दिल्ली में प्रदूषण जनित धुंध का प्रकोप जारी. पर्यावरण मंत्री ने कहा कि लोग हालत देखकर घबराएं नहीं. फसलों के अवशेष जलाने के बजाय भूसा और खाद बनाने का सुझाव.
दिल्ली/गाज़ियाबाद: प्रदूषण के गंभीर स्तर तक पहुंच जाने के कारण उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद में प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई करते हुए डाबर और भूषण स्टील समेत 65 कारखानों को अगले आदेश तक के लिए बंद करा दिया है.
गाज़ियाबाद की ज़िलाधिकारी रितु माहेश्वरी ने बताया है कि ज़िले की सभी मुख्य सड़कों पर पानी का छिड़काव भी किया जा रहा है, ताकि स्मॉग से निपटने में कुछ राहत मिल सके. उन्होंने बताया कि स्मॉग को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह सचेत है और लोगों के बचाव के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाए जा रहे हैं.
दूसरी तरफ ज़िला प्रशासन ने 18 बिल्डरों पर कार्रवाई करते हुए 4.75 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. अधिकारियों के मुताबिक निर्माण स्थल पर पानी के छिड़काव की व्यवस्था न करने, निर्माण सामग्री को ढककर न रखने तथा निर्माण स्थल पर सुरक्षा जाली जैसे मानकों का पालन नहीं करने पर इन बिल्डरों पर अर्थदंड लगाया गया है.
गौरतलब है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में पिछले करीब एक सप्ताह से स्मॉग के कारण धुंध फैली हुई है और पर्यावरण में पार्टिकुलेट मैटर 10 और 2.5 ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया है.
दिल्ली में प्रदूषण फिर बढ़ने पर पर्यावरण मंत्री ने कहा, लोग घबराएं नहीं
दिल्ली की आबोहवा में पिछले 24 घंटों में मामूली सुधार आने के बाद शनिवार को वायु प्रदूषण में फिर से इज़ाफ़ा हो गया.
हवा की गुणवत्ता का आकलन करने वाली केंद्रीय एजेंसी ‘सफर’ के ताजा आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में शनिवार सुबह हवा की गुणवत्ता में सुधार आने पर लोगों ने राहत की सांस ली, लेकिन शाम होते ही प्रदूषण ख़तरे के स्तर को पार कर गया. हालात में आए इस नाटकीय बदलाव से सरकार और लोगों की चिंता बढ़ गई है.
इस बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने लोगों से संयम बरतने की अपील करते हुए कहा कि वे हालात को देखते हुए घबरायें नहीं, सरकार प्रदूषण पर नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान दिल्ली-एनसीआर से जुड़े सभी संबद्ध राज्यों में प्रभावी तरीके से लागू करेगी.
उन्होंने कहा कि इस कार्ययोजना में पहली बार इस तरह की आपात स्थितियों से निपटने के लिए लक्षित रणनीति अपनायी है.
डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि मंत्रालय ने इसके लिए कार्यबल का गठन कर दिया है. यह दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता का लगातार विश्लेषण कर रही है. उन्होंने कहा कि हालात से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाए गए हैं इसलिए लोगों को घबराने की ज़रूरत नहीं है.
सफर के परियोजना निदेशक गुफ़रान बेग ने बताया कि प्रदूषक तत्वों को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकने वाली परत काफी क्षीण हुई है. हालांकि उन्होंने पिछले सप्ताह धुंध से उपजे हालात एक बार फिर पैदा होने की आशंका से इंकार करते हुए यह ज़रूर कहा कि पराली के जलने से उठे धुंए की परत से राहत मिलने में अभी एक दिन का और समय लगेगा.
इस बीच केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक वायु की गुणवत्ता का स्तर बीते शुक्रवार के 468 अंक के मुकाबले शनिवार को गिरकर 403 पर आ गया.
इस बीच सुबह के समय वायु प्रदूषण के कारक तत्वों पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर 490 और 290 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के स्तर पर आ गया था.
यह आपात स्तर 500 और 300 से थोड़ा कम था. लेकिन शाम छह बजे यह आंकड़ा 522 और 332 पर पहुंच गया. हवा की गुणवत्ता में यह गिरावट दोपहर दो बजे के बाद आना शुरू हुई थी.
राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण जनित धुंध का प्रकोप जारी
राष्ट्रीय राजधानी में रविवार को दिन की शुरुआत स्मॉग की मौजूदगी और धुंध के साथ हुई. वहीं दूसरी ओर न्यूनतम पारा लुढ़ककर 13 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया. इस कारण शहरवासियों को सुबह में ठंड का एहसास हुआ.
मौसम विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि आर्द्रता के 98 प्रतिशत के उच्च स्तर पर रहने के कारण दिल्ली में स्मॉग का प्रकोप रहा. न्यूनतम पारा 13 डिग्री सेल्सियस रहा जो इस मौसम के औसत तापमान से एक डिग्री कम है.
अधिकारी ने बताया कि 14-15 नवंबर को शहर में हल्की बारिश होने की संभावना है, जिससे कोहरा बढ़ जाएगा लेकिन स्मॉग में कमी आएगी.
राष्ट्रीय राजधानी में पिछले कुछ दिनों से स्मॉग का प्रकोप काफी अधिक है. इसके बाद अधिकारियों को निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने एवं ईंट-भट्ठों को बंद करने सहित कई आपातकालीन कदम उठाने पड़े थे.
मौसम विभाग के मुताबिक आसमान में आंशिक तौर पर बादल छाए रहेंगे और अधिकतम पारा 28 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहने की संभावना है.
सड़क किनारे पार्किंग को हतोत्साहित करें अधिकारी : एनजीटी
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने दिल्ली सरकार एवं नगर निगमों को कारों के लिए समुचित पार्किंग सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करने और सड़क किनारे पार्किंग को हतोत्साहित करने का निर्देश दिया है.
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने यातायात को सुगम बनाने से संबंधित उसके पहले के आदेशों का ठीक तरह से पालन नहीं करने के लिए अधिकारियों की आलोचना की और उन्हें समग्र तरीके से कदम उठाने को कहा.
पीठ ने कहा कि आख़िर आपने कारों के लिए समुचित पार्किंग स्थान क्यों नहीं बनाया आप जैसे लोग ही दो-तीन लेन की पार्किंग बनाने और सड़कों पर अव्यवस्था फैलाने के ज़िम्मेदार हैं. आख़िर आप नियमों का उल्लंघन करने वाले उन ठेकेदारों का समझौता रद्द क्यों नहीं करते.
हरित पैनल ने कहा कि अगर नई कारों को पंजीकरण की मंज़ूरी दी जाती है तो उनकी पार्किंग के लिए समुचित जगह भी अवश्य देनी चाहिए.
पीठ ने कहा कि यह निर्विवाद सत्य है कि सरोजनी नगर मल्टीपार्किंग खाली पड़ा रहता है लेकिन कुछ ठेकेदार पैसे लेकर वहां सड़कों पर वाहन खड़ा करने की मंज़ूरी दे देते हैं और इस तरह सड़क पर यातायात की भीड़भाड़ में और इज़ाफ़ा होता है.
पीठ ने कहा कि सभी सरकारी अधिकारियों, निगमों और एनडीएमसी को इस तरह की अनियमितताएं दूर करने के लिए तत्काल एवं प्रभावी कदम उठाने चाहिए तथा निगमों, सरकार, पुलिस, विभागों एवं पार्किंग के उद्देश्य से नियुक्त ठेकेदारों के बीच बेहतर समन्वय बनने चाहिए.
पीठ ने शहर में वायु प्रदूषण के रोकथाम के लिए दिल्ली सरकार और यातायात पुलिस को चालान काटने और 10 साल पुराने डीज़ल वाहनों एवं 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को जब्त करने का भी निर्देश दिया.
पराली का भूसा और खाद बनाने का पर्यावरण मंत्रालय ने दिया सुझाव
पंजाब में फसल कटने के बाद पराली जलाए जाने के धुंए से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण जनित धुंध की समस्या के समाधान के लिए पराली (फसलों के अवशेष) के बहुद्देशीय उपयोग की कार्ययोजना पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय काम कर रहा है.
नीति आयोग और सीआईआई की संयुक्त रिपोर्ट में पराली के व्यवसायिक और घरेलू इस्तेमाल की कार्ययोजना पेश की गई है. पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव एके मेहता की अगुवायी में नीति आयोग और सीआईआई के संयुक्त कार्यबल ने पंजाब में पराली के बहुउपयोग के तरीके सुझाते हुए इस बाबत कार्ययोजना पेश की है.
