लद्दाख को छठी अनुसूची में लाने की मांग को लेकर फिर उपवास करेंगे सोनम वांगचुक

शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक ने कहा है कि उपवास का कारण यह है कि केंद्र सरकार ने संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को लाने की मांग पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. 2019 में लद्दाख के जम्मू कश्मीर से अलग होने के बाद से यह मांग लगातार उठती रही है. सोनम इसे लेकर जनवरी में भी उपवास पर रहे थे.

सोनम वांगचुक. (फोटो साभार: ट्विटर/@Wangchuk66)

शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक ने कहा है कि उपवास का कारण यह है कि केंद्र सरकार ने संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को लाने की मांग पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. 2019 में लद्दाख के जम्मू कश्मीर से अलग होने के बाद से यह मांग लगातार उठती रही है. सोनम इसे लेकर जनवरी में भी उपवास पर रहे थे.

सोनम वांगचुक. (फोटो साभार: ट्विटर/@Wangchuk66)

नई दिल्ली: शिक्षा सुधारक व मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सोनम वांगचुक लद्दाख के लिए विभिन्न सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर 10 दिन का उपवास करेंगे. वह इससे पहले जनवरी में पांच दिन ऐसा उपवास कर चुके हैं.

द ट्रिब्यून के अनुसार, वांगचुक ने कहा कि इस उपवास का कारण यह है कि केंद्र सरकार ने संविधान की छठी अनुसूची को लद्दाख तक विस्तारित करने की मांग पर कार्रवाई नहीं की है. उनका 26 अप्रैल को अनशन पर बैठने का कार्यक्रम था लेकिन लेह में जी-20 कार्यक्रम के कारण वांगचुक ने विरोध को स्थगित कर दिया.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘यह लद्दाख के लिए भाजपा के घोषणापत्र के पहले बिंदु में था और लोगों ने पार्टी को वोट दिया क्योंकि उन्होंने हमें लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा देने का आश्वासन दिया था. अगर आप घोषणा पत्र में नंबर एक एजेंडा पर रखते हैं और चुनाव जीतने के बाद इसे पूरी तरह से अनदेखा करते हैं, तो लोगों का लोकतंत्र से भरोसा उठ जाएगा.’

केंद्र द्वारा अपने चुनाव पूर्व वादे का पालन नहीं करने पर निराश वांगचुक ने कहा कि अब स्थिति उस बिंदु पर पहुंच गई है जहां लोगों को छठी अनुसूची के पक्ष में आवाज उठाने के लिए औपचारिक और अनौपचारिक रूप से परेशान किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हम भारत के संविधान के बाहर कुछ भी नहीं मांग रहे हैं. हम देश की जनजातीय आबादी के लिए संविधान में मौजूद संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि छठी अनुसूची को मंजूरी देने से लद्दाख के पर्यावरण, संस्कृति और भूमि की रक्षा होगी. उन्होंने कहा, ‘अगर लद्दाख को छठी अनुसूची नहीं दी जाती है, तो न केवल लद्दाख के लोग लोकतंत्र और सरकार पर भरोसा खो देंगे, बल्कि पूरे देश का भरोसा उठ जाएगा क्योंकि नैतिकता, लोकतंत्र और सत्ताधारी दल की मंशा पर सवाल उठेंगे. यह गलत नींव रखेगा.’

5 अगस्त, 2019 को इस क्षेत्र को जम्मू कश्मीर से अलग किए जाने और केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के कदम के बाद लद्दाख में विभिन्न निकायों ने इसी तरह की मांग की है.

वांगचुक ने कहा कि उनका अगला अनशन मई के अंत या जून की शुरुआत में होगा. उन्होंने कहा, ‘मैं 26 अप्रैल से अनशन करने की योजना बना रहा था. लेकिन चूंकि 26 अप्रैल को लद्दाख में जी-20 प्री-समिट आयोजित किया गया था, इसलिए हमने इसे देश के बेहतर हितों के लिए स्थगित कर दिया. मैं अब मई के अंत में या जून की शुरुआत में उपवास करूंगा.’

इससे पहले जनवरी में वांगचुक को इसी मांग को लेकर उपवास करने के दौरान नजरबंद कर दिया गया था. तब बताया गया था कि प्रशासन ने उनसे एक बॉन्ड पर हस्ताक्षर करवाने की कोशिश की थी कि ‘वह लेह में हाल की घटनाओं पर कोई बयान/टिप्पणी नहीं करेंगे या सभाओं में भाग नहीं लेंगे’, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था.

बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है. छठी अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त प्रशासनिक जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करती है जिसमें कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता होती है. ये परिषद भूमि, जंगल, जल, कृषि, स्वास्थ्य, स्वच्छता, विरासत, विवाह और तलाक, खनन और अन्य को नियंत्रित करने वाले नियम और कानून बना सकती हैं. अभी तक असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं.

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