन यहां तक कि उनको विस्तार दिए जाने को देखते हुए ईडी और अन्य केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका निश्चय ही दिलचस्पी और चिंता का विषय बनी रहेगी. आज ननहीं तो कल, सुप्रीम कोर्ट को उन व्यवस्थागत सवालों पर विचार करना होगा, जो ईडी की कार्रवाइयों से उपजते रहेंगे.
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