इसमें हर साल सर्दी शुरू होने से पहले दिल्ली के प्रदूषण का कारण बनने वाली धान की फसल की पराली को जलाने से किसानों को रोकने के लिए इसके दो उपयोग सुझाए गए हैं.
पहला- पराली का भूसा बनाकर इसका व्यवसायिक इस्तेमाल करने और दूसरा- पराली से खाद बनाकर किसानों को इस्तेमाल के लिए वितरित करना बेहतर तरीके हैं.
कार्यबल ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में हवा की गुणवत्ता के ख़राब होने में पराली की भूमिका के प्रभावों का पिछले साल नवंबर में अध्ययन शुरू किया था. इस साल जून तक चले अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार देश में हर साल फसल की कटाई से 60 करोड़ टन फसल अवशेष निकलता है. इसमें पंजाब में हर साल धान की पराली की हिस्सेदारी दो करोड़ टन है.
समिति ने पराली जलाने की किसानों की मजबूरी को स्वीकार करते हुए इसका बहुउपयोग सुनिश्चित करने के लिए उद्योग जगत से इसमें सक्रिय भूमिका निभाने की ज़रूरत पर बल दिया है. समिति ने मसौदा रिपोर्ट में पराली की किसानों से ख़रीद सुनिश्चित करने और औद्योगिक इकाइयों को बेच कर इसके बहुउपयोग के उपाय सुझाए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक पराली का भूसा, रासायनिक उद्योगों के अलावा ईंधन और ऊर्जा क्षेत्र की औद्योगिक इकाईयों में विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल में आता है. सरकार को औद्योगिक इकाइयों के सामंजस्य से पंजाब में खेत पर ही किसानों से पराली की उचित दाम पर ख़रीद सुनिश्चित करने का सुझाव दिया गया है. यह कीमत कम से कम पराली काटने के लिए मजदूरी पर होने वाले व्यय के बराबर रखने का उपाय बताया गया है.
इस बारे में भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल अंजान की अगुवाई में किसानों के समूह ने पंजाब का दौरा कर किसानों के सहयोग से ही इस समस्या के समाधान निकालने की पहल की.
उन्होंने इस रिपोर्ट से इत्तेफाक जताते हुए कहा कि पंजाब में धान की अक्टूबर में कटाई के बाद किसानों के पास गेहूं की बुआई के लिए महज़ दो सप्ताह का समय बचता है. पराली को कटाने पर किसान को समय और पैसे का दोहरा नुकसान होता है. ऐसे में किसान के पास धान की पराली के तत्काल निस्तारण का एकमात्र विकल्प इसे जलाना ही बचता है.
अंजान ने सरकार को पराली की कटाई को मनरेगा की कार्यसूची में शामिल करने का सुझाव देते हुए कहा कि इससे पंजाब में बेरोज़गार बैठे लाखों खेतिहर मज़दूरों से किसान पराली की कटाई करा सकेंगे. इसका दोहरा लाभ, बेरोज़गारी और पर्यावरण संकट के समाधान के रूप में होगा.
कार्यबल ने हालात का व्यवहारिक अध्ययन करने के लिए इलाके में किसानों की मौजूदा कार्यप्रणाली का जायज़ा लेने के बाद मसौदा रिपोर्ट तैयार की है. इसमें किसान और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से समस्या और समाधान के हरसंभव पहलुओं पर विचार विमर्श के आधार पर कार्ययोजना पेश की गई है.
कार्यबल के समक्ष किसानों ने यह स्वीकार किया कि पराली जलाना, अगली फसल के लिये खेत तैयार करने की उनकी तात्कालिक मजबूरी है. किसान इस बात से वाकिफ हैं कि जली हुई पराली की राख दीर्घकाल में मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को कम करती है.
रिपोर्ट में फसल अवशेष के आर्थिक और वाणिज्यिक इस्तेमाल के लिए सरकार और उद्योग जगत की साझा पहल को ज़रूरी बताया गया है. इसके लिए दो सूत्रीय कार्ययोजना भी पेश की गई है.
पहला- रासायनिक, ईंधन और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियां सामूहिक स्तर पर किसानों से पराली की कटाई कर एकत्र करने के बाद इसका औद्योगिक इस्तेमाल करें.
दूसरा उपाय छोटे या मझोले किसान पराली को खेत की जुताई करते हुए मिट्टी में ही दबा रहने दें जिससे यह खाद बनकर मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाएगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)