बिलक़ीस केस: सुप्रीम कोर्ट जज आरोपियों के वकील से बोले- साफ है कि आप नहीं चाहते हम मामले को सुनें

सुप्रीम कोर्ट बिलक़ीस बानो के बलात्कार के दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाइयों में दोषियों की सज़ा माफ़ी से संबंधित फाइलें सरकार ने अदालत के समक्ष रखने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब वह राज़ी हो गई है.

बिलकीस बानो. (फाइल फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार के दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. पिछली सुनवाइयों में केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सज़ा माफ़ी से संबंधित फाइलें अदालत के समक्ष रखने से इनकार कर दिया था, लेकिन अब वह इसके लिए राज़ी हो गई है.

बिलकीस बानो. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: बिलकीस बानो की उनके सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के खिलाफ याचिका सुनते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि ‘यह स्पष्ट है कि वे नहीं चाहते कि पीठ यह मामला सुने.’

इंडियन एक्सप्रेस  के अनुसार, अदालत की नाराजगी की वजह यह रही कि दोषियों में से कुछ के वकील ने प्रक्रियात्मक मसला उठाया और कहा कि उन्हें केस का नोटिस नहीं मिला है. उन्होंने बिलकीस पर कोर्ट से ‘गंभीर धोखाधड़ी’ करने का भी आरोप लगाया.

अदालत ने कहा है कि वह मामले को 9 मई को सुनेगी और जानेगी कि सभी प्रक्रियात्मक जरूरतें पूरी हो गई हैं या नहीं.

इसी सुनवाई में केंद्र और गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वे 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले के 11 दोषियों की सजा माफी से संबंधित जानकारी पर विशेषाधिकार का दावा नहीं करेंगे.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, वे मूल रिकॉर्ड अवलोकन के लिए अदालत के समक्ष रखने के लिए भी सहमत हो गए हैं.

18 अप्रैल को पिछली सुनवाई के दौरान सरकार ने विशेषाधिकार का दावा किया था और इस आधार पर सुनवाई स्थगित करने की मांग की थी कि उसका इरादा मूल फाइलों को अदालत के समक्ष रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा का है.

हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया कि वह समीक्षा की मांग नहीं करेगी, लेकिन मामले में सुनवाई आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि एक दोषी को अब तक नोटिस नहीं दिया गया है और अन्य दोषियों ने बिलकीस की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए स्थगन की मांग की थी. बताया गया है कि मामले में 27 मार्च को नोटिस जारी किया गया था.

जैसे ही दोषियों की ओर से पेश हुए वकीलों ने स्थगन की मांग की और कहा कि मामले में जल्दी सुनवाई की कोई जल्दबाजी नहीं है, तो बिलकीस की वकील शोभा गुप्ता ने इसका विरोध किया.

उन्होंने कहा कि दोषियों की रिहाई न्याय से इनकार था और जल्द से जल्द इंसाफ दिया जाना चाहिए. उन्होंने अनुरोध किया कि अदालत दोषियों को मामले में कार्यवाही को बाधित करने की अनुमति न दे और कहा कि सुनवाई की जानी चाहिए. लेकिन दूसरे पक्ष द्वारा इसका पुरजोर विरोध किया गया, जिसने तर्क दिया कि अदालत पक्षकारों को नोटिस दिए बिना आगे नहीं बढ़ सकती.

इस बीच, एक दोषी की तरफ से प्रस्तुत हुए अधिवक्ता संजय त्यागी ने कहा कि गुप्ता ने झूठा हलफनामा दायर किया था कि सभी दोषियों को नोटिस भेज दिया गया है.

इसके बाद पीठ ने निर्देश दिया कि स्थानीय पुलिस के जरिये उन सभी दोषियों को नए नोटिस भेजे जाएं, जिन्हें अब तक नोटिस नहीं मिले हैं.

इसके बाद जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘मैं 16 जून को रिटायर हो जाऊंगा. चूंकि उस दौरान छुट्टियां होंगी, इसलिए मेरा अंतिम कार्य दिवस 19 मई है. यह साफ है कि आप नहीं चाहते हैं कि मामले पर यह पीठ सुनवाई करे. लेकिन, यह मेरे लिए सही नहीं है. हमने यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया था कि मामला पूरा करने के लिए सुना जाएगा. आप अदालत के अधिकारी हैं. उस भूमिका को भूलें नहीं. आप एक केस जीत सकते हैं या हार सकते हैं. लेकिन, इस कोर्ट के प्रति अपने कर्तव्य को न भूलें.’

गौरतलब है कि अदालत ने इससे पहले 18 अप्रैल को सुनवाई के दौरान पूछा था कि सरकार दोषियों की सजा माफी की फाइल दिखाने में झिझक क्यों रही है? साथ ही कहा था कि समय से पहले दोषियों को रिहा करने से पहले अपराध की गंभीरता पर विचार किया जाना चाहिए था.

जस्टिस जोसेफ ने तब कहा था, ‘असली सवाल यह है कि क्या सरकार ने अपना दिमाग लगाया, सजा माफ़ी देने के फैसले का आधार क्या था? आज मामला इस महिला (बिलकिस) का है, लेकिन कल यह कोई भी हो सकता है. यह आप या मैं हो सकते हैं. एक मानक होना चाहिए… यदि आप छूट देने के अपने कारण नहीं बताते हैं, तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे.’

मालूम हो कि 15 अगस्त 2022 को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.

शीर्ष अदालत द्वारा इस बारे में गुजरात सरकार से जवाब मांगे जाने पर राज्य सरकार ने कहा था कि दोषियों को केंद्र की मंज़ूरी से रिहा किया गया. गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सजा माफी का विरोध किया था.

अपने हलफनामे ने सरकार ने कहा था कि ‘उनका (दोषियों) व्यवहार अच्छा पाया गया था’ और उन्हें इस आधार पर रिहा किया गया कि वे कैद में 14 साल गुजार चुके थे. हालांकि, ‘अच्छे व्यवहार’ के चलते रिहा हुए दोषियों पर पैरोल के दौरान कई आरोप लगे थे.

एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 11 दोषियों में से कुछ के खिलाफ पैरोल पर बाहर रहने के दौरान ‘महिला का शील भंग करने के आरोप’ में एक एफआईआर दर्ज हुई और दो शिकायतें भी पुलिस को मिली थीं. इन पर गवाहों को धमकाने के भी आरोप लगे थे.

दोषियों की रिहाई के बाद सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी.

उस समय इस निर्णय से बेहद निराश बिलकीस ने भी इसके बाद अपनी वकील के जरिये जारी एक बयान में गुजरात सरकार से इस फैसले को वापस लेने की अपील की थी.

गौरतलब है कि 3 मार्च 2002 को अहमदाबाद के पास एक गांव में 19 वर्षीय बिलकीस बानो के साथ 11 लोगों ने गैंगरेप किया था. उस समय वह गर्भवती थीं और तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. हिंसा में उनके परिवार के 7 सदस्य भी मारे गए थे, जिसमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.

बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था. केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.

21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.

सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.

इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था. अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास देने का आदेश दिया था